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Showing posts from October, 2007

रेगिस्तान और वों : बंजर जमीं इंतजार की

यह जिन्दगी भी अजीब है। कब चलते चलते थकाऊ बन जाए? कुछ नहीं पता. लेकिन जिन्दगी है तो इसका साथ भी निभाना पड़ेगा. यही सोचते सोचते कब उसकी आँख लग दी? पता ही नहीं चला. उसकी ज़िंदगी में जब वो पहली दफा आई थी तो सब कुछ बदल चुका था. उसे पहली नजर में ही उससे प्यार हो गया था. हाँ जी प्यार. वही प्यार जो उस उमर में अच्छे अच्छे को हो जाता है. उसे भी हो गया था. परियों से भी अधिक खूबसूरत थी वो. उसकी बड़ी बड़ी आंखों में सिर्फ़ और सिर्फ़ हसीं सपने के. एक खूबसूरत राजकुमार का और सुखद भविष्य का. जबकि अमित की नज़रे रेगिस्तान की तरह सुनसान और बंजर थी. सपने तो यहाँ भी थे. लेकिन उसकी आँखों में दिखते नहीं थे. वों बंजर रेगिस्तान से आता था, जहाँ हजारों की तादाद में रहस्य छिपे रहते हैं. जबकि वो उस मिटटी से आती थी जहाँ गंगा बहती थी. ऐसे में रेगिस्तान और गंगा का संगम कहाँ हो सकता है, लेकिन अमित ने पूरा प्रयास किया कि यह संगम हो. लेकिन गंगा तो भगवान के चरणों के लिए बनी है, हजारों सालों की परम्परा पल में थोड़े ही ध्वस्त होती है. रेगिस्तान की बंजर भूमि का कभी गंगा का निर्मल जल नहीं मिलता. फिर भी हजारों सालों से रेगिस्तान

वाह रे बम्बई

आज मुम्बई की यात्रा में आपको ऐसे दो भिखारियों से मिलाता हूँ जो की लखपति हैं..क्या हुआ ? आप तो चोंक गएँ. जी चोंकिये मत..मुम्बई भी बड़ा अजीब शहर है. कौन क्या होता है और कब किस्मत बदल जाए कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. वाकई मुम्बई मायानगरी ही है. मस्सू और सांभा जी दो ऐसे ही भिखारी हैं.जो कि रोजाना इतना कमाते हैं कि मुझे अपनी सेलेरी बताते हुए शर्म आ सकती है. पिछले दिनों लोखंडवाला में जब मैं अपने एक खास दोस्त के साथ मटरगस्ती कर रहा था तो एक बड़ा अजीब सा नज़ारा देखने को मिला. पहले तो विश्वास नहीं हुआ लेकिन फिर याद आया कि इस बारें में बहुत दिन पहले टाइम्स आफ इंडिया में मैंने पढ़ा था. मेरे सामने मस्सू खड़ा था. मस्सू इस इलाके का एक भिखारी है. लेकिन वो कोई मामूली भिखारी नहीं है जनाब. बल्कि इस मायानगरी का लखपति भिखारी है. जिसपर पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है. मस्सू अपने काम में लगा हुआ था. गंदे कपडे पहने इस भिखारी मैंने पहली ही नज़र में पहचान लिया. मन किया.मन हुआ कि मस्सू से थोडी बातचीत की जाए. तो बस पहुँच गया मस्सू के पास. मस्सू ने कई मजेदार बात बताई. उसने बताया कि वो कई टीवी और अखबारों को जानता है

ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है नियति

चलिए ब्लॉग की दुनिया में एक और ब्लॉग का स्वागत करने के लिए तैयार ही जाइये. जी हाँ...हमारी एक दोस्त भी अब ब्लॉग की दुनिया में कूद चुकी हैं और इसी के साथ ब्लॉग की दुनिया में एक और महिला का आगमन हो गया है. नियति मूलत बिहार के पटना की रहने वाली हैं. और इन दिनों जयपुर में एक दैनिक समाचार पत्र में कार्य कर रहीं हैं. उम्मीद हैं कि आप सभी लोग उसका स्वागत करेंगे. नियति और मैंने भोपाल से एक साथ पत्रकारिता की पढ़ाई की है..नियति का हिन्दी पर बहुत ही अच्छी पकड़ है. कम से कम मुझे नियति के ब्लॉग के माध्यम से कुछ न कुछ सिखने को ही मिलेगा. नियति स्वागत है आपका..बस लिखना जारी रखें..

