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Showing posts from 2007

पाश की दो कविताएं

पाश से मैं पहली बार उस समय रुबरु हुआ था जब राजस्‍थान के एक आंदोलन के दौरान उनकी कुछ लाइनें आंखों के सामने से गुजरी थी, इसके बाद बस फिर क्‍या था। मैं और पाश। कई दिनों तक पाश की कविता खोज खोज कर पढ़ा और आज कहा सकता हूं कि बाबा नागार्जुन के बाद पाश ही मुझे सबसे पास दिखते हैं। पेश है पाश की दो कविताएं 1 मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी , लोभ की मुठ्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से मर जाना न होना तड़प का सब सहन कर जाना घर से निकलना काम पर और काम से लौटकर घर आ जाना सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना। 2 जीने का यही सलीका होता है प्यार करना और जीना उन्हें कभी आएगा नहीं जिन्हें जिन्दगी ने हिसाबी बना दिया जिस्मों का रिश्ता समझ सकना- ख़ुशी और नफरत में कभी लीक ना खींचना जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फिदा होना सहम को चीर कर मिलना और विदा होना बहुत बहादुरी का काम होता है मेरी दोस्त मैं अब विदा होता हूं तू भूल जाना मैंने तुम्हें किस तरह पलकों में पाल कर जवान किया कि मेरी नजरों ने क्या कुछ नहीं किया तेरे नक्शों की धार बांधने

ई है मुंबई नगरिया तू देख बबुआ

बड़ा अजीब शहर है यह। यहां आप सरदार को भीख मांगते देखते सकते हैं। यहां आप किसी मारवाडी को जूते पालिस करते देख सकते हैं। फुटपाथ पर दुकान लगाने वाला आपसे अधिक कमाता हुआ दिख जाएगा इस शहर में। जी हां मैं मुंबई की बात कर रहा हूं। वाकई बड़ा अजीब शहर है मुंबई। लाखों की तादाद में हर रोज यहां के कुर्ला, दादर और मुंबई सेंट्रल जैसे रेलवे स्‍टेशन पर लोग अपने सपनों के साथ उतरते है। कुछ लोगों के सपने सच में बदलते हैं यहां और कुछ के इस शहर के भीड़भाड़ में गुम हो जाते हैं। इसी के साथ हर दिन न जाने यहां की भीड़ में गुम भी हो जाते हैं। इसके बावजूद इस शहर का एक अलग नशा है। दंगों, बाढ़ और बम विस्‍फोटों के बाद यह शहर फिर से और मजबूत होकर उभरता है। दहशतगर्द भी परेशान होते हैं इस शहर को निशाना बनाकर। लेकिन यह शहर कभी सोता ही नहीं है। हमेशा जिंदा रहा है मुंबई। और लोगों को जिंदादिली से रहना सिखाता है मुबई। आधी से अधिक आबादी झुग्‍गी झोपड़ी में रहती है लेकिन यहां की चमक के आगे ये लोग बौने साबित होते हैं। देखने वालों को यहां की रंगीन रातें और इस शहर की चमक दमक ही दिखती है। लेकिन रेलवे लाइन के किनारे हजारों की तादा

एक प्रेम कथा --वह खूबसूरत शाम उसके जीवन की सबसे भयावह शाम में बदल चुकी थी

उम्र बढ़ने के साथ कुछ पुराने रिश्‍तें कमजोर पड़ते जाते हैं और इसके साथ नए रिश्‍तों की नींव पड़ती जाती है। उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। वह जीवन के उस पड़ाव पर खड़ा था जहां से वह अपनी खुद की नजरों से दुनिया देखना चाहता था। अब वह जवान हो रहा था। या कहें हो चुका था। इन्‍हीं नए रिश्‍तों में उसका पहला रिश्‍ता पाखी से बना और शायद यह अंतिम भी था। दोनों एक ही मीडिया संस्‍थान में काम करते थे। घर से दूर। दोनों के अरमान एक थे बस रास्‍ते जुदा। वह समय के साथ चलना चाहता था और पाखी समय से आगे। लेकिन मंजिल एक थी। शहर की सबसे खूबसूरत शाम थी वह लेकिन उसे नहीं मालूम था कि वह आज के बाद कभी भी उससे नहीं मिलने वाली थी। पाखी-अमित मैं यह शहर छोड़कर जा रही हूं। लेकिन क्‍यूं और यह अचानक कैसे ? बस मुझे जाना पड़ रहा है। और प्‍लीज कुछ पूछना मत। यह अंतिम लाईने थी पाखी थी। और वह खूबसूरत शाम उसके जीवन की सबसे भयावह शाम में बदल चुकी थी। लेकिन कहते हैं ना कि समय का मरहम बड़े से बड़े रोग को मिटा देता है। उसके साथ भी ऐसा ही हुआ। वह पाखी को भूल चुका था। समय बीतता गया और पुराने घाव खत्‍म होते गए। अचानक एक दिन उसे एक कॉ

वाह वाह बनारस

राजस्थान पत्रिका समूह के डेली न्‍यूज में पिछले ही रविवार को बनारस को लेकर मेरा एक लेख छपा है। उम्‍मीद है कि इसे पढ़कर आप अपनी राय से मुझे जरुर अवगत कराएंगे ताकि मैं अपनी लेखनी में कुछ और सुधार कर सकूं । आपकी राय और सुझाव के इंतजार में । आपका आशीष

तुम्‍हें गए कई दिन हो गए

तुम्‍हें गए कई दिन हो गए फिर भी कहीं आसपास ही लगती हो आज भी तुमसे मिलकर दिल की बात कहना चाहता हूं फिर डर लगता है कहीं तुम बुरा न मान जाओ इसीलिए चुप रहता हूं कभी हो तो ख्‍वाब में आना दो चार दिल की बातें करेंगे कभी हसेंगे तो कभी रोएंगे मैंने तुम्‍हें चाहा है पागलों की तरह फिर भी तुम बेवफा हो गए तुम्‍हें गए कई दिन हो गए

शापिंग मॉल में रिक्‍शा वाला

शापिंग मॉल कल्‍चर भी अजीब होता है। आप सोच रहे होंगे कि मैने अजीब शब्‍द का उपयोग क्‍यों किया। लेकिन मैं क्‍या करूं, कल जो देखा उसके बाद अजीब ही शब्‍द सही लग रहा। मॉल कल्‍चर ने जहां छोटे कारोबारियों को धंधें को कम किया है वहीं मल्‍टीनेशलन कंपनियों के अलावा देश की बड़ी कंपनियों की जेब को भर भी रही है। कल मैं शहर के मैग्‍नेट शॉपिंग मॉल में गया तो वहां एक बड़ा अजीब नजारा देखने को मिला जिसने मेरी उस सोच को बदल दिया कि मॉल केवल अमीरों के लिए ही है। कल जब मैं इस मॉल में कुछ खरीददारी कर रहा था तो मुझे एक बंदा मिला जिसने एक मैली सी शर्ट और पैंट पहना हुआ था। पांव में हवाई चप्‍पल। यह देखकर मेरे दिमाग में बस यही आ रहा था क‍ि यह इंसान यहां क्‍या लेने आया है। इसका जवाब मुझे उस वक्‍त मिला जब भुगतान के समय वह लाइन में लगा। उसने एक कपड़े धोने की साबुन और नारियल तेल की सबसे छोटी शीशी खरीदी। बिल करीब 18 रुपए के आसपास था। मैं भी जल्‍दी से भुगतान कर के उसे साथ ही बाहर निकला तो देखते हुए यह महाशय आटो रिक्‍शा चलाते हैं। किसी तरह हिम्‍मत करके मैने उनसे पूछ ही लिया कि आप मॉल में क्‍या केवल यह लेने के लिए आए थे

शानदार लेकिन परेशान है मुंबई की महाकाली गुफा

मुंबई की नाम सुनते ही यदि आपके जेहन में एक ऐसे शहर की छवि उभर कर सामने आती है जो कि अमीरों का एक अत्‍याधुनिक शहर है तो एक बार और सोच लें। जी हां मुंबई में और इस शहर के आसपास कई ऐसे इलाके हैं जो आपकों हजारों साल पहले ले जा सकते हैं। मैंने कभी सोचा नहीं था कि कंक्रीट के इस जंगल में मुझे इतनी शानदार गुफा मिलेगी। लेकिन मिली. जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ मुम्बई के अँधेरी उपनगर में स्थित महा काली गुफा की. चारों और कंक्रीट के जंगल और बीच में यह गुफा. अँधेरी पूर्व से करीब दो किलोमीटर दूर है महाकाली. यह वही गुफा है जिसने संघर्ष के दिनों में विश्‍व विख्‍यात लेखक और गीतकार जावेद अख्‍तर को जगह दी थी। कई रात अख्‍तर साहब ने यहीं बिताई है। महाकाली गुफा के इतिहास की बात करें तो करीब यह दो हजार साल पुरानी बौद्व गुफा है। महाकाली गुफा के बीचोबीच एक शिव मन्दिर है। यहाँ एक विशाल शिवलिंग हैं। लम्बाई करीब आठ फीट। इस शिवलिंग पर मैंने कुछ स्थानीय लोगों को एक का सिक्का चिपकाते देखा. बातचीत में पता चला की कि यहाँ सिक्का चिपकाने से जो भी माँगा जाता हैं, वह मिल जाता हैं. इस मन्दिर के परिसर की दीवार पर कुछ देवी देवता

पुराने सेल फोन से पाई मुक्ति

पुराने सेल फोन से पाई मुक्ति मैने अंतत: अपने एक साल पुराने सेल फोन से छुटकारा पा ही लिया। नोकिया ६०७० अब मेरे पास नहीं है और इसी के साथ सबसे अधिक राहत मेरे ऑ‍‍फ‍िस की लड़कियों को मिली है। सही है न अब मेरे सेल फोन से उनको कोई डर नहीं है। मेरे नए सेल फोन में अब न तो कैमरा है और न म्‍यूजिक प्‍लेयर। मेरा नया सेल का मॉडल न 6030 है। पुराने वाले सेल को मैने अपने ही मोहल्‍ले के एक बंदे को बेच कर गंगा नहा लिया। मुंबई की गरमी उत्‍तर भारत जहां कड़ाके की ठंड से बेहाल है, जबकि मेरा जैसे आम उत्‍तर भारतीय मुंबई की गरमी से। हालांकि सुबह थोड़ी सी ठंड लगती है लेकिन पंखा पिछले दो सालों से बंद नहीं हो पाया है। लोकल में चढ़ने के बाद सुबह की यह ठंड गरमी में बदल कर पूरे शरीर को पसीने से तर बदर कर देती है। लेकिन कोई उपाय नहीं है। जब तक मुंबई में हैं तब है इस लोकल ट्रेन और यहां के सुहावने मौसम से छुटकारा नहीं मिल सकता। क्रिसमस की पार्टी कल ऑ‍‍फिस में क्रिसमस की पार्टी है। कहा गया है कि सबको लाल कपड़े पहन कर आना है ताकि क्रिसमस के रंग में रंगा जाए। तो ऐसे में मुझे घर पर ही रहना अधिक बेहतर लग रहा। लाल कपड़े दे

माँ

वो थोडी बूढी हो गई है। उसकी कमर बढ़ती उम्र के साथ झुक रही है लेकिन उसकी ममता में आज भी कोई कमी नहीं आई है. वो पहले से कहीं ज्यादा ही अपने बच्चों को चाहती है. लेकिन अब वह अपने ही बच्चों के लिए बोझ है. जी हाँ वो और कोई नहीं सिर्फ़ माँ है. यह किसी की भी माँ हो सकती है. बस जरा आस पास देखने की जरुरत है. यदि आप से पूछा जाए कि दुनिया में सबसे पवित्र और सच्चा रिश्ता कौन सा है तो हो सकता है सबके जवाब अलग अलग हों। लेकिन मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता है माँ और संतान का. यदि विश्वास नहीं होता तो अपने आसपास ऐसे लोगों को तलाश करें जिनकी माँ नहीं है और फिर उनसे इस रिश्ते के बारें में पूछें. मक्सिम ग्रोकी की माँ किताब यदि आपने पढ़ा है तो ग्रोकी की माँ जाने कितनी माँ हमारे आस पास ही मिल जाएँगी. बस महसूस करने की जरुरत है। यदि मैं अपनी बात करूँ तो मुझे दुनिया में माँ से प्यारी और कोई नहीं लगती है. मेरी माँ दुनिया की सबसे अच्छी, खूबसूरत और संवेदनशील महिला है. और जी हाँ इस बात पर मुझे गर्व है. पिछले दिनों दो सालों बाद जब बनारस जा रहा था तो ना जाने क्यों बचपन के दिन याद आ रहे थे. सबसे अधिक अपनी माँ के सा

ये जो ज़िंदगी की किताब है............

कई महीनों से सोच रहा था कि कुछ अपने जीवन के बारे में लिखा जाए. समय के अभाव में लिख नहीं पा रहा था. लेकिन अब मन की सारी भड़ास निकालने का वक्त आ गया है. लगातार रूटीन के काम करते करते अब मैं पूरी तरह पक कर तैयार हूँ. वहीं न्यूज़, वही ऑफिस का माहौल और वही पुराने चेहरे. उफ़ समझ में नहीं आ रहा है क्या किया जाए. और ऊपर से २५ दिसंबर खड़ा है. अब आप ही बातें ऐसे माहौल में कैसे काम किया जाए. सुबह करीब ९ बजे से लेकर सात बजे शाम तक ऑफिस में ज्यादा समय निकल जाता है और बाकी समय लोकल और घर पर. अब मेरे पास ख़ुद के लिए समय ही नहीं बचता है. पिछले दिनों हरिवंश राय बच्चन की क्या भूलूं क्या याद करूँ पढने शुरू किया था लेकिन पूरी हो नही पा रही है. अब क्या किया जाए. कई महीनों से डायरी को भी हाथ नहीं लगाया है. कुछ ऐसा हो भी नहीं रहा है कि जिसे लिखा जाए. लेकिन मेरे जैसे शख्स के लिए कुछ न कुछ लिखना जरुरी है. और जिस दिन मैंने लिखना छोड़ दिया, उस दिन मेरा तो काम तमाम ही है. मेरा पहला प्यार जन्म स्थान बनारस है तो लगता है कि बनारसी ठसक भी होनी चाहिए. लेकिन नहीं है. कई लोगों ने मुझसे यह शिकायत की है कि भाई साहेब आपमें व

धूमिल की एक कविता

मोचीराम राँपी से उठी हुई आँखों ने मुझे क्षण-भर टटोला और फिर जैसे पतियाये हुये स्वर में वह हँसते हुये बोला- बाबूजी सच कहूँ- मेरी निगाह में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है मेरे लिये, हर आदमी एक जोड़ी जूता है जो मेरे सामने मरम्मत के लिये खड़ा है। और असल बात तो यह है कि वह चाहे जो है जैसा है, जहाँ कहीं है आजकल कोई आदमी जूते की नाप से बाहर नहीं है फिर भी मुझे ख्याल है रहता है कि पेशेवर हाथों और फटे जूतों के बीच कहीं न कहीं एक आदमी है जिस पर टाँके पड़ते हैं, जो जूते से झाँकती हुई अँगुली की चोट छाती पर हथौड़े की तरह सहता है। यहाँ तरह-तरह के जूते आते हैं और आदमी की अलग-अलग ‘नवैयत’ बतलाते हैं सबकी अपनी-अपनी शक्ल है अपनी-अपनी शैली है मसलन एक जूता है: जूता क्या है-चकतियों की थैली है इसे एक आदमी पहनता है जिसे चेचक ने चुग लिया है उस पर उम्मीद को तरह देती हुई हँसी है जैसे ‘टेलीफ़ून ‘ के खम्भे पर कोई पतंग फँसी है और खड़खड़ा रही है। ‘बाबूजी! इस पर पैसा क्यों फूँकते हो?’ मैं कहना चाहता हूँ मगर मेरी आवाज़ लड़खड़ा रही है मैं महसूस करता हूँ-भीतर से एक आवाज़ आती है-’कैसे आदमी हो अपनी जाति पर थूकते हो।’ आप यकीन

खोया खोया चाँद को तलाश है दर्शकों की

इसे किसकी बद किस्मती कहें कि अच्छी फिल्मों को दर्शक नहीं मिल पाते हैं. सांवरिया के बाद खोया खोया चाँद के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है जो कि अच्छे फ़िल्म निर्माताओं को निराश करने के लिए काफी है. सुधीर मिश्रा एक ऐसे फ़िल्म मेकर हैं जिन्हें किसी पहचान की जरुरत नही हैं. खोया खोया चाँद भी उन्हीं के द्वारा बनाईं गई एक अच्छी फ़िल्म है. लेकिन इसे दर्शक नहीं मिल पा रहे हैं. मैं जिस हाल में यह फ़िल्म देखने जाता हूँ, वहां मुझे केवल १२ दर्शक ही दिखते हैं. अब आप इस फ़िल्म का अंदाजा लगा सकते हैं. इस फ़िल्म में कई दृश्य आपको मधुबाला और मीना कुमारी की याद दिला सकते हैं. साठ-सत्तर के दशक को परदे पर उतारने के लिए इस फ़िल्म में काफी मेहनत की गई है. लेकिन फ़िल्म में कभी कभी कुछ भटकाव नजर आता है. यह समझना थोड़ा मुश्किल है कि निर्माता इस फ़िल्म में कहना क्या चाहता है. कहानी कहीं कहीं थोडी बोझिल हो जाती है लेकिन इसके बावजूद कम से कम एक बार इसे जरुर देखा जा सकता है. शाहनी आहूजा और सोहा अली खान मुख्य भूमिका में है. लेकिन आप रजत कपूर, सोनिया, सौरभ शुक्ला और विनय पाठक को नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं. निखत (सोहा अली

यदि आप मुम्बई में रहते हैं तो जरुर पधारें..

राजनीति में युवाओं का महत्व विषय पर यदि आप प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय सलाह समिति के सदस्य और लोक सत्ता मूवमेंट के सदस्य डॉ जयप्रकाश नरायण को सुनना चाहते हैं तो सोमवार यानि तीन दिसम्बर को सुबह १०.४५ बजे मुम्बई यूनिवर्सिटी के कलीना कैम्पस के मराठी भाषा एवं साहित्य भवन में जरुर पधारें.. Dr Jayaprakash Narayan Ex IAS, till recently member of National advisory Council to the Prime Minister and the five-member second Administrative Reforms Commission . Leader of Lok Satta Movement, a leading civil society movement for political and governance reforms. Recently Lok Satta Movement has launched Lok Satta Political Party in Andhra Pradesh with the aim of bringing in a new political culture. Speaks on "Importance of Youth in Politics" 3rd, December 2007 Day: Monday Time: 10:45 AM Venue: Marathi Bhasha & Sahitya Bhavan, Kalina Campus, Mumbai University. Presided by: Dr. Vijay Khole – Vice Chancellor, Mumbai University

एक अधूरी प्रेम कथा

शहर का पुराना चौक आज कुछ ज्यादा ही व्यस्त था। शहर की सभी मोटर गाडियाँ दिन में एक बार इधर से जरुर गुजरती थीं. आज भी गुजर रही थीं. पास में ही टाउन हाल का खाली भवन, जहाँ कभी कभी कोई भटकता हुआ राहगीर आ जाता है. इसी भवन में वो दोनों कुछ ऐसे फैसले ले रहे थे जो कि उनकी ज़िंदगी के साथ कई और लोगों का जीवन बदलने वाला था. 'मुझे नहीं पता कि मैं जो बोलने जा रहा हूँ उसके बाद तुम्हारा क्या रि-एक्शन होने वाला है। लेकिन यदि मैंने और कुछ दिनों यह बात अपने दिल में दबाई तो शायद मैं इसका बोझ सह नहीं सकूं. मैं जीना चाहता हूँ. एक भरपूर ज़िंदगी चाहता हूँ. मुझे पता कि मेरी बात सुनने के बाद या तो तुम यहाँ से उठकर चल दोगी या फिर मुझे कभी माफ़ नहीं करोगी. लेकिन मेरे लिए तुम्हारी खुशी के संग अपनी खुशी भी चाहिए.' 'अब तुम बोलोगे क्या हुआ है तुम्हे?' ' कुछ नहीं' 'फिर मुझे यहाँ क्यों बुलाया है? अब जल्दी बोल दो' 'तुम नाराज़ तो नहीं होगी?' ' अरे नहीं महाराज जी' उसने हँसते हुए कहा। ' मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता हूँ' उसे कुछ नहीं कहा। अब दोनों

एक तरफा प्यार और नायक की मौत

अन्य कहानियो की तरह इसमें भी एक प्रेमी है और एक प्रेमिका है। कहानी की शुरुआत यह है कि एक लड़के को एक लड़की से प्यार हो जाता है. एक तरफा प्यार...दोनों एक ही कालेज में एक साथ पांच सालों का सफर तय करते हैं. लेकिन कभी भी लड़के ने लड़की से कहा कि वो लड़की से कितना प्यार करता है. दोनों में गहरी दोस्ती थी. जैसे दो जिस्म एक जान हों. दोनो ही छोटे छोटे कस्बे से आए थे। दोनों के अपने अपने सपने थे. और दोनों किसी भी किम्मत पर अपने अपने सपने को पाने में लगे हुए थे. उस लड़की के प्यार में पड़कर वो लड़का पहले अपने सच्चे दोस्तों को खोता है और फिर अपने कैरियर को भी दांव पर लगा देता है. वो उस लड़की का कहा कभी भी नहीं टालता था. घर के काम से लेकर नोट बनाने तक के मामले में वो एक ही पाँव पर खड़ा दिखता था. कहते हैं ना प्यार अँधा होता है. यहाँ सिर्फ अँधा ही नहीं बहरा और लंगडा दोनों ही था. देखते देखते कई साल बीत गए। धीरे धीरे उस लड़की ने लड़के से मिलना छोड़ दिया और एक दिन लड़के के घर पर शादी का कार्ड आया. यह उसी लड़की की शादी का कार्ड था. उसकी आँखों में अब गंगा जमुना बह रही थी. उसने तुरंत उस लड़की को फोन किया॥ और बस इ

युवा पत्रकार नीरज जी के परिजनों की मदद की मुहिम

दोस्तों हमारी जमात के एक साथी नीरज जी हमें छोड़कर चले गएँ हैं। उनका अचानक यूं चला जाना पत्रकारिता जगत के लिये एक भारी सदमा हैं। भड़ास में अंकित जी ने बताया कि सहारनपुर में कार्यरत IBN -7 के युवा पत्रकार नीरज चौधरी का देर रात एक सड़क दुर्घटना में देहावसान हो गया। नीरज सहारनपुर की पत्रकारिता में अपने अच्छे स्वभाव एव उत्कृष्ट काम के लिये जाने जाते थे। नीरज अपने परिवार में अपनी धर्म पत्नी एवं चार वर्षीय पुत्र पीछे छोड़ गये हैं। एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हम सब अपने अपने स्तर पर नीरज जी के परिवार की कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं. यदि आप कुछ मदद करना चाहे तो यशवंत जी से 99993-30099 पर या मुझसे 98675-75176 पर बात कर सकते हैं. नीरज जी के परिजनों से बात करने के बाद आपको उनका एकाउंट नंबर बता दिया जाएगा, जिसमें आप रकम ट्रांसफर कर देंगे . अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.हम उम्मीद करते हैं कि आप अपने स्तर पर जरुर कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं. आशीष महर्षि, मुंबई यशवंत सिंह, नई दिल्ली अब तक मदद करने वालों में ये लोग प्रमुख हैं। यशवंत सिंह, अजय ब्रह्मात्मज, मुंबई, अंकित माथुर, नई दिल्ली, रियाज हाशमी, स

रेगिस्तान और वो : बंजर जमीं इंतजार की- भाग चार

हवा हल्की सी सर्द हो चुकी थी और इसी के साथ इस शहर का मौसम और मिजाज दोनों बदलने लगा था. लेकिन आज से करीब बारह साल पहले इस शहर का मिजाज थोड़ा अलग सा था. जब इस शहर की हवाओं में दोनों के प्यार की खुशबू हुआ करती थी. लेकिन आज नहीं हैं, परुनिशा की जिंदगी में अब अमित की जगह शुभ आ चुका है..या कहें की शुरू से ही शुभ रहा है उसके मन में. खैर लोगों आते और जातें हैं..जिंदगी कभी नहीं थमती हैं...इसीलिए इसे जिंदगी कहते हैं.. शहर में पिछले दिनों एक नया काफ़ी हाऊस खुला था. लेकिन आज यहाँ कुछ अजीब सा कुछ था..जैसे जैसे शाम ढल रही थी वैसे वैसे इस काफ़ी हाउस में भीड़ जुटना शुरू हो जाती थी. लेकिन आज सप्ताह का अन्तिम दिन होने के कारण यहाँ भीड़ कुछ ज्यादा ही है. शहर का यह इकलोता काफी हाउस है.... ''क्या मुझे एक गरमा गर्म काफी मिलेगी'' यह आवाज उसकी की जो अभी अभी भीगते भीगते अन्दर आई है ''बिल्कुल'' इस बार काफी हाउस के वेटर ने कहा. वो काफी पीते पीते कोने में बैठी उस महिला को निहारती रही जो कि यहाँ की मालकिन हैं. वो उसकी आंखों में कुछ खोजना चाह रही थी.अचानक कोने में बैठी उस महिला की नजर

कई सालों बाद उगता सूरज देखा

कई सालों बाद उगता सूरज देखा और देखी उसकी लालिमा देखा एक नया जीवन फिर भी अधूरा है जीवन सूरज तो रोज उगता होगा मैं नहीं देख पता होऊंगा लेकिन भला हो उसका जिसने मुझे ज़िंदगी की सच्चाई से कराया रूबरू जीवन चलता तो है पर ज़िंदगी नहीं वो जब साथ होता है तो जिंदगी होती है लेकिन उससे दूर जाने पर जीवन, जिंदगी में उल्लास होता है जीवन में एक सन्नाटा फिर भी एक आस हैं क्योंकि अभी भी साँस है

NTDV लाएगा हिन्दी में न्यूज़ पोर्टल

युवा पत्रकारों के लिए एक और शानदार ख़बर. ख़बर है कि एनडीटीवी जल्दी ही अपना एक हिन्दी न्यूज़ पोर्टल लाँच करने वाला है. दुनिया भर में इंटरनेट के बढ़ते उपयोग को देखते हुए यह फ़ैसला लिया है. एनडीटीवी इस पोर्टल से पहले एक मोबाइल पोर्टल लाँच करेगी जिसका नाम एनडीटीवी एक्टिव होगा. कहा जा रहा है कि मध्य नवम्बर से यह चालू हो सकता है. जबकि हिन्दी न्यूज़ पोर्टल जिसका नाम एनडीटीवी ख़बर होगा, यह दो महीने बाद यानी अगले साल तक लाँच हो जाएगा. एनडीटीवी इसके अलावा लाइफ स्टाइल, बालीवुड और शिक्षा को लेकर भी कुछ वेब पोर्टल लाने पर कार्य कर रहा है.

फिर भी कुछ लोग मचा रहे हैं शोर

चारों ओर हैं दीपावली का जोर फिर भी कुछ लोग मचा रहे हैं शोर कोई भूखा है तो कोई नंगा लेकिन हमें क्या क्यूंकि हम सभ्य है और वो असभ्य ऐसा ही तो हम कहते हैं लोग कह रहे हैं दीये जलाओं मन का अंधकार मिटाओ अन्दर ही अन्दर लोगों को दूर भगाओ शहर में चमक रहे हैं माल और दुकानदार गाँव में फिर भी हैं राशन की लम्बी कतार होते है जहाँ रोज दंगे नेता जी हैं नंगे आम आदमी हैं पस्त नेता जी हैं मस्त बस्ती में पानी नहीं आंखों का पानी भी गायब है दोस्ती के नाम पर दगा देते हैं फिर अपने को दोस्त कहते हैं फिर भी बोलो शुभ दीवाली

कुछ लिखा ही लेकिन क्या ?

कुछ दिनों से लगातार मन में एक अजीब सी उलझन चल रही थी....मुम्बई की इस भागदौड़ में समय निकल कर कुछ किताबे पढ़ा. इसमे हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा का पहला भाग क्या भूलूं क्या याद करूँ और कुछ कविताओं की छोटी छोटी कितबिया थी. इन सब को पढने के बाद एक कहानी लिखने का असफल प्रयास किया. लेकिन कहानी पूरी नहीं हो पाई. फिर कल रात में मैं एक कविता लिखा लेकिन शायद इसे कविता नहीं कहा जा सकता है. फिर भी कुछ लिखा है और उम्मीद करता हूँ कि आप सभी लोगों के मार्गदर्शन में बेहतर लिख सकता हूँ मैं....बस आप अपनी बहुमूल्य राय से अवगत कराते रहिये.. मेरी कहानी पढ़ने के लिए यहाँ और कविता के लिया यहाँ क्लिक कीजिये.

रेगिस्तान और वो : बंजर जमीं इंतजार की- भाग तीन

हवा में एक अजीब सी खामोशी थी। उमस भरे इस माहौल में काफी देर तक दोनों बैठे रहे। उसी वक्‍त अचानक जोर जोर से आंधिया चलने लगी। उमस भरा वातावरण अब आंधियों और तुफान में बदल चुका था। हर तरफ हाहाकार मच गया। मचना भी था। आखिर क्‍यों नहीं मचता ? इस बार भी आखिर वही हुआ जो कि इस देश में और पूरी दुनिया में हजारों सालों से होता आ रहा है। एक बार फिर धर्म के नाम पर एक को मार डाला गया। और सिर्फ धर्म के नाम पर नहीं बल्कि प्रेम के नाम पर। आसमान में काले बादल और बस आंधी ही आ‍ंधी। जल्‍दी ही सब कुछ पहले की तरह हो गया। इस बात को करीब बाईस साल होने को आए। यह बताते बताते अमित की आंखें गिली हो रही थी। उसमें इतना साहस नहीं बचा था कि आगे की कहानी या कहें या घटना को अपनी उन्‍नीस वर्षीय बेटी को बता सके। लेकिन बताना भी जरुरी थी। हां बताना भी जरुरी थी। आखिर उसकी बेटी को यह हक है कि उसका नाम क्‍यूं परुनिशा रखा गया। हिन्‍दू होते हुए मुस्लिम नाम? काफी रात हो चुकी है। परुनिशा को सुबह जल्‍दी कालेज भी जाना होता। ऐसे में अमित और आगे की कहानी आज उसे नहीं सुना सकता था। दोनों अपने कमरों में चले जाते हैं। गुड नाइट पापा। यह परुनि

रेगिस्तान और वो : बंजर जमीं इंतजार की- भाग दो

शहर में एक तरफ़ उनकी मोहब्बत परवान चढ़ रही थी तो शहर के दूसरे कोने में जावेद की हत्या हो चुकी थी। जावेद और अमित में ज्यादा अन्तर नहीं था सिर्फ़ धर्मं को छोड़कर. नाम से ही जाहिर हैं वो मुसलमान था. हाँ मुसलमान. तभी तो उसे मार दिया गया जबकि अमित आज भी जिंदा है॥ जबकि दोनों ने एक ही गुनाह किया था. वो था प्यार करने का. वही प्यार जिसे मुसलमानों कुरान शरीफ से लेकर हिन्दुओ के ग्रंथों तक में सबसे ऊपर माना गया था. जावेद के हत्यारों को पोलिस खोज रही थी जबकि पूरा शहर जानता था कि इस हत्या के पीछे कौन लोग शामिल हैं। शहर के कम्पनी बाग़ में आज काफी शान्ति नहीं...अजीब सी खामोशी थी। इस खामोशी को परुनिशा की आवाज़ तोड़ती है.. मैं जान सकती हूँ अमित...आखिर तुम्हे हुआ क्या है ? कुछ नहीं........ फिर भी कुछ तो हुआ है नहीं...मैं सही हूँ..... यह आवाज अमित की थी। अमित ने आज से कुछ महीने पहले ऐसा ही एक सवाल परुनिशा से भी पूछा था लेकिन जवाब आज तक नहीं मिला। तुम्हे पता है कि शहर में क्या चल रहा है। क्या चल रहा है..? कल किसी ने एक मुसलमान लड़के को मार कर फेंक दिया है। अमित ने जवाब दिया। लेकिन क्यों ? क्योंकि उसने एक लड

रेगिस्तान और वों : बंजर जमीं इंतजार की

यह जिन्दगी भी अजीब है। कब चलते चलते थकाऊ बन जाए? कुछ नहीं पता. लेकिन जिन्दगी है तो इसका साथ भी निभाना पड़ेगा. यही सोचते सोचते कब उसकी आँख लग दी? पता ही नहीं चला. उसकी ज़िंदगी में जब वो पहली दफा आई थी तो सब कुछ बदल चुका था. उसे पहली नजर में ही उससे प्यार हो गया था. हाँ जी प्यार. वही प्यार जो उस उमर में अच्छे अच्छे को हो जाता है. उसे भी हो गया था. परियों से भी अधिक खूबसूरत थी वो. उसकी बड़ी बड़ी आंखों में सिर्फ़ और सिर्फ़ हसीं सपने के. एक खूबसूरत राजकुमार का और सुखद भविष्य का. जबकि अमित की नज़रे रेगिस्तान की तरह सुनसान और बंजर थी. सपने तो यहाँ भी थे. लेकिन उसकी आँखों में दिखते नहीं थे. वों बंजर रेगिस्तान से आता था, जहाँ हजारों की तादाद में रहस्य छिपे रहते हैं. जबकि वो उस मिटटी से आती थी जहाँ गंगा बहती थी. ऐसे में रेगिस्तान और गंगा का संगम कहाँ हो सकता है, लेकिन अमित ने पूरा प्रयास किया कि यह संगम हो. लेकिन गंगा तो भगवान के चरणों के लिए बनी है, हजारों सालों की परम्परा पल में थोड़े ही ध्वस्त होती है. रेगिस्तान की बंजर भूमि का कभी गंगा का निर्मल जल नहीं मिलता. फिर भी हजारों सालों से रेगिस्तान

वाह रे बम्बई

आज मुम्बई की यात्रा में आपको ऐसे दो भिखारियों से मिलाता हूँ जो की लखपति हैं..क्या हुआ ? आप तो चोंक गएँ. जी चोंकिये मत..मुम्बई भी बड़ा अजीब शहर है. कौन क्या होता है और कब किस्मत बदल जाए कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. वाकई मुम्बई मायानगरी ही है. मस्सू और सांभा जी दो ऐसे ही भिखारी हैं.जो कि रोजाना इतना कमाते हैं कि मुझे अपनी सेलेरी बताते हुए शर्म आ सकती है. पिछले दिनों लोखंडवाला में जब मैं अपने एक खास दोस्त के साथ मटरगस्ती कर रहा था तो एक बड़ा अजीब सा नज़ारा देखने को मिला. पहले तो विश्वास नहीं हुआ लेकिन फिर याद आया कि इस बारें में बहुत दिन पहले टाइम्स आफ इंडिया में मैंने पढ़ा था. मेरे सामने मस्सू खड़ा था. मस्सू इस इलाके का एक भिखारी है. लेकिन वो कोई मामूली भिखारी नहीं है जनाब. बल्कि इस मायानगरी का लखपति भिखारी है. जिसपर पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है. मस्सू अपने काम में लगा हुआ था. गंदे कपडे पहने इस भिखारी मैंने पहली ही नज़र में पहचान लिया. मन किया.मन हुआ कि मस्सू से थोडी बातचीत की जाए. तो बस पहुँच गया मस्सू के पास. मस्सू ने कई मजेदार बात बताई. उसने बताया कि वो कई टीवी और अखबारों को जानता है

ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है नियति

चलिए ब्लॉग की दुनिया में एक और ब्लॉग का स्वागत करने के लिए तैयार ही जाइये. जी हाँ...हमारी एक दोस्त भी अब ब्लॉग की दुनिया में कूद चुकी हैं और इसी के साथ ब्लॉग की दुनिया में एक और महिला का आगमन हो गया है. नियति मूलत बिहार के पटना की रहने वाली हैं. और इन दिनों जयपुर में एक दैनिक समाचार पत्र में कार्य कर रहीं हैं. उम्मीद हैं कि आप सभी लोग उसका स्वागत करेंगे. नियति और मैंने भोपाल से एक साथ पत्रकारिता की पढ़ाई की है..नियति का हिन्दी पर बहुत ही अच्छी पकड़ है. कम से कम मुझे नियति के ब्लॉग के माध्यम से कुछ न कुछ सिखने को ही मिलेगा. नियति स्वागत है आपका..बस लिखना जारी रखें..

ये है मुम्बई.....यह है मुम्बई

ये है मुम्बई.....यह है मुम्बई थोड़ा सा पाना है, थोड़ा सा खोना है फिर भी मुस्कुराते हुए यहीं जीना है अजीब सी उलझन है ज़िंदगी में फिर भी निभाना हैं कभी आर तो कभी पार फिर भी हर पल तेरे संग निभाना है भागते भागते हांफना है फिर भी थक के थोड़ा और जाना है रुकना रुकना..रुकना नहीं थकना थकना यहाँ नहीं रंग बिरंगे शहर में चलते जाना हैं

दोस्ती और विश्वासघात में अन्तर होता है

दोस्ती और विश्वासघात में अन्तर होता है यह तो सब जानते हैं मैं भी और आप भी लेकिन इसे क्या कहेंगे आप जब आपका सबसे प्यारा दोस्त आपके साथ वो करे जो दुश्मन भी नहीं करता है जी हाँ मैं अपने सबसे प्यारे दोस्त की बात कर रहा हूँ मैंने उसकी दोस्ती को इबारत समझा और उसने हर मोड़ पर मुझे ठगा मैं आज भी उसपर विश्वास करना चाहता हूँ लेकिन करूँ या नहीं करूँ अजीब सी उलझन है

बड़ी अजीब सी सुबह थी आज की

सुबह जब रोजाना की तरह ऑफिस के लिए निकला तो मन ही मैं तय कर लिया था कि आज समय से कुछ पहले ऑफिस पहुचना है लेकिन बुरा हो मीडिया की नौकरी का. नालासोपारा से लोकल पकड़ कर किसी तरह बांद्रा पंहुचा. बांद्रा से ही मुझे माटुंगा रोड के लिए धीमी लोकल पकड़नी थी. प्लेटफार्म तीन पर आया तो सामने शाहिद-करीना वाली लोकल आ रही थी. यह उन दो लोकल ट्रेन में से एक थी जिसे शाहिद-करीना अभिनीत फिल्म ‘जब वी मेट’ के प्रचार प्रसार के लिए काम में लाया जा रहा था, पूरी ट्रेन जब वी मेट के पोस्टरों से अटी पड़ी थी. जल्द बाजी में मैं इसी मैं चढ़ गया. लेकिन कम्बख्त यह मेरी धीमी लोकल ना होकर फास्ट लोकल थी. मन ही मन गुस्सा भी खूब आया और हँसी भी. लेकिन किया क्या जा सकता था. गलती की थी तो सज़ा भुगतनी ही थी. कई दिनों बाद गेट पर लटकने का मौका मिला. लेकिन बाहर के दृश्य को देखकर थोडी निराशा भी हुई. बड़ी तादाद में मुम्बई जैसे शहर में लोग पटरियों के किनारे निपटने के लिए बैठे हुए थे. एक एक नल के नीचे कई लोग नहाने पर विवश थे. बड़ी तादाद में पटरियों के किनारे झुग्गी झोपडी और उसके बाहर निराश और लटके चेहरों के साथ बैठे लोग. क्या आप विश्वास म

क्यों पानी पी पी कर चैनलों को गरिया रहे हो

जिसको देखो वही न्यूज़ चैनलों को पानी पी कर गरिया रहा है. यह कुछ ऐसा ही जैसा कि इस देश के नेताओं और यहाँ की राजनीति को लोग आए दिन कोसते रहते हैं. लेकिन भइया आपने किया क्या है. दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं..एक जो कुछ नहीं करते हैं..ऐसे लोगों से गलती हो ही नहीं सकती है और दूसरे वो लोग होते हैं जो अपने अपने स्तर पर लड़ते हैं एक बेहतर समाज और देश के लिए. मीडिया में बहुत बड़ी तादाद दूसरे किस्म के लोगों की है..कुछ लोगों पहले किस्म के भी हैं. लेकिन इसके बावजूद अधिक निराश होने की जरुरत नहीं है. किसी ने कहा है कि खून तो खून है..गिरेगा तो जम जाएगा, जुर्म तो जुर्म है..बढेगा तो मिट जाएगा..बस ऐसा ही कुछ मेरा मानना है. चैनलों की दुनिया में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है. लेकिन जो बेहतर चैनल हैं, उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है..क्यूंकि लोग उसे देखते नहीं हैं. और जो चैनल भूत प्रेत, जादू टोना, बन्दर बिल्ली, सेक्स और पता नहीं क्या क्या दिखाते हैं उनका बैंक बैलेंस बढता जा रहा है. और यह आय टीआरपी के माध्यम से बदती है. जिसकी टीआरपी सबसे अधिक उसे सबसे अधिक एड मिलते हैं. और टीआरपी यानी किस चैनल को सबसे

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा

मैं कौन हूँ मुझे नहीं पता

मैं कौन हूँ मुझे नहीं पता कोई तो मुझे मेरी पहचान बता दो दर दर ठोकरें खाते हुए अब मैं तुम्हारे सामने हूँ लेकिन यह क्या तुम भी मेरी तरह बिना पहचान के हो आह! मैं फिर ग़लत राहों पर हूँ जहाँ से चला था, वहीं आ गया हूँ आखिर क्यों भटक रहा हूँ मैं अपनी पहचान के लिए कौन सी पहचान ? जो मुझे तुम दोगे नहीं मुझे नहीं चाहिए अपनी पहचान हाँ मुझे नहीं चाहिए अपनी पहचान हाँ मैं किसी एक पहचान में नहीं बंधना चाहता हूँ जैसे तुम बंध चुके हो.

जयपुर की पहली ब्‍लॉगर्स मीट--1

कल राजीव और नीलिमा जी अलावा कई पुराने और नए पत्रकार साथियों से मुलाक़ात हुई तो लगा कि वाकई घर आना सार्थक हो गया है वर्ना मुम्बई में तो बस घर से दफ्तर और दफ्तर से घर. लेकिन जयपुर में ऐसा नहीं है, यहाँ मेरी अपनी लाईफ है जो कि मुम्बई मे नही है. मुम्बई से निकलते वक़्त ही राजीव भाई और नीलिमा जी को जानकारी दे दी थी कि मैं आ रह हूँ तो क्यों नहीं एक जगह बैठकर थोडा गप मर लेते हैं हैं? ब्‍लॉगर्स मीट बस उसी का नतीजा है. जयपुर के जवाहर कला केंद्र में जहाँ एक और शास्त्रीय संगीत का कार्यकम चल रहा था तो दूसरी और राजीव भाई, नीलिमा जी, राजस्थान पत्रिका और हिंदुस्तान टाइम के कई पत्रकार साथियों के साथ हम लोगों कि गपशप चल रही थी. या राजीव भाई और कुछ हद तक मैं अपने शब्दों में भी कहूँ तो पिंकसिटी की पहली आफिशियल ब्‍लॉगर्स मीट। सही कहा ना राजीव भाई? इस मीट में सबसे अच्छा जो एक सुझाव जो आया वो यह था कि हम सब एक दुसरे के ब्लाग का लिंक दें. ताकि हमारी नेट वर्किंग मजबूत बन सके. वहीँ नीलिमा जी से कैरियर को लेकर कुछ ऐसे सुझाव मिले जो कि मेरे जैसे नए पत्रकारों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. कुछ बातें मैने कही तो कुछ बा

मुम्बई............जयपुर................दिल्ली

दोस्तों कुछ व्यक्तिगत काम से जयपुर और दिल्ली जाना हो रहा हैं. जिसके कारण अगले कई दिनों तक ब्लाग से दूर रहना पड़ेगा तो सोच रहा हूँ कि कैसे रहूंगा? वैसे मैंने खुद ही तय किया है की अगले कुछ दिन मुझे काम काज से थोड़ा दूर ही रहना है और ब्लाग को तो हाथ नहीं लगाना है. बात अब केवल मेल या फोन के द्वारा ही हो पायेगी. दिल्ली के ब्लागर आए दिन मीटिंग करते रहते हैं। लेकिन जयपुर में ब्लागरों की तादाद काफी कम है तो दिमाग मे एक ख्याल आ रहा है की क्यों नही समय का थोड़ा सा सदप्रयोग करते हुई जयपुर यानी मेरे अपने शहर के ब्लागरों से एक मुलाकात की राजीव जी और नीलिमा जी हैं। राजीव भाई क्या बोलते हो आप? वाकई ब्लाग भी किसी नशे से कम नहीं हैं। इसी ब्लाग ने कुछ दोस्त दिए तो ऐसे लोगों से भी जान पहचान हुई जो अपने अपने स्तर पर कुछ न कुछ कर रहे हैं इस देश के लिए और समाज के लिए। पत्रकारिता को लेकर आए दिन ब्लाग पर ख़ूब सारे लेख मिल जाते हैं. और तो और हर मुद्दे पर लोगों की राय जानना मेरे जैसे पत्रकार के लिए तो किसी वरदान से काम नहीं हैं. ब्लाग ही है जहाँ मुझे रविश जी, ओम थानवी जी, संजय जी, यशवंत जी, अंकित जी, राजीव जी

ऊंटनी का दूध...और मेरा अनुभव

क्या आपने कभी ऊंटनी का दूध पीया है ? उम्मीद है जवाब होगा नही. खैर मैंने भी अपनी छोटी सी जिंदगी में एक ही बार ऊंटनी का दूध पीया और उसके बाद कभी पीने का साहस नहीं जुटा पाया. बात करीब आज से चार-पाँच साल पहले की है जब मैं जयपुर में रहा करता था. उसी दौरान जिले के एक शख्स की मेहरबानी से मैंने पहली बार ऊंटनी का दूध पीया था. गाँव के उस बुजुर्ग ने इतने प्यार से और इतनी दूर से यह दूध लाये थे कि मैं चाह कर पीने से मना नहीं कर पाया. खैर किसी तरह पी तो लिया लेकिन उसके बाद मैंने तय किया कि कभी भी ऊंटनी का दूध नहीं पियूँगा। आज एक ख़बर पड़ी की ऊंटनी का दूध काफी फायदेमंद होता तो अचानक उन दिनों की याद आ गई. ख़बर यह है की ऊंटनी के दूध में कैल्शियम, विटामिन बी और सी बड़ी मात्रा में होते हैं और इसमें लौह तत्व गाय के दूध की अपेक्षा दस गुना होता है. इसके अलावा इसमें रोग प्रतिकारक तत्व होते हैं जो कैंसर, ऐचआईवी एड्स, अल्ज़ाइमर्स और हैपेटाइटिस सी जैसे रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करते हैं. इस दूध को लम्बे समय तक चलाने के लिए अति उच्च तापमान से गुज़ारना पड़ता है जबकि ऊंटनी का दूध इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता. वही

आपके के लिए.....

गाँधी जयंती के अवसर पर मुम्बई के नरीमन प्वाइंट पर विदर्भ के किसान

भारतीय होने का मतलब ?

मेरा एक दोस्त हैं सर्वेश. उसने अभी अभी एक मेल भेजा जो वाकई शानदार है. इसमे बताया गया है कि जब लोग भारतीय बोलते है तो उसका अर्थ क्या होता है? भारतीय का अर्थ सिर्फ़ किसी एक धर्मं या जाती विशेष से नही बल्कि उससे से जो कि नीचे दी हुई फोटो से. आप ख़ुद देखिये और बताइए क्या यह फोटो भारतीय होने का सही अर्थ बताती है या नहीं?

गणपति बप्पा मोरिया

कुछ दिनों पहले तक पूरा मुम्बई गणपति के रंग में रंगा हुआ था। मौके का फायदा उठाते हूए मैं अपने एक खास मित्र के संग कैमरा का सदुप्रयोग करने निकल पड़ा। पेश में कैमरे की नज़र में गणपति और मुम्बई का ... ऊपर वाले चित्र में लोग गिरगाँव में जबकी बगल वाले चित्र मे गणपति के रंग में रंगे लोग गणपति बप्पा मोरिया

काश यदि ऐसा हो जाये तो.........................तो दुनिया में शांति हो जाये

मेरे एक दोस्त ने मुझे अभी अभी एक मेल भेजा हैं.. मेल वाकई में शानदार हैं. यदि मेल में जो तस्वीर दे गई है यदि ऐसा हो जाये तो सही में भारत और पाकिस्तान के अलावा पूरी दुनिया में शान्ति हो जाए.. आब आप देखिये इस शानदार मेल को जिसमे सोनिया और आडवानी, पाक के परवेज साहेब और बेनजीर भुट्टो के अलावा बुश और लादेन को शादी के बन्धन में दिखाया गया हैं. ...........................................बड़ी फोटो देखने के लिए फोटो पर क्लिक करें॥

राजस्थान चलो........महारानी साहिबा होश में आइये

ATTACK ON THE FREEDOM OF SOCIAL ACTIVISTS AND MEMBERS OF THE MINORITY COMMUNITY RAJASTHAN GOVERNMENT BLACK LISTS PEOPLE Human Chain formed at Ambedkar Circle Jaipur, 27th September, 2007 Dear friends, To protest against the Vasundhara Raje Government for blacklisting social activists and minorities in the State, several activists got together in Jaipur at the Ambedkar Circle, formed a human chain and shouted slogans against the attack on people's freedoms on 26th September . More than two hundred people participated. We were not allowed to stop traffic and complete the round of the circle. Police in very large numbers came and stopped us. Since this was not the day of courting arrests we held restraint and instead sang songs and heard people speak against attack on democracy and the terrible Rajasthan Police Bill, 2007 which will replace the 1861 Police Act. Of the two hundred names of people from all over Rajasthan who are on the list we had managed to get the first nine names whi

पंजाब केसरी..................पधारो म्हारे देश

अभी अभी भडास से ख़बर मिली की पंजाब केसरी राजस्‍थान से अपना संस्करण लांच करने वाला है। हालांकि राजस्थान से होने के नाते मैं भडास की इस न्यूज़ को अपने ब्लॉग पर डालने की गुस्ताखी कर रहा हूँ..उम्मीद है की यशवंत जी मुझे मेरी इस गुस्ताखी के लिए माफ़ कर देंगे. हाँ अब ख़बर पर ... पंजाब केसरी के राजस्थान संस्करण के लिए ईशमधु तलवार को एडीटर बनाया गया है और ब्‍यूरो चीफ होंगे सत्‍यपारीक। अगले म‍हीने से लांच होने वाले अखबार के लिए टीम जुटाने का अभियान जारी है। यदि कोई पंजाब केसरी से जुड़ना चाहता है तो बताये..

दो और चैनलों पर लगी सरकारी मुहर

लीजिये अभी सुबह सुबह ऑफिस में आया नहीं की ख़बर मिल गई कि बैग को अपने दो चैनलों के लिए इजाजत मिल गई गई। इन चैनलों में एक चैनल का नाम न्यूज़ २४ और दूसरे का नाम ब्लिस २४ है. इन दोनों चैनलों को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से अप लिंक और डाउन लिंक की इजाजत मिली है। बैग नवम्बर में एक न्यूज़ चैनल और एक मनोरंजन चैनल लाने वाला है. न्यूज़ चैनल का नाम न्यूज़ २४ और मनोरंजन चैनल का नाम ई २४ होगा. जबकि दो चैनल कुछ दिनों बाद लाने की योजना है.

