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Showing posts from August, 2012

ज़िंदगी की एक और दोपहर बीत गई

ज़िंदगी की एक और दोपहर बीत गई और मैं बस देखता रह गया कुछ साथ आए और कुछ पीछे छुटते गए फिर भी मैंने हार नहीं मानी और लोगों को जोड़ता गया जोड़ तोड़ के इस खेल में मैं खुद ही टूटता गया फिर भी अब अगली दोपहर का इंतजार है अक्‍टूबर, 2007, मुंबई

दोस्ती की इबादत

जिनसे मैंने दोस्ती की इबादत सीखा ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए जाते जाते मैं उन्हें मना नही सका और वो मुझे माफ़ कर ना सके मुंबई, 13 अगस्‍त 2007