ये है मुम्बई.....यह है मुम्बई

ये है मुम्बई.....यह है मुम्बई थोड़ा सा पाना है, थोड़ा सा खोना है फिर भी मुस्कुराते हुए यहीं जीना है अजीब सी उलझन है ज़िंदगी में फिर भी निभाना हैं कभी आर तो कभी पार फिर भी हर पल तेरे संग निभाना है भागते भागते हांफना है फिर भी थक के थोड़ा और जाना है रुकना रुकना..रुकना नहीं थकना थकना यहाँ नहीं रंग बिरंगे शहर में चलते जाना हैं

दोस्ती और विश्वासघात में अन्तर होता है

दोस्ती और विश्वासघात में अन्तर होता है यह तो सब जानते हैं मैं भी और आप भी लेकिन इसे क्या कहेंगे आप जब आपका सबसे प्यारा दोस्त आपके साथ वो करे जो दुश्मन भी नहीं करता है जी हाँ मैं अपने सबसे प्यारे दोस्त की बात कर रहा हूँ मैंने उसकी दोस्ती को इबारत समझा और उसने हर मोड़ पर मुझे ठगा मैं आज भी उसपर विश्वास करना चाहता हूँ लेकिन करूँ या नहीं करूँ अजीब सी उलझन है

बड़ी अजीब सी सुबह थी आज की

सुबह जब रोजाना की तरह ऑफिस के लिए निकला तो मन ही मैं तय कर लिया था कि आज समय से कुछ पहले ऑफिस पहुचना है लेकिन बुरा हो मीडिया की नौकरी का. नालासोपारा से लोकल पकड़ कर किसी तरह बांद्रा पंहुचा. बांद्रा से ही मुझे माटुंगा रोड के लिए धीमी लोकल पकड़नी थी. प्लेटफार्म तीन पर आया तो सामने शाहिद-करीना वाली लोकल आ रही थी. यह उन दो लोकल ट्रेन में से एक थी जिसे शाहिद-करीना अभिनीत फिल्म ‘जब वी मेट’ के प्रचार प्रसार के लिए काम में लाया जा रहा था, पूरी ट्रेन जब वी मेट के पोस्टरों से अटी पड़ी थी. जल्द बाजी में मैं इसी मैं चढ़ गया. लेकिन कम्बख्त यह मेरी धीमी लोकल ना होकर फास्ट लोकल थी. मन ही मन गुस्सा भी खूब आया और हँसी भी. लेकिन किया क्या जा सकता था. गलती की थी तो सज़ा भुगतनी ही थी. कई दिनों बाद गेट पर लटकने का मौका मिला. लेकिन बाहर के दृश्य को देखकर थोडी निराशा भी हुई. बड़ी तादाद में मुम्बई जैसे शहर में लोग पटरियों के किनारे निपटने के लिए बैठे हुए थे. एक एक नल के नीचे कई लोग नहाने पर विवश थे. बड़ी तादाद में पटरियों के किनारे झुग्गी झोपडी और उसके बाहर निराश और लटके चेहरों के साथ बैठे लोग. क्या आप विश्वास म

क्यों पानी पी पी कर चैनलों को गरिया रहे हो

जिसको देखो वही न्यूज़ चैनलों को पानी पी कर गरिया रहा है. यह कुछ ऐसा ही जैसा कि इस देश के नेताओं और यहाँ की राजनीति को लोग आए दिन कोसते रहते हैं. लेकिन भइया आपने किया क्या है. दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं..एक जो कुछ नहीं करते हैं..ऐसे लोगों से गलती हो ही नहीं सकती है और दूसरे वो लोग होते हैं जो अपने अपने स्तर पर लड़ते हैं एक बेहतर समाज और देश के लिए. मीडिया में बहुत बड़ी तादाद दूसरे किस्म के लोगों की है..कुछ लोगों पहले किस्म के भी हैं. लेकिन इसके बावजूद अधिक निराश होने की जरुरत नहीं है. किसी ने कहा है कि खून तो खून है..गिरेगा तो जम जाएगा, जुर्म तो जुर्म है..बढेगा तो मिट जाएगा..बस ऐसा ही कुछ मेरा मानना है. चैनलों की दुनिया में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है. लेकिन जो बेहतर चैनल हैं, उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है..क्यूंकि लोग उसे देखते नहीं हैं. और जो चैनल भूत प्रेत, जादू टोना, बन्दर बिल्ली, सेक्स और पता नहीं क्या क्या दिखाते हैं उनका बैंक बैलेंस बढता जा रहा है. और यह आय टीआरपी के माध्यम से बदती है. जिसकी टीआरपी सबसे अधिक उसे सबसे अधिक एड मिलते हैं. और टीआरपी यानी किस चैनल को सबसे

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा

मैं कौन हूँ मुझे नहीं पता

मैं कौन हूँ मुझे नहीं पता कोई तो मुझे मेरी पहचान बता दो दर दर ठोकरें खाते हुए अब मैं तुम्हारे सामने हूँ लेकिन यह क्या तुम भी मेरी तरह बिना पहचान के हो आह! मैं फिर ग़लत राहों पर हूँ जहाँ से चला था, वहीं आ गया हूँ आखिर क्यों भटक रहा हूँ मैं अपनी पहचान के लिए कौन सी पहचान ? जो मुझे तुम दोगे नहीं मुझे नहीं चाहिए अपनी पहचान हाँ मुझे नहीं चाहिए अपनी पहचान हाँ मैं किसी एक पहचान में नहीं बंधना चाहता हूँ जैसे तुम बंध चुके हो.

जयपुर की पहली ब्‍लॉगर्स मीट--1

कल राजीव और नीलिमा जी अलावा कई पुराने और नए पत्रकार साथियों से मुलाक़ात हुई तो लगा कि वाकई घर आना सार्थक हो गया है वर्ना मुम्बई में तो बस घर से दफ्तर और दफ्तर से घर. लेकिन जयपुर में ऐसा नहीं है, यहाँ मेरी अपनी लाईफ है जो कि मुम्बई मे नही है. मुम्बई से निकलते वक़्त ही राजीव भाई और नीलिमा जी को जानकारी दे दी थी कि मैं आ रह हूँ तो क्यों नहीं एक जगह बैठकर थोडा गप मर लेते हैं हैं? ब्‍लॉगर्स मीट बस उसी का नतीजा है. जयपुर के जवाहर कला केंद्र में जहाँ एक और शास्त्रीय संगीत का कार्यकम चल रहा था तो दूसरी और राजीव भाई, नीलिमा जी, राजस्थान पत्रिका और हिंदुस्तान टाइम के कई पत्रकार साथियों के साथ हम लोगों कि गपशप चल रही थी. या राजीव भाई और कुछ हद तक मैं अपने शब्दों में भी कहूँ तो पिंकसिटी की पहली आफिशियल ब्‍लॉगर्स मीट। सही कहा ना राजीव भाई? इस मीट में सबसे अच्छा जो एक सुझाव जो आया वो यह था कि हम सब एक दुसरे के ब्लाग का लिंक दें. ताकि हमारी नेट वर्किंग मजबूत बन सके. वहीँ नीलिमा जी से कैरियर को लेकर कुछ ऐसे सुझाव मिले जो कि मेरे जैसे नए पत्रकारों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. कुछ बातें मैने कही तो कुछ बा

