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Showing posts from September, 2009

तू जब से गया है मुझे छोड़कर

तू जब से गया है मुझे छोड़कर मैं ऐसा तन्हा हुआ कि अब तो लगता है जीना भी क्या जीना है लेकिन फिर भी जीना होगा वादा जो तुझसे किया है, निभाना होगा मौत को आगोश में लेकर तुझे भूलना चाहता हूं पर कम्बख्त मौत भी बेवफा निकली जिंदगी ने थामा दामन पर मौत भी दरवाजे पर खड़ी है अब फैसला तुझे करना है मौत और जिंदगी के दरम्यिान

कुछ वक्त पहले मैं ऐसा नहीं था

कुछ वक्त पहले मैं ऐसा नहीं था आज भी मैं वैसा नहीं हूं मै कैसा हूं, क्यूं हूं, मुझे खुद भी नहीं पता मै कौन हूं और क्यों हूं तुम्हे तो पता था लेकिन तुमने बताया क्यों नहीं ? अच्छा हुआ नहीं बताया यदि तुम बताती तो शायद मुझे तकलीफ होती लेकिन क्यों नहीं बताया? यदि बता देती तो शायद मै ऐसा नहीं होता जैसा मैं हूं, फिर भी मैं हूं

भाई साहब उसकी शादी हो गई

भाई साहब जिंदगी में कुछ भी आसानी नहीं मिलता। पता है, तो इसमें बताने की क्या बात है? नहीं, मुझे लगा आपको पता नहीं होगा। क्यों अपने आपको बहुत होशियार समझते हो? अरे भाई साहब आप तो नाराज हो गए। अरे यार नाराज होने की बात ही है। खैर कैसे आना हुआ? कुछ नहीं, बस इधर से गुजर रहा था तो कदम आपके घर की ओर मुड़ गए। अच्छा आपको कुछ पता चला? क्या.. आपको नहीं पता? अरे नहीं यार..क्या हुआ? भाई साहब पाखी की शादी हो गई। क्या.....कब ? इसमें बाद कमरे में काफी देर तक शांति हो गई। जैसे घर में मातम हो और किसी की मौत हो गई है। जवाब आज तक नहीं मिला।