गर्मी पूरे शबाब पर थी। अंदर भी और बाहर भी। मौसम पूरे शरीर में से पानी निचोड़ लेने के लिए बेताब था तो दिमाग की गर्मी से खून उबल रहा था। आखिर उसने उसे सिर्फ चाहा ही तो था। पागलों की तरह। दीवानों की तरह। बस यही उसका कसूर था। वह उससे पूरी दस साल बड़ी थी। चेहरे पर हल्की झुर्रियों के बावजूद उसके बदन में कसावट थी। इसी कसावट का वह दीवाना था। उसके दिल से से अधिक वह उसके शरीर पर मिटता था। वह शादीशुदा थी। तीन बच्चों की की अच्छी मां थी। और वह..कुछ भी नहीं। उसके ऑफिस के सामने चाय की दुकान का ठेला लगाता था। दिन में दो बार वह उसे देख ही लेता था। वह उससे चाहता था। ऐसा उसने बताया था। एक दिन उसने उससे कहा, मैडम्ममममममम..आप बहुत अच्छी लगती हैं। आगे वह कुछ बोल नहीं पाया। दिन बीत गए। इसके बाद वह कभी नहीं दिखी। गर्मी पूरे शबाब पर थी। उसका सिर फटा जा रहा था। सामने से पागल खाने की बस आते देखकर वह जोर-जोर से चिल्लाने लगना..मैडम्ममममममम..आप बहुत अच्छी लगती हैं।