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Showing posts from June, 2011
...लोग कहते हैं कि दूरियों से प्यार बढ़ता है आखिर ऐसी दूरियां किस काम की जहां प्यार बढ़ाने के लिए फासलों का सहारा लेना पड़े सोचा था तुमसे दूर जाऊंगा तो तुम मेरे और करीब आओगी मैं दूर जाता रहा, तुम दूर जाती रही एक दिन प्यार दूरियों में ऐसा बदला कि मैं चाह कर भी तुम्हें वापस ना पा सके सोचा था कि मैं तुम्हें मना लूंगा, घर ले आऊंगा मैं गलत था, तुम जा चुकी थी बहुत दूर

दिल्ली की बारिश ने इस बार रूला दिया...

एक बार फिर उसका दिल्ली जाना हुआ। शहर में झमाझम बारिश हो रही थी। एयरपोर्ट से घर पहुंचने के लिए उसने टैक्सी ली। टैक्सी में जैसे ही वह बैठा, एफएम के गाने ने उसे अतीत में ले जाकर पटक दिया। गाने के बोल कुछ यूं थे.चलते-चलते क्यूं ये फासले हो गए..इस गाने में वह खुद को खोजने लगा। शीशे से बाहर झांकते हुए उसकी निगाह किसी को खोज रही थी। वह जा चुकी थी। उनके बीच फासले बहुत बढ़ चुके थे। उसने कार को रुकवाया और खुद को भिगोने के लिए बाहर निकला। बरखा पूरे शबाब पर थी। एक-एक बूंदे उसे जला रही थी। वह लगातार भीग रहा था। वह लगातार जल रहा था। भीगते-भीगते जब वह थक गया तो राजपथ के किनारे फुटपाथ पर दोनों हाथों से माथे को पकड़ कर बैठ गया। वक्त का पहिया उलटा चल चुका था। वह पिछले साल में था। वह बारिश की एक खूबसूरत रात थी। जब वह दोनों पहली बार दिलवालों के शहर दिल्ली में मिले थे। दोनों बहुत खुश थे। बारिश की पहली बूंदों की तरह उनकी जिंदगी भी महक रही थी। सबकुछ सामान्य था। दोनों एक दूसरे के प्यार में डूबे हुए थे। बालकनी में बूंदे पूरे शबाब के साथ बरस रही थीं। उसी बालकनी से वह दोनों बारिश की उन मासूम बूंदों के साथ खेल र

जैसे सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

कल देर रात एक गाना सुनते हुए नींद कब लग गई, पता ही नहीं चला। बोल कुछ यूं थे: जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते। इस गाने की कशिश और जिंदगी का फलसफा बयान करने की तासीर अद्भुत है। आपकी कसम फिल्म के इस गाने को याद कीजिए। राजेश खन्ना का चेहरा उस दर्द की दास्तान बन जाता है, जिससे हम और आप इस भागती दुनिया में चाहे-अनचाहे कभी न कभी रूबरू होते हैं। मौके पर अपनी बात न कह पाने का दर्द। अपनी विगत जिंदगी पर नजर डालिए, आपको भी कभी न कभी किसी से कोई बात न कह पाने का गम आज भी सालता होगा। गाहेबगाहे वो दर्द किसी भी रूप में आज भी छलक आता होगा। लेकिन गुजरा मुकाम कभी लौटकर नहीं आता, हम ताकते रह जाते हैं। इस गाने का संदेश यही है। वक्त पर अपनी बात रख दीजिए, अन्यथा पछताते रहिए। यह गाना आपकी और मेरी जिंदगी की एक सच्चई से रूबरू करवाता है। इसे हम मानें या नहीं, लेकिन यह सच है। जिंदगी के सफर में कई लोग आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन जिंदगी पूरी रफ्तार के साथ चलती रहती है। यदि जिंदगी थम गई तो समझिए आप थम गए। जो लोग हमसे बिछुड़ जाते हैं, उनकी सिर्फ यादें रह जाती हैं। लेकिन कई बार मिलने-बिछड़न

लेकिन उसकी आंखों की बारिश को कोई नहीं देख पा रहा था

आज फिर बदरा फिर बरसे। झूम-झूम कर बरसे। लेकिन इस बार उसने खुद को इन आवारा बादलों से बचा लिया था। बाहर भले ही बारिश हो रही थी लेकिन उसकी आंखों में रिमझिम आंसू थे। बादलों को बरसते हुए देखकर वह अतीत में लौट चुकी थी। एक ऐसा अतीत जिसकी खूबसूरत यादों को वह संभाल कर नहीं रख सकती थी। पहली बार उन दोनों की मुलाकात एक बारिश में हुई थी। अंधेरी वेस्ट के उस बस स्टैंड पर वह खुद को बारिश से भगाने की असफल कोशिश कर रही थी। लेकिन जैसे पूरे बारिश का पानी उसे भिगोने के लिए ही बरस रहा था। वह पूरी तरह भीग चुकी थी। पास में ही खड़ा अमित बार-बार नजरें चुरा कर उसे देख रहा था। वह भी उसे तिरछी नजरों से उसे ही देख रही थी। अमित ने सोचा कि बात की जाए या नहीं। कई मिनटों तक वह इस उधेड़बुन में लगा रहा। अंत में हिम्मत कर उसने अपना छाता उसकी ओर बढ़ा दिया। यह देखकर वह सकपका गई। लेकिन उसने मना नहीं किया। बस यह उनकी पहली मुलाकात थी। बारिश थमी और दोनों के रास्ते जुदा हो गए। वह चर्च गेट की लोकल पकड़कर चली गई। जबकि अमित ने मलाड लोकल को पकड़ा। इसके बाद स्टेशन पर हर रोज लाखों लोग अपने सफर के लिए उतरते और चढ़ते रहे। लेकिन अमित कहीं

मेरा कुत्ता भी फेसबुक पर है

काम वाली बाई एक दिन अचानक काम पर नहीं आई तो पत्नी ने फोन पर डांट लगाईं अगर तुझे आज नहीं आना था तो पहले बताना था वह बोली - मैंने तो परसों ही फेसबुक पर लिख दिया था क़ि एक सप्ताह के लिए गोवा जा रही हूँ पहले अपडेट रहो फिर भी पता न चले तो कहो पत्नी बोली = तो तू फेसबुक पर भी है उसने जवाब दिया - मै तो बहुत पहले से फेसबुक पर हूँ साहब मेरे फ्रेंड हैं ! बिलकुल नहीं झिझकते हैं मेरे प्रत्येक अपडेट पर बिंदास कमेन्ट लिखते हैं मेरे इस अपडेट पर उन्होंने कमेन्ट लिखा हैप्पी जर्नी, टेक केयर, आई मिस यू, जल्दी आना मुझे नहीं भाएगा पत्नी के हाथ का खाना इतना सुनते ही मुसीबत बढ़ गयी पत्नी ने फोन बंद किया और मेरी छाती पर चढ़ गयी गब्बर सिंह के अंदाज़ में बोली - तेरा क्या होगा रे कालिया ! मैंने कहा -देवी ! मैंने तेरे साथ फेरे खाए हैं वह बोली - तो अब मेरे हाथ का खाना भी खा ! अचानक दोबारा फोन करके पत्नी ने काम वाली बाई से पूछा, घबराये-घबराए तेरे पास गोवा जाने के लिए पैसे कहाँ से आये ? वह बोली- सक्सेना जी के साथ एलटीसी पर आई हूँ पिछले साल वर्माजी के साथ उनकी कामवाली बाई गयी थी तब मै नई-नई थी जब मैंने रोते हुए उन्हें

तुम

कल रात की बारिश ने उसे पूरी तरह भिगो दिया था। बूंदे उसे तेजाब की तरह जला रही थीं। उसके अंदर बहुत तेजी से बहुत कुछ बदल रहा था। दिल की धड़कन फूल स्पीड में थीं। पसीने और बारिश बूंदों ने उसे पूरी तरह भिगो दिया था। उसने तय किया कि अगली सुबह वह उससे फिर से आंखों में आंख डालकर बात करेगा। लेकिन सुबह से पहले एक काली रात से भी उसे गुजरना था। अचानक वह अतीत में लौट जाता है.. वह दूर तक उसे ताकता रहता था, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी। तपती दोपहर भी उसे ठंडक देती थी। वह जब भी उसकी आंखों में झांकता था, खुद को पूरी तरह उसमें खोया हुआ पाता था। उसकी आंखों में पूरी आकाश गंगा समा सकती थी। उसकी तिरछी नजरों में कुछ अजीब सा था। सागर उसे नर्म पैरों को छूकर जब बहता था तो खुद को धन्य मानता था। दूर तक बिखरी काली रात खुद बड़ी नजाकत से उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में काजल लगाती थी। हिरणियां उससे नजरें नहीं मिलाने में शर्माती थी। उसकी आंखे खूबसूरती के सभी पैमाने को तोड़ती थी। वह जिधर से भी गुजरती थी, खिदमत के लिए फरिश्ते उसके पास खड़े रहते थे। उसकी एक दस्तक से पूरी कायनात में बसंत छा जाता था। (मेरी एक कहानी के बीच

अब सबसे खतरनाक होता है सपनों का अधूरे रह जाना

कल रात पाश मेरे सपने में आए मुझे जगाया और फिर जोर-जोर से चिल्लाए सबसे खतरनाक होता है हमारे सपना का मर जाना सबसे खतरनाक होता है हमारे सपना का मर जाना मैंने सोती आंखों से उन्हें चुप कराया कहा, बंद कीजिए अपनी बकवास अब जमाना बदल चुका है, सपनों का कोई मोल नहीं अब सबसे खतरनाक होता है सपनों का अधूरा रह जाना पाश फिर भी नहीं झुके, मैं भी झुकने को तैयार नहीं बहस पूरे शबाब पर थी उन्होंने मेरी कालर पकड़ी और कहा सपनों को मत मरने दो. मैंने भी कहा, कैसे सपने जो अधूरे रह जाते हैं जो हकीकत बनने से पहले टूट-टूट कर बिखर जाते हैं

ए लव स्टोरी एट फेसबुक - 1

देर रात जैसे ही उसे फेसबुक खोला, इनबॉक्स में एक मैसेज था किसी अमित का। अमित ने उसे एड करने की रिक्वेस्ट भेजी थी। उसने पहले उसे इगनोर करने की कोशिश की फिर उसकी प्रोफाइल में जाकर और डिटेल खोजने लगी। अमित के एबाउट मी को पढ़कर वह खुद को उसे एड करने से नहीं रोक पाई। एबाउट मी में लिखा था.मेरे आसपास हर पल बहुत कुछ घटता है लेकिन मैं बिखरता नहीं हूं। बल्कि आसमां की तरह मेरा और विस्तार होता जाता है और सागर की तरह और गहरा। रात गई, बात गई। अगली सुबह जब वह ऑफिस पहुंची तो अचानक उसके मोबाइल ने बीप किया। फेसबुक पर कोई मैसेज था। यह मैसेज अमित का था। उसने थैक यूं लिखा था। वह तुंरत अपने केबिन की ओर मुड़ी और लैपटॉप ऑन करने के साथ ही फेसबुक लॉग किया। वह ऑनलाइन का। बातों का सिलसिला निकल पड़ा। ऐसे ही कई दिन और रात बीत गई। अब अमित और वह अच्छे दोस्त बन चुके थे। दोनों ने अपने-अपने नंबर भी शेयर कर चुके थे एक दूसरे से। लेकिन अब तक फोन पर बात नहीं हुई थी। वह बरसात की शाम की। शहर को पहली बार बारिश ने भिगोया था। कार ड्राइव करते हुए वह घर की ओर लौट रही थी। अचानक उसका मोबाइल बजा। यह अमित का कॉल था। वह उससे मिलना चाहता

अलविदा..अलविदा..अलविदा..

अमित के मन में कुछ था, जिसे वह सब से छिपा रहा था। अपनी मां, पिता, बहन, दोस्त सबसे। उस रात जब वह अपने दोस्त रबींद्र के घर ठहरा हुआ था तो उसने रबींद्र से एक कागज देने को कहा था। इस कागज पर उसने कुछ लिखा। जब रबींद्र ने उसे दिखाने को कहा तो उसने इससे मना कर दिया। रात को सोते समय उसने रबींद्र से पूछा अगर कोई अपने ऑफिस की चौथी मंजिल से छलांग लगा दे तो क्या वह बच पाएगा? इस पर रबींद्र से उसे चुप कराते हुए सोने को कहा। एक मध्यवर्गीय दंपती के 27 साल के बेटे अमित ने अपने दफ्तर की चौथी मंजिल से कूद कर सुसाइड कर लिया था। अगले दिन अमित का अंतिम संस्कार कर दिया गया। उधर दूसरी ओर पूरा दफ्तर परेशान था कि आखिर ऐसा कैसे हो गया? ऑफिस में यह भी चर्चा है कि अमित इमोशनल स्ट्रेस में था। माना जा रहा है कि अपने माता-पिता से दूर रहने के कारण उसके मन में यह स्ट्रेस था, जिसने उसे सुसाइड के लिए प्रेरित किया। अमित के बैग से पुलिस को जो सुसाइड नोट मिला है, उसमें उसने चार लोगों को संबोधित करते हुए कुछ बातें कही हैं। उसने अपनी मां को लिखा है कि वह एक नई दुनिया में कदम रखने जा रहा है। वह आशा करता है कि उसकी मां अपना खुद

