पिछले कुछ समय से देश-विदेश की मीडिया में जयपुर की पूर्व राजमाता सुर्खियों में बनी हुई हैं। उनकी खासियत कम उनसे जुड़े विवादों को लेकर वे अधिक चर्चा में हैं। अब सबकी नजर उनकी एक हजार करोड़ रूपए की वसीयत पर है। फिलहाल यह वसीयत किस किस को मिलेगी, कहना आसान नहीं है। लेकिन आज बात उनकी वसीयत की नहीं।
वो भले ही लोगों के लिए पूर्व राजमाता रही हों लेकिन मुझ जैसे लोगों के लिए वो हमेशा न सिर्फ जयपुर की राजमाता रहीं, बल्कि कहीं न कहीं वो मुझे खुद की राजमाता लगती थीं। जयपुर में जिन लोगों ने कुछ साल भी गुजारे हैं, वे इस बात को अच्छी तरह समझ सकते हैं। गायत्री देवी और जयपुर को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। राजमाता से मेरी पहली और आखिरी मुलाकात आज से करीब छह साल पहले हुई थी। उस वक्त मैं बीकॉम फाइनल की पढ़ाई खत्म कर जयपुर के एक स्थानीय अखबार के लिए काम करता था। उसी वक्त जयपुर के फेमस होटल रामबाग पैलेस में एक कार्यक्रम के दौरान राजमाता से मुलाकात हुई। अब तक उनके बारे में सिर्फ पढ़ा और सुना ही था। लेकिन जैसे ही उन्हें मैने गलियारे से आते देखा तो मेरी आंखें खुली की खुली रह गईं। यह किसी ख्वाब के सच होने जैसा था। क्योंकि राजमाता अब तक मेरे लिए उस दुनिया का हिस्सा थीं जो मुझ जैसे आम आदमी के लिए किसी रहस्य से कम नहीं था।
खैर, बात पहले उस गलियारे की। होटल के कांफ्रेंस रूम में आने के लिए बकायदा एक लंबा गलियारा पार करना होता है। प्रोगाम शुरूनहीं हुआ था, क्योंकि राजमाता अब तक नहीं पहुंच पाई थीं। मैं और बाकी पत्रकार बाहर गलियारे में घूमने लगे। तभी सामने से एक खूबसूरत महिला आती दिखीं। इनके साथ भी कई लोग थे। मेरे साथ आए साथी ने बताया कि आशीष बाबू राजमाता सामने हैं। वाकई मेरे सामने राजमाता गायत्री देवी थीं। उस दोस्त ने राजमाता से मेरा परिचय करवाया। राजमाता ने मुस्कुरा कर कहा, आइए अंदर चलते हैं। राजमाता से वह पहली और आखिरी मुलाकात मैं कभी नहीं भूल सकता हूं। जयपुर आने के बाद मैंने सबसे पहले उनकी आत्मकथा पढ़ी। उस आत्मकथा को पढ़ते-पढ़ते मैं कई बार उस दौर में गया, जब राजमाता जयपुर के महाराज मानसