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Showing posts from August, 2011

पाश की कविताएं

सभी कविताएं मशहूर कवि पाश की हैं। उनका जन्म 9 सितंबर 1950 को पंजाब के तलवंडी सलेम, तहसील नकोदर, जिला जालंधर में हुआ था। 23 मार्च 1988 को अमेरिका लौटने से दो दिन पहले तलवंडी सलेम में अभिन्न मित्र हंसराज के साथ खालिस्तानी आतंकवादियों की गोलियों के शिकार होकर शहीद हुए। 1- बस कुछ पल और तेरे चेहरे की याद में बाकी तो सारी उम्र अपने ही नक्श खोजने से फुरसत न मिलेगी बस कुछ पल और यह सितारों का गीत फिर तो आसमान की चुप सबकुछ निगल जाएगी....। देख, कुछ पल और चांद की चांदनी में चमकती यह तीतरपंखी बदली शायद मरुस्थल ही बन जाए ये सोए हुए मकान शायद अचानक उठकर जंगल की ओर ही चल पड़ें.... 2- उनकी आदत है सागर से मोती चुग लाने की उनका रोज का काम है, सितारों का दिल पढ़ना। 3- हजारों लोग हैं जिनके पास रोटी है चांदनी रातें हैं, लड़कियां हैं और 'अक्ल' है हजारों लोग हैं, जिनकी जेब में हर वक्त कलम रहती है और हम हैं कि कविता लिखते हैं... 4- मेरे पास चेहरा संबोधक कोई नहीं धरती का पागल इश्क शायद मेरा है और तभी जान पड़ता है मैं हर चीज पर हवा की तरह सरसराता हुआ गु

एक अधूरा प्रेम पत्र

उसने एक बार फिर से कोशिश की कि वह आपस आ जाए। उसने अपना लैपटॉप ऑन किया और कुछ लिखने लगा। वह क्या लिख रहा है, उसे भी नहीं पता। शुरूआत कुछ यूं की.. प्रिय गीत, तुम जा चुकी थी। तुम चली गई आखिरकार। कितनी कोशिश की थी तुम्हें रोकने की मैंने। सबकुछ बेकार रहा। तुम नहीं रूकी। तुमने तय कर लिया कि अब जो भी हो जाए, मेरे जैसे शख्स के साथ कोई संबंध नहीं रखोगी। तुम लगातार मुझसे दूर होती जा रही थी। और मैं सिर्फ देखता ही रह गया। जिस शहर में हम पहली बार मिले थे, उसी शहर में हम जुदा भी हुए। शुरूआत के कुछ महीने तुम कितना दुखी थी। ऑफिस हो, मुंबई हो या फिर खुद का घर, हर जगह तुम्हारे जाने के बाद की उदासी छाई हुई थी। तुम जा चुकी थी। मैं तो बहुत पहले ही जा चुका था। बाद में लौटकर भी आया मैं। लेकिन तुम नहीं लौट पाई। नहीं चाहते हुए भी मुझे एक फैसला लेना पड़ा। हर बार कि तरह इस बार भी मैंने ही फैसला लिया। इस बार तो तुम्हें इसके बारे में बताया भी नहीं। लेकिन मेरी जिंदगी में आने का और मुझे अपनी जिंदगी में लेना का फैसला तुमने ही किया था। मैं तुम्हारा पहला प्यार था। ऐसा तुमने बताया था लेकिन फिर भी तुम वापस नहीं आ पाई। तु

सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का सांप 1

सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का सांप अब तक यही सुना होगा आपने गलत। बिल्कुल गलत। आस्तीन के सांप से ज्यादा खतरनाक होता है आस्तीन का इंसान वह कोई भी हो सकता है बस सांप नहीं हो सकता वह इंसान के भेष में कोई भी हो सकता है वह आपका सबसे अच्छा दोस्त, साथी भी हो सकता वह अपकी जान पर नजर रखता है वह आपको धोखा दे सकता है वह आपकी ऐसी-तैसी करने में हमेशा तत्पर रहता है क्योंकि वह आस्तीन का इंसान है वह किसी भी जाति का हो सकता है किसी भी धर्म का हो सकता है आस्तीन का इंसान होना ही उसकी सबसे बड़ी जाति है, धर्म है

सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का इंसान होना...

सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का इंसान होना... डसता नहीं छुऱा भोंकता है पीठ में.... कांटे बिछाता है रास्ते में...फूलों की आड़ में... बांहों में फलता-फूलता है...अमरबेल की तरह पेड़ को ही खोखला कर देता है एक दिन... जड़ों में डालता है मट्ठा...धीमे जहर सा... और कभी सींचता है तेजाबी जहर से... बुनियादें हिलाने तक रहता है आस्तीन में... गिरता है जब कोई महल...तभी खिसकता है... नए शिकार की खोज में....सारे हथियार लेकर... जीवन भर की भागदौड़ तभी विराम लेती है... जब खुद की सोच का जहर कर देता है तन नीला... या कभी, कभी खुद की आस्तीन से ही निकल आता है इंसान... तब जाती है जान...फरामोशी के इल्जाम से... सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का इंसान...

कॉफी हाउस

कई दिनों बाद आज उसका न्यू मॉर्केट वाले कॉफी हाउस में जाना हुआ। उसने अंदर घुसते ही वेटर को एक ब्लैक कॉफी लाने का आर्डर दिया और सीट पर दोनों हाथ रखकर बैठ गया। वह कुछ सोच रहा था लेकिन कॉफी की खुशबू ने उसका ध्यान भंग किया। गर्मागम कॉफी का पहला घूंट गले में उतरने से पहले ही अटक गया। सामने से गीत और दुष्यंत आते हुए दिखे। दोनों एक दूसरे का हाथ थामें अंदर चले आ रहे थे। एक दूजे में खोए हुए से वे सीधे कॉफी हाउस के फैमिली वाले हिस्से में चले गए। उनकी नजर अमित पर नहीं पड़ी थी क्योंकि वो नीचे वाले हिस्से में बैठा हुआ था। शहर का यह कॉफी हाउस किसी जमाने में पत्रकारों, साहित्यकारों, नेताओं, स्टूडेंट्स और बुद्धिजीवियों की सैरगाह हुआ करता था। अब इसे दो भागों में बांट दिया गया है। एक हिस्सा पूरी तरह आधुनिक रेस्टोरेंट की शक्ल अख्यिातर कर चुका है तो दूसरा हिस्सा आज भी अतीत में ही उलझा हुआ है। उन दोनों को देखकर पहले तो अमित ने उन्हें नजरअंदाज करने की कोशिश की लेकिन फिर उन्हें उस वक्त तक देखता रहा, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो गए। अमित, दुष्यंत और गीत एक ही ऑफिस में काम करते थे। अमित ने जब पहली बार गीत को द