कभी जीते थे एक-दूसरे की बाहों में

कभी जीते थे एक-दूसरे की बाहों में आज हो गए बेगाने कल तक जिनकी नजरों में हम थे आज और कोई है कल तक जिनकी नजर हमें खोजती थीं आज किसी और को फिर भी मैं खुश हैं क्योंकि उनकी नजर कोई तो है उनसे कोई गिला नहीं, कोई शिकवा नहीं मैंने ही तो कहा था, भूल जाओ मुझे हम नहीं बने हैं एक दूजे के लिए और जब आज उनका दिल धड़कता है किसी और के लिए तो फिर मुझे क्यों दर्द होता है क्या मैं आज भी तुमसे प्यार करता हूं? हां करता हूं, बिल्कुल करता हूं जब तक दिल धड़केगा, बस तुम्हारे लिए ही धड़केगा हो सके तो मुझे कर माफ फिर से मुझे बसा लो अपनी निगाहों में

क्या तुम मुझे कभी माफ नहीं करोगी?

अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि तुम इतना उदास क्यों रहते हैं। कम क्यों बोलते हो? मेरे पास मुस्कुराने के अलावा कोई जवाब नहीं होता है। लेकिन मैं जानता हूं कि यह मुस्कुराहट सिर्फ लोगों को बेवफूक बनाने के लिए है। उसे गए कई दिन हो गए। मैं हर दिन उंगुलियों पर गिनता हूं कि वह फिर लौटेगी। इंतजार कब दिन से महीने में बदल गए, यह सिर्फ मैं जानता हूं। खैर.देर रात हो चुकी है। मैं छत पर बैठा हूं जहां से पूरा शहर नजर आता है। आसमान शायद साफ है लेकिन मुझे धुंधला सा दिखाई दे रहा है। आंखों को पोछता हूं तो महसूस हुआ कि आंखों में पानी है। क्या तुम्हे याद है जब हम एक साथ इन्हीें आंखों से कई सपने देखे थे। याद है, मुझे पूरा यकीन है। वह अतीत में लौट चुका था। झुलसा देने वाले गर्मी भी उसे अच्छी लगती थी जब वह उसके साथ होता था। उसके होने का अहसास भी काफी था मेरे पास। लेकिन आज मैं अकेला हूं। सोच रहा हूं कि आखिर मेरे गुनाह की इतनी बड़ी सजा मुझे क्यों मिली। कहते हैं कि सुबह का भूला यदि शाम को लौटे तो उसे माफ कर देना चाहिए। क्या तुम मुझे माफ नहीं करोगी। तुम मुझसे भले ही कोसो दूर चली गई हो, भले ही मेरे एक फैसले से हमारे बी

हाथ छूटे, रिश्ते छूटे

कल तक मैं और तुम हम थे कल तक हमारे सपने एक थे कल तक हम दो जिस्म एक जान थे कल तक तुम्हारी नजरों से मैं दुनिया देखता था कल तक हम सिर्फ हम थे कल तक पूरी दुनिया से हम अनजान थे कल तक मुझमें तुम और तुममें मैं था आज सबकुछ बदल गया मैं मैं नहीं रहा, तुम तुम नहीं रही सपने बिखरे, हाथ छूटे कल तक जो हम थे आज मैं और तुम हो गए आज भी दुनिया देखता हूं बस अपनी नजरों से आज दुनिया अनजान नहीं रही साथ छूटा, रिश्ता टूटा हम में से तुम हट गई तो हम मैं बन गया