मुम्बई............जयपुर................दिल्ली

दोस्तों कुछ व्यक्तिगत काम से जयपुर और दिल्ली जाना हो रहा हैं. जिसके कारण अगले कई दिनों तक ब्लाग से दूर रहना पड़ेगा तो सोच रहा हूँ कि कैसे रहूंगा? वैसे मैंने खुद ही तय किया है की अगले कुछ दिन मुझे काम काज से थोड़ा दूर ही रहना है और ब्लाग को तो हाथ नहीं लगाना है. बात अब केवल मेल या फोन के द्वारा ही हो पायेगी. दिल्ली के ब्लागर आए दिन मीटिंग करते रहते हैं। लेकिन जयपुर में ब्लागरों की तादाद काफी कम है तो दिमाग मे एक ख्याल आ रहा है की क्यों नही समय का थोड़ा सा सदप्रयोग करते हुई जयपुर यानी मेरे अपने शहर के ब्लागरों से एक मुलाकात की राजीव जी और नीलिमा जी हैं। राजीव भाई क्या बोलते हो आप? वाकई ब्लाग भी किसी नशे से कम नहीं हैं। इसी ब्लाग ने कुछ दोस्त दिए तो ऐसे लोगों से भी जान पहचान हुई जो अपने अपने स्तर पर कुछ न कुछ कर रहे हैं इस देश के लिए और समाज के लिए। पत्रकारिता को लेकर आए दिन ब्लाग पर ख़ूब सारे लेख मिल जाते हैं. और तो और हर मुद्दे पर लोगों की राय जानना मेरे जैसे पत्रकार के लिए तो किसी वरदान से काम नहीं हैं. ब्लाग ही है जहाँ मुझे रविश जी, ओम थानवी जी, संजय जी, यशवंत जी, अंकित जी, राजीव जी

ऊंटनी का दूध...और मेरा अनुभव

क्या आपने कभी ऊंटनी का दूध पीया है ? उम्मीद है जवाब होगा नही. खैर मैंने भी अपनी छोटी सी जिंदगी में एक ही बार ऊंटनी का दूध पीया और उसके बाद कभी पीने का साहस नहीं जुटा पाया. बात करीब आज से चार-पाँच साल पहले की है जब मैं जयपुर में रहा करता था. उसी दौरान जिले के एक शख्स की मेहरबानी से मैंने पहली बार ऊंटनी का दूध पीया था. गाँव के उस बुजुर्ग ने इतने प्यार से और इतनी दूर से यह दूध लाये थे कि मैं चाह कर पीने से मना नहीं कर पाया. खैर किसी तरह पी तो लिया लेकिन उसके बाद मैंने तय किया कि कभी भी ऊंटनी का दूध नहीं पियूँगा। आज एक ख़बर पड़ी की ऊंटनी का दूध काफी फायदेमंद होता तो अचानक उन दिनों की याद आ गई. ख़बर यह है की ऊंटनी के दूध में कैल्शियम, विटामिन बी और सी बड़ी मात्रा में होते हैं और इसमें लौह तत्व गाय के दूध की अपेक्षा दस गुना होता है. इसके अलावा इसमें रोग प्रतिकारक तत्व होते हैं जो कैंसर, ऐचआईवी एड्स, अल्ज़ाइमर्स और हैपेटाइटिस सी जैसे रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करते हैं. इस दूध को लम्बे समय तक चलाने के लिए अति उच्च तापमान से गुज़ारना पड़ता है जबकि ऊंटनी का दूध इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता. वही

आपके के लिए.....

गाँधी जयंती के अवसर पर मुम्बई के नरीमन प्वाइंट पर विदर्भ के किसान

भारतीय होने का मतलब ?

मेरा एक दोस्त हैं सर्वेश. उसने अभी अभी एक मेल भेजा जो वाकई शानदार है. इसमे बताया गया है कि जब लोग भारतीय बोलते है तो उसका अर्थ क्या होता है? भारतीय का अर्थ सिर्फ़ किसी एक धर्मं या जाती विशेष से नही बल्कि उससे से जो कि नीचे दी हुई फोटो से. आप ख़ुद देखिये और बताइए क्या यह फोटो भारतीय होने का सही अर्थ बताती है या नहीं?