तमीज और तहजीब की जरूरत है दिल्ली की मेट्रो को

फ़र्श खाली देखा नहीं कि पसर गए। लगता है मेट्रो के साथ साथ जिस तमीज और तहजीब की जरूरत है, राजधानी और उसके आसपास के लोग अभी उससे कोसों दूर हैं। मेट्रो में आजकल आए दिन इसका प्रमाण मिल जाता है। शुक्रवार को तो एक ट्रेन के कोच में लोग फर्श पर सोते भी पाए गए। वह भी सुबह सुबह, पीक ऑवर्स में। देहाती, शहरी, अनपढ़-गंवार और पढ़े लिखे, इस सिलसिले में सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। ये लोग मनचाहे तरीके से जगह घेर कर बैठ जाते हैं और लोगों को परेशान करते हैं। इस वजह से तू-तू मैं-मैं भी हो जाती है। फर्श पर बैठने के लिए भी मारामारी होती है। कल सुबह जब फर्श पर सो रहे एक शख्स को कुछ लोगों ने उठने के लिए कहा तो उसने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया। उसके साथ चार-पांच लोगों के होने के कारण आवाज उठाने वाले भी चुप हो गए। मेट्रो में दिन प्रति दिन गंभीर होती जा रही इस समस्या को सबसे पहले अगस्त के महीने में सांध्य टाइम्स ने ही मेट्रो को खटारा बना दिया, बैठते हैं ऐंठते हैं, खबर के जरिए उजागर किया था, इसके बावजूद मेट्रो इस समस्या से निबटने में नाकाम रही है। पहले इस संबंध में कम से कम बार बार एनाउंसमेंट की जाती

चैनलों के हुजूम में एक और चैनल

देश में चैनलों की भीड़ में पाँच नवम्बर से एक और चैनल का नाम जुड़ने वाला है॥ यह चैनल होगा 9X. आज ही जानकारी मिली है कि INX मीडिया ग्रुप नवम्बर महीने से अपना मनोरंजन चैनल लाने वाला हैं. चैनल के सभी प्रोग्राम बन चुके हैं। यदि सब कुछ निधारित योजना पर चलता रहा तो पाँच नवम्बर से दर्शकों को एक और चैनल देखने को मिलेगा॥यह चॅनल पूरी तरह एक चैनल होगा। 9X के अलावा कम्पनी 9XM नाम का एक और मुयुजिक चैनल लाने वाली है. तीसरा चैनल अंग्रेजी का न्यूज़ चॅनल होगा। देश मे आज २०० से अधिक चैनल हैं. चैनलों के इस हुजूम में इस नए चैनल का भी स्वागत हैं. १९९१ में देश में केवल ६ ही चैनल थे.

निवेश गुरु की नजर में बाजार का हाल

हर व्‍यक्ति का हर क्षेत्र में एक गुरु होता है। मेरे भी कई क्षेत्रों में कई गुरु हैं। ऐसे ही मेरे एक निवेश गुरु हैं कमल शर्मा , जो भी समय समय पर निवेश की सलाह देते रहते हैं। कल बाजार जब सोलह हजार का आंकड़ा पार कर रहा था तो सभी की तरह मेरे जेहन में एक ही सवाल आ रहा था कि अब आगे क्‍या। मेरी समस्‍या का समाधान मुझे निवेश गुरु से मिला। निवेश गुरु कहते हैं कि दस अक्‍टूबर के बाद भारतीय कार्पोरेट जगत के दूसरी तिमाही के नतीजे आने शुरू हो जाएंगे। नतीजों के उस मौसम में आईटी कं‍पनियों से बेहतर नतीजों की उम्‍मीद नहीं की जा सकती। आईटी के साथ कुछ और सेक्टर की कंपनियों के नतीजे भी अच्‍छे नहीं आएंगे, जो शेयर बाजार के मूड को बिगाड़ेंगे। इन सभी कारणों से बीएसई सेंसेक्‍स दस अक्‍टूबर के बाद एक हजार से बारह सौ अंक लुढ़क जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए। हालांकि, जो निवेशक लंबा खेल खेलना चाहते हैं उन्‍हें चिंतित होने की जरुरत नहीं है। यह गिरावट इंट्रा डे कारोबार करने वालों के माथे पर चिंता की लकीर खींचेगी। कल की तेजी को लेकर निवेश गुरु का मानना है कि अमरीकी अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए फैडरल रिजर्व के ब्

नरेंद्र कोहली क्या होगा आपका ?

देश मॆं प्रजातंत्र हैं. ऐसे में सबको अपनी बात रखने का हक हैं. एक ऐसी ही बात आज सुबह सुबह मुझे ई मेल पर पढ़ने को मिली. किसी राम कोहली ने लिखी हैं. मैंने उस विचार को पढ़ा अब आप भी पढ़िए उधार का ज्ञान, अपनों का अपमान ---- नरेंद्र कोहली मैं एएसआई वालों से पूछना चाहूंगा कि क्या वे दस-पंद्रह पीढ़ी पहले के अपने पूर्वजों का प्रमाण दे सकते हैं? रामसेतु के बहाने रामायण के पात्रों को काल्पनिक बताकर केंद्र सरकार ने फिर हिंदुओं को क्लेश दिया है। मैं सोनिया गांधी की बात नहीं करता, किंतु प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो इसी देश के हैं। वह क्यों नहीं बोलते? इस देश में तो जैसे माफिया राज चल रहा है। हिंदू की छाती पर बैठकर उसका उपहास उड़ाया जा रहा है। अर्जुन सिंह जैसे लोग हैं जो कुछ संगठनों को पैसे देकर रामकथा के खिलाफ प्रदर्शनी लगवाते हैं। क्या किसी और देश में वहां के धर्मग्रंथों के बारे में ऐसी बातें कही जा सकती हैं? पश्चिम के लोगों ने कहा कि मूसा ने तूर पर्वत पर प्रकाश देखा तो हमने भी मान लिया, कोई सवाल तो नहीं उठाया। भारत में सरकार हिंदुओं से द्वेष रखती है, हिंदूद्रोही है। हिंदुओं का जितना उत्पीड़न अब हो रह

ब्‍लॉग का फैलता महाजाल

मेरे ख्‍याल से वाह मनी पहला भारतीय ब्‍लॉग होगा जिसे पत्रकारों की जरुरत है और मीडिया हाउस की तरह वेकेंसी दी है। हालांकि, मांगे गए केवल दो पत्रकार ही हैं लेकिन यह शुरूआती कदम अच्‍छा कहा जा सकता है। इसे ब्‍लॉग का व्‍यावसायिकरण भी माना जा सकता है और यह तो तय होगा ही कि ब्‍लॉग के माध्‍यम से वाह मनी पैसे अर्जित कर रहा होगा या फिर उनकी ऐसी योजना होगी अन्‍यथा अकेले ही लेखन न कर लेते। तक मुझे जानकारी मिली है वाह मनी कुछ एजेंसियों से कंटेट खरीदने का करार करने जा रहा है और मुंबई में अपने सेटअप को बढ़ा रहा है। इस ब्‍लॉग पर सालाना निवेश केवल कंटेट को लेकर ही दो लाख रुपए खर्च करने तक की योजना है। इसके अलावा तकनीकी और स्‍टॉफ पर लागत अलग बैठेगी। इसी साल फरवरी में शुरू हुआ यह ब्‍लॉग काफी कम समय यानी साढ़े सात महीने में ही वह सफलता हासिल करने जा रहा है, जहां वह वेतन पर पत्रकार रखना चाहता है जबकि अनेक पुराने ब्‍लॉग यह अब तक नहीं कर पाए। हालांकि, इस ब्‍लॉग पर विज्ञापन नहीं है लेकिन निवेश सलाह से आय अर्जित करने की जानकारी हाथ लगी है। देश में जिस तरह से हिन्‍दी ब्लॉग की संख्‍या बढ़ रही है, वो काफी शुभ संके

सलमान और गणपति

कल बांद्रा में दो खास कारणों से भीड़ थी. एक बांद्रा के प्रसिद्ध चर्च माउन्ट मेरी में कई दिनों से चल रहे फिस्ट का अन्तिम दिन था और दूसरी वजह सलमान खान के घर पर गणपति का विसर्जन होना था. सुबह से सलमान के घर के बाहर लगभग सभी मीडिया चैनल की ओबी वेंन खड़ी हुई थी. कैमरे को बस सलमान और उनके गणपति का इन्तजार था. सलमान जैसे ही अपनी माँ हेलन और गणपति के साथ गेलेक्सी अपार्टमेंट से बाहर निकले तो एक और उनके चाहने वाले सलमान सलमान चिल्ला रहे थे तो दूसरी और प्रेस वाले सलमान को कैमरे में कैद करने में लगे हुये थे॥ आप भी देखिये सलमान को गणपति विसर्जन के दॉरान

क्या हम कल गणेश पूजा के योग्य हैं ?

इस तस्वीरों को देख कर आप भी मेरी तरह थोड़े से विचलित हो सके हैं। यह चित्र मुझे मेरे एक दोस्त ने भेजा हैं. मैं ख़ुद मुम्बई में रहकर जो नहीं देख पाया, वो मुझे मेरे दोस्त ने इन तस्वीरों के माध्यम से दिखाया दिया. अब आप ही बताइए की क्या हम कल गणेश पूजा के योग्य हैं या नहीं ?

अच्छे पत्रकार चाहिऐ आईएएनएस को

हमारे और हमारे उन साथिओं के लिए खुशखबरी. यह खुशखबरी भडास ने दी हैं. भडास के अनुसार देश की समाचार एजेंसियों में से एक आईएएनएस को अच्छे पत्रकार चाहिए। दिल्ली और मुंबई में रिपोर्टिंग व डेस्क दोनों ही मोर्चे पर आईएएनएस को पत्रकारों की जरूरत है। डेस्क पर काम करने वालों की अंग्रेजी अच्छी होनी चाहिए। आप अपना बायोडाटा इस आईडी पर मेल कर सकते हैं- careers@ians.in

भारत सबसे गंदे देशों मे से एक !!!

यदि आपको लगता हैं हमारा भारत देश दुनिया का सबसे महान देश है तो आप एक बार फिर से सोच लें। क्यूंकि यह् ख़बर उन लोगों को थोड़ा विचलित कर सकती हैं जिन्हे लगता है की भारत दुनिया का सबसे महान देश हैं। लेकिन आज ही एक रिपोर्ट आई हैं जिसमे कहा गया है कि भारत दुनिया के तीन सबसे प्रदूषित देशों में से एक है। भारत के अलावा चीन और रूस भी इस लिस्ट मे शामिल हैं। यह सर्वे ब्लैक स्मिथ नामक के संस्था ने किया हैं। इन तीन देशों के अलावा पेरु और उक्रेन जेसे देश भी शामिल हैं,। आख़िर क्या हम इस रिपोर्ट को ठुकरा सकते हैं ? मैं नहीं ठुकरा सकता हूँ क्यों कि मैं हर रोज गंगा नदी में कूड़े करकट के अलावा वो सब बहते देखता हूँ जो कि उस नदी में नही डालना चाहिऐ जिसे हम माँ का दर्जा देते हैं।

क्या आपको अच्छे पत्रकारों की जरूरत हैं

यह पोस्ट मैं एक खास उद्देश्य से लिख रहा हूँ। जहाँ तक मेरी जानकारी है इस तरह की पोस्ट पहले कभी नहीं लिखी गई होगी। कह सकते हैं कि यह एक सकारात्मक पोस्ट हैं। और शायद मेरे इस प्रयास से मेरे उन कई साथियों को नौकरी मिल सकती है जो दिल्ली में नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं। चलिए मैं अपनी बात शुरू करता हूं मेरे कई दोस्त जो इस समय दिल्ली और भोपाल में हैं, उन्हें मीडिया में नौकरी की तलाश है। मेरे इन दोस्तों ने माखन लाल पत्रकारिता विश्वविधालय से पत्रकारिता में दो साल की मास्टर डिग्री ली हैं। ये सभी नौजवान हैं और मीडिया के माध्यम से कुछ करना चाहते हैं, इसमें से कई हालांकि किसी न किसी प्रैस या चैनल से जुड़े हुए हैं। यदि आपके संस्थान में इन्हें एक मौका मिले तो ये पत्रकारिता जगत को काफी कुछ नयापन दे सकते हैं और शायद आज इस तरह के ही पत्रकारों की जरूरत हैं जो आ‍इडिया से भरे हुए हों। यदि अपके संस्थान को अच्छे लोगों की जरूरत हैं तो आप मुझे ९८६७५-७५१७६ या ashish.maharishi@gmail.com पर मेल भी कर सकता हैं.

नवंबर में दो चैनल लाएगा बैग

खबर हैं कि बैग मध्य नवंबर से दो चैनल लाने जा रहा हैं। एक चैनल समाचार चैनल होगा जिसका नाम न्यूज़ २४ होगा। जबकि दूसरा चैनल मनोरंजन चैनल होगा जिसका नाम ई २४ होगा।

जारी हैं पत्रकारों का आना जाना

खबर हैं कि दिव्य भास्कर, मुम्बई के बिजनेस रिपोर्टर चन्द्र कान्त जानी ने मुम्बई में ही किसी ब्रोक्रेज फ़र्म में जाने वाले हैं। सहारा समय, मुंबई के रिपोर्टर राजीव रंजन ने अब जी बिज़नेस, मुंबई में ज्वाइन कर लिया है। जबकि अजय शुक्ला ने हिंदुस्तान कानपुर में बतौर डिप्टी न्यूज एडीटर ज्वाइन कर लिया है। इससे पहले वे दैनिक जागरण में कार्यरत थे। इसी तरह दिनेश श्रीनेत्र ने आईनेक्स्ट लखनऊ से बेंगलूर में एक मीडिया हाउस को ठीकठाक पैकेज पर ज्वाइन किया है। जबकी स्टार न्यूज चैनल के भोपाल संवाददाता ब्रजेश राजपूत ने बीएजी ज्वाइन कर लिया है। दोस्तो का कहना हैं शेफाली ने सहारा मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ छोड़कर एमएच वन ज्वाइन किया है। वहीँ सहारा के ही भरत शास्त़्री ने लाइव इंडिया ज्वाइन कर लिया है। ( यह खबर भडास से ली गई हैं।)

आज तक में अब नहीं दिखेंगे पुण्य प्रसून वाजपेयी

यदि आप आज तक में पुण्य प्रसून वाजपेयी को देखने के आदि हैं तो जल्दी ही अपनी इस आदत को बदल लीजिये। ख़बर हैं कि पुण्य प्रसून वाजपेयी ने आज तक को छोड़कर सहारा टीवी से जुड़ गए हैं। पिछले कई दिनों से हल्ला था कि वाजपेयी जी आज तक छोड़कर और कहीँ जा सकते हैं। वाजपेयी जी साथ आज तक से कई लोगों ने सहारा का सहारा लिया हैं।

अजित भट्टाचार्य को छह महीने की जेल की सज़ा

पॉयनियर के तत्कालीन संपादक अजित भट्टाचार्य, 'स्वतंत्र भारत' के तत्कालीन संपादक घनश्याम पंकज और प्रिंटर-प्रकाशक संजीव कंवर और दीपक मुखर्जी को भी छह-छह महीने की जेल की सज़ा सुनाई गई है। जबकी पॉनियर अख़बार के तत्कालीन रिपोर्टर रमन कृपाल को एक वर्ष सश्रम कारावास और 5500 रुपए जुर्माना भरने की सज़ा सुनाई गई। यह खबर आज ही बीबीसी में आई हैं। खबर में कहा गया हैं कि लखनऊ की एक अदालत ने एक प्रशासनिक अधिकारी का 'फ़र्ज़ी और छवि को नुक़सान पहुँचाने वाला इंटरव्यू' छापने के लिए तीन वरिष्ठ पत्रकारों को सज़ा सुनाई हैं। ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें। http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2007/09/070904_jpurnalists_sentence.shtml

वे लोकतंत्र का अर्थ नहीं जानते हैं

वे लोकतंत्र का अर्थ नहीं जानते हैं, आजादी का नाम तक नहीं सुना हैं. चुनाव का अर्थ इन्हे केवल इतना मालूम हैं की चुनाव एक दिन पहले गाँव का सरपंच आएगा और देसी दारू की थैली पकड़ा कर अपने दल को वोट देने को कहेगा। और वे मान भी जायेंगे। इन गाँव वालों से इस बात से कोई मतलब नही हैं कि उन्हें किस दल को वोट देना हैं और किसे नहीं? उन्हें बस दारू से मतलब हैं। यह तस्वीर देश के सबसे बडे राज्य राजस्थान की हैं।राजस्थान और गुजरात से सटे बांसवाड़ा जिले की यह सच्चाई से मैं उस समय रूबरू हुआ जब मैं अपने एक दोस्त के साथ राजस्थान के चुनाव को कवर कर रहा था। जिला मुख्यालय से मात्र ४० किलोमीटर दूर इस गाँव का नाम हैं चुन्नी खान गाँव। विकास से कोसों दूर इस गाँव में जाने के लिए जंगलों, पहाडियों और नाले को पार कर के ही जाया जा सकता हैं। जबकि मुख्य मार्ग से यह मात्र दो किलोमीटर ही अन्दर हैं। साइकिल तक नहीं जा सकती हैं इस गाँव में। ख़ैर हम किसी तरह इस गाँव में पहुंच ही जाते हैं।पच्चीस परिवारों वाले इस गाँव में पानी के लिए महिलाओं को दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता हैं। अस्पताल करीब दस किलोमीटर दूर कलिंजरा कस्बे में है। स्कूल च

लुधियाना में भास्कर समूह का अखबार

पिछले दिनों भडास पर एक खबर पड़ने को मिली। सो सोच रहा हूँ क्यों नहीं यह आप लोगों के साथ बाँट ली जाये। मुझे उम्मीद हैं कि भडास के मेरे साथी मुझे इस बात के लिए माफ कर देंगे कि मैं यह खबर उन्हीं के शब्दों में उपयोग कर रहा हूँ। भडास ने लिखा हैं कि हिंदी के सीनियर जर्नलिस्ट राजीव सिंह ने भास्कर में रेजीडेंट एडीटर पद पर ज्वाइन किया है। वे लुधियाना में भास्कर समूह का अखबार लांच करेंगे। फिलहाल में अपनी नई टीम बनाने में जुटे हुए हैं। अगर कोई पत्रकार उनसे संपर्क करना चाहता है, उनकी टीम का पार्ट बनना चाहता है, उन्हें बधाई देना चाहता है तो इस ई-मेल आईडी पर मेल जा सकता है rajiiv.puru@gmail.com खबर को विस्तृत में पड़ने के लिए यहाँ http://bhadas.blogspot.com/ क्लिक करें।

किसने कहा कि सलमान महापुरुष हैं ?

कल मैंने सलमान खान को लेकर कुछ बातें लिखी थी। इसपर कुछ कमेंट भी आये। लोगों ने पूरी साफगोई से अपनी बात रखी। किसी ने कहा कि सही कहा जी आपने सलमान जैसे महापुरुष जो कि जीवन-मृत्यु के बंधन से लोगों को मुक्त कर चुके हों उनको इतनी बड़ी सजा देना सही नहीं। मैंने काभी भी सलमान खान के उस अपराध को सही नहीं ठहराया हैं जो कि उन्होने किया हैं। यह कानून का काम हैं और उसे करने दीजिए। बात यहाँ पर मीडिया के द्वारा खलनायक बनाने की थी। हमें क्या हक हैं कि हम अपने अख़बार और न्यूज़ चैनल को बेचने के लिए किसी को बलि का बकरा बनाए। उसने जो अपराध किया हैं उससे उसकी सज़ा मिलनी ही चाहिऐ। रमा जी आपने बिल्कुल सही लिखा हैं अब हम अपराधी का महिमा मंडन करने लगेगे हैं। लेकिन यदि लोग यह नहीं देखना चाहते हैं तो क्यों नही एक पत्र या मेल लिख कर कहते हैं कि हमें यह नही देखना हैं। लेकिन रमा जी विश्वास मानिये , लोग यह देखना चाहते हैं। लेकिन एक ज़िम्मेदार नागरिक और पत्रकार होने के नाते तो मैं यहीं कहूँगा कि हमारी बिरादरी को इससे बचना चाहिऐ।

हमने सलमान को बनाया खलनायक

मैं सबसे पहले यह बता दूं की मैं सलमान खान का प्रशंसक नहीं हूँ। लेकिन इसके बाद मैं बस यही कहना चाहूँगा कि मैं जिस फिल्ड में हूँ, उसी ने सलमान को एक विलेन कि तरह पेश किया हैं। हालांकि मैं भी मीडिया में हूँ तो एक बात जरूर कहूँगा कि सलमान को जो सज़ा मिल रही हैं उसके लिए उनका एक सफल अभिनेता होना ज़िम्मेदार हैं। कुछ लोग कहते हैं कि सलमान के मन में किसी के प्रति ना तो इज़्ज़त है और ना ही वे परवाह करते हैं कि कौन क्या सोच रहा है। हाँ सलमान इस दुनिया की और इसी दुनिया की बातो की परवाह नही करते हैं? क्या यह गलत करते हैं? मुझे नही लगता हैं। आख़िर वो इस दुनिया कि परवाह क्यों करें। उन्हें जिनकी परवाह करनी चाहिऐ उनकी परवाह वो करते हैं। सलमान अपने भाई- बहनों से उन्हें असीम प्यार करते हैं। इसके अलावा अपने दोस्तो की भी वे परवाह करते हैं। हम प्रेस वाले बड़ी जल्दी ही अपनी औकात भूल जाते हैं और माइक या कलम हाथ में आते ही मान अपने आपको तोप मानने लगते हैं. इसे में यदि सामने वाला हमारे सवालों का जवाब नही देता हैं तो हम प्रेस वाले उसे खलनायक, बदतमीज़ और ना जाने कैसे कैसे शब्दो से नवाज़ाने लगते हैं. हम भूल जाते हैं अप

विदर्भ में नहीं थम रहा हैं किसानों की आत्महत्या का दौर

देश के सरकारी खजाने में सबसे अधिक धन देने वाले ही राज्‍य के किसान अधिक आत्‍महत्‍या करने लगें तो यह बड़ी आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में उन इलाकों में भी लोग लाल सलाम करते हुए नजर आएंगे जहां सबसे अधिक आत्‍महत्‍या हो रही है। जी हां मैं बात कर रहा हूं महाराष्‍ट्र के विदर्भ इलाके की। जहां केवल इसी साल करीब 784 किसानों ने आत्‍महत्‍या कर ली है। जबकि, पिछले साल प्रधानमंत्री की ओर से जारी भारी भरकम पैकेज के बाद यह आंकड़ा 1648 तक पहुंच गया है। इन इलाकों में किसानों की आत्‍महत्‍या बढ़ने के साथ नक्‍सली हिंसा का खतरा भी बढ़ गया है। हालांकि, दिल्‍ली से मुंबई तक किसी को भी इस बात की भनक नहीं है। लेकिन स्थिति ऐसी ही बन रही। क्‍या हम इस बात से इंकार कर सकते हैं कि जिस प्रकार छत्‍तीसगढ़ जैसे कई राज्‍यों में सरकारी दमन से शोषित किसानों, आदिवासियों और आम आदमी ने हथियार उठाया है, ऐसी स्थिति महाराष्‍ट्र में नहीं बन सकती है। लेकिन इन बातों से बेखबर देश के कृषि मंत्री शरद पवार से लेकर महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री विलासराव देशमुख का कहना है कि विदर्भ में किसानों की आत्‍महत्‍या कम हुई है।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन जलनी चाहिए

बडे दिनों से इच्छा थी कि एक नया ब्लाग शुरू किया जाएँ जिसमे केवल और केवल काम कि बातें हो। इसी के तहत आज बोल हल्ला की शुरुआत हो गई हैं। इसका मुख्य उद्देश्य मीडिया, आम आदमी से जुडे मुद्दे और कुछ नया करना हैं जो कि कहीँ होता दिख नहीं रहा हैं। मुझे यकीं हैं आप लोगों कि सहायता से कुछ कहा और किया जा सकता हैं। मेरे ब्लोग का लिंक http://bolhalla.blogspot.com/ हैं । मुझे आपके सुझाव का इन्तजार रहेगा। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन जलनी चाहिए

कामरेड तुझे लाल सलाम

यदि आप चे ग्वेएरा को जानते हैं तो यह फिल्म वाकई आपके लिये उपयोगी साबित होगी। मेरे जैसे नौजवानों के लिए चे ग्वेएरा शुरू से ही एक प्रेरणा रहे हैं। चाहे वो कालेज के शुरुआती दिन हो या अब के दिन। गूगल पर चे ग्वेएरा के बारे मे खोजते खोजते यह फिल्म हाथ लग गई। शायद यह आपके भी काम आये।

ब्लॉग्स और ब्लॉगर्स के लिए एक अहम सूचना

देश में दिनोंदिन ब्लॉग की बढ़ती तादाद को देखते हुए वेबदुनिया ने एक नया प्रयोग शुरू किया हैं। इसके तहत हर शुक्रवार को ब्लॉग-चर्चा के तहत देशभर के ब्लॉग्स और ब्लॉगर्स की जानकारी दी जाएगी। वेब दुनिया ने इसके लिए शुक्रवार का दिन चुना हैं। इस बार वेबदुनिया ने चर्चा का विषय चुना है- यूनुस खान का ब्लॉग ‘रेडियोवाणी’। अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें http://hindi.webdunia.com/samayik/article/article/0708/30/1070830081_1.htm

क्या आप मेरा गुनाह जानना चाहेंगे

क्या आप मेरा गुनाह जानना चाहेंगे क्या कहा नहीं लेकिन क्यों नहीं आपको यह पता होना चाहिए मेरा गुनाह क्या हैं चलिए अब मैं ही बता देता हूँ इस समाज में मोहब्बत और शांति की बात करना गलत हैं यहाँ आप इन्सान बाद में हैं पहले हिंदु या मुस्लिम हैं यदि ये भी नहीं हैं तो जरुर आदमी या महिला होंगे लेकिन इन्सान नहीं मैंने यह ही गलती कर डाली और अपने को इन्सान मान लिया कुछ ने मुझे पागल कहा तो किसी ने महिलों का पक्ष लेने वाला किसी ने वामपंथी कहा तो किसी ने बेवकूफ लेकिन मुझे मंजूर है ये सज़ा आख़िर मैंने जुर्म किया हैं सज़ा तो मिलनी चाहिए

मीडिया मे नौकरी की तलाश और इन्दौर का एक समाचार पत्र

इन्दौर वासियों को जल्दी ही एक और सुबह का समाचार पत्र मिलने वाला हैं। यह समाचार पत्र राज्य के मुख्य पत्र देनिक भास्कर लॉन्च करने वाला हैं। इस समाचार पत्र का नाम होगा दिव्य किरण। ख़बर मेरे एक खास दोस्त ने दी हैं, इसलिये इसपर भरोसा किया जा सकता हैं। यह खबर उनके लिए भी काम की हैं जो के पत्रकारिता के शिक्षा लेकर बाहर आ चुके हैं या फिर जिन्हे उनकी कंपनी ने बाहर निकाल दिया हैं। दोनो ही तरह के लोगों कि कमी नही हैं। इस मामले में मैं थोडा लकी हूँ कि मुझे अभी तक बहार नही निकला गया हैं। इस लिए मुझे इन्दौर नही जान होगा लेकिन जिन्हें निकाल दिया हैं वो जरूर भास्कर के दर पर जा सकते हैं।

सल्लू मियां और जोधपुर के वाशिंदे

जोधपुर के बाशिंदो के लिए एक बुरी खबर हैं। खबर यह हैं कि जो जोधपुर वासी सल्लू मियां का दर्शन करना चाहते हैं उन्हें दर्शन हो नही पायेगा.जोधपुर की अदालत ने पुलिस को निदेश दिया हैं कि २४ अगस्त को जब सलमान खान अदालत मे आयें तो वहां मीडिया वालों की ओबी वेंन और कैमरा नही होना चाहिऐ। अदालत का कहना हैं के इससे अनावश्यक भीड़ लग जाती हैं। अब अदालत के इस आदेश के बाद जोधपुर के लोग थोड़े ग़ुस्से मे हैं। तो किसी भी जोधपुर वाले से सल्लू मियां कि बात करने से पहले कम से कम दो बार सोच लेना भाई जी।

हवाई जहाज़ को लुत्फ उठासी म्हारे देश का डोकरा

जयपुर दिल्ली राजमार्ग एक पास एक छोटे से गाँव की बात हैं यह। पूरी सच्ची और भरोसे लायक। गाँव मे एक स्कूल हैं जो की अपने आप मे अनोखी हैं। इस पाठशाला मे ना रजिस्टर हैं और ना आने जाने कि कोई पाबंदी। इस गाँव का नाम हैं जयसिन्ह्पुरा। इस पाठशाला में ६५ से ८० साल के बीच के दादा दादी पढ़ने आते हैं। यह तो हुई एक बात। लेकिन अभी कुछ दिन पहले ही खबर आई हैं कि इस गाँव के १५ लोग हवाई जहाज़ का लुत्फ उठाएंगे। आप सोच रहे होंगे कि इस मे खास क्या हैं। तो भाई खास यह हैं कि इसमे से कई लोग कभी भी ट्रेन में पांव नही रखा हैं। लेकिन अब वो लोग हवाई जहाज़ का मज़ा लेंगे। हैं ना खबर मे दम।

धर्मनिरपेक्ष ताकतें तसलीमा के साथ हैं भाई साहब !

कुछ दिनों पहले जब तसलीमा पर हैदराबाद में मुस्लिम संगठन MIM के विधायकों ने तसलीमा के ऊपर हमला कर दिया तो कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि देश की धर्मनिरपेक्ष ताकतें तसलीमा के बचाव में भी खुलकर नहीं आ रही हैं। अब इन लोगों को कौन बताये कि बोम्बे से लेकर देल्ही में लोगों ने तसलीमा पर हमले का विरोध किया हैं। इसमे मानवाधिकार संगटन से लेकर आमजन तक शामिल हैं। लेकिन दुर्भाग्य हैं कि उन्हें मीडिया मे उतनी जगह नही मिली जितनी मिलनी चाहिऐ। लोगों को कहना कि अगर एमएफ हुसैन की भारत माता या किसी देवी-देवता को गलत तरीके डिखाने वाली पेंटिंग पर किसी हिंदू संगठन ने कुछ कहा होता तो, अब तक देश की सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतें मिलकर हुसैन की तरफदारी में अभिव्यक्ति की आजादी के कसीदे पढ़ने लगतीं। लेकिन धर्मनिरपेक्ष जमात पर आरोप लगाने वाले कृपया अपनी जानकारी को और पुख्ता कर ले। शायद इन्हें नही मालूम हैं कि धर्मनिरपेक्ष लोग मुस्लिम कट्टरवाद का उतना भी उतना ही विरोध करते हैं जितना ही हिंदु कट्टरवाद का। लेकिन मीडिया मे केवल हिंदु कट्टरवाद का ही विरोध दिखाया जाता हैं। तो भाई साहब किसी पर अंगुली उठाने से पहले खुद अपने आ

संजू दादा को मिली जमानत

फिल्म अभिनेता संजय दत्त की जमानत आज मिल गई गई हैं। इससे पहले 10 अगस्त को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई की तारीख 20 अगस्त तक के लिए टाल दी गई थी। इस बार संजय के पक्ष में यह बात भी है कि सीबीआई ने उनपर टाडा लगाने की याचिका दायर न करने का फैसला किया है जिसके चलते संजय दत्त को जमानत मिल गई है। पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख 28 अगस्त तक टाल दी थी लेकिन संजय के वकील फली एस नरीमन ने तर्क दिया था कि उनके पक्षकार के मूलभूत अधिकारों का हनन हो रहा है। उन्हें फैसले की प्रति दिए बिना ही जेल भेज दिया गया है और जमानत याचिका पर सुनवाई में भी देर हो रही है। इस पर सुनवाई की ‍तिथि को 20 अगस्त तय कर दिया गया। इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन ने प्रधान न्यायाधीश के। जी. बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष यह मामला प्रस्तुत किया था जिसने संजय की जमानत याचिका पर 10 अगस्त को सुनवाई करने पर सहमति जताई थी। नरीमन ने कहा था कि अभिनेता को फैसले की प्रति दिए बिना ही जेल भेज दिया गया। संजय को 1993 के श्रंखलाबद्ध बम विस्फोट कांड के संबंध में हथियार अधिनियम के तहत दोषी पाया गया है और छह साल की कैद की