पाश से मैं पहली बार उस समय रुबरु हुआ था जब राजस्थान के एक आंदोलन के दौरान उनकी कुछ लाइनें आंखों के सामने से गुजरी थी, इसके बाद बस फिर क्या था। मैं और पाश। कई दिनों तक पाश की कविता खोज खोज कर पढ़ा और आज कहा सकता हूं कि बाबा नागार्जुन के बाद पाश ही मुझे सबसे पास दिखते हैं। पेश है पाश की दो कविताएं
1
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी , लोभ की मुठ्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से मर जाना
न होना तड़प का
सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आ जाना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना।
2
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हें कभी आएगा नहीं
जिन्हें जिन्दगी ने हिसाबी बना दिया
जिस्मों का रिश्ता समझ सकना-
ख़ुशी और नफरत में कभी लीक ना खींचना
जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फिदा होना
सहम को चीर कर मिलना और विदा होना
बहुत बहादुरी का काम होता है मेरी दोस्त
मैं अब विदा होता हूं तू भूल जाना
मैंने तुम्हें किस तरह पलकों में पाल कर जवान किया
कि मेरी नजरों ने क्या कुछ नहीं किया
तेरे नक्शों की धार बांधने में
कि मेरे चुंबनों ने
कितना खूबसूरत कर दिया तेरा चेहरा कि मेरे आलिंगनों ने
तेरा मोम जैसा बदन कैसे सांचे में ढाला
तू यह सभी भूल जाना मेरी दोस्त
सिवा इसके कि मुझे जीने की बहुत इच्छा थी
कि मैं गले तक जिन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना
मेरी दोस्त मेरे भी हिस्से का जी लेना।
-अवतार सिंह संधू " पाश"
1
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी , लोभ की मुठ्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से मर जाना
न होना तड़प का
सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आ जाना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना।
2
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हें कभी आएगा नहीं
जिन्हें जिन्दगी ने हिसाबी बना दिया
जिस्मों का रिश्ता समझ सकना-
ख़ुशी और नफरत में कभी लीक ना खींचना
जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फिदा होना
सहम को चीर कर मिलना और विदा होना
बहुत बहादुरी का काम होता है मेरी दोस्त
मैं अब विदा होता हूं तू भूल जाना
मैंने तुम्हें किस तरह पलकों में पाल कर जवान किया
कि मेरी नजरों ने क्या कुछ नहीं किया
तेरे नक्शों की धार बांधने में
कि मेरे चुंबनों ने
कितना खूबसूरत कर दिया तेरा चेहरा कि मेरे आलिंगनों ने
तेरा मोम जैसा बदन कैसे सांचे में ढाला
तू यह सभी भूल जाना मेरी दोस्त
सिवा इसके कि मुझे जीने की बहुत इच्छा थी
कि मैं गले तक जिन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना
मेरी दोस्त मेरे भी हिस्से का जी लेना।
-अवतार सिंह संधू " पाश"
Comments
सीएनबीसी में मेरे कई आत्मीय है। मेरा भाई सीएनबीसी आवाज़ में प्रोड्यूसर है सौमित्र बुधकर। अभिन्न मित्र देवेन्द्र शास्त्री सीनियर प्रोड्यूसर है। अभिषेक तैलंग अभी हाल ही में आए हैं वो मेरे भांजे हैं। पारूल शर्मा बुधकर मेरे छोटे भाई (पल्लव बुधकर) की पत्नी है और सीएनबीस टीवी 18 दिल्ली मे हैं। आप क्या रिश्ता बनाना चाहेंगे ? ये आफर सीएनबीसी में न रहने पर भी कायम रहेगा क्योंकि जहां जाइयेगा , हमें पाइयेगा।
नए साल के मूड में लिख रहा हूं दोस्त । इसे पढ़कर कोई राय कायम न करें मेरे बारे में ।
आना-जाना होता रहेगा.
आपको नववर्ष की ढ़ेरों बधाइयाँ…।
बहुत शुभकामना कि सपनों के जिंदा रखने की बात याद दिलाई।
सपने हैं तो गति है और गति से जीवन है।
इसलिए सचमुच सपनों का मरना मतलब इंसान का सब कुछ खत्म हो जाना।
‘पाश’ की कविता दिल को छू गई। पुन: धन्यवाद
नए साल की शुभकामना। सुमित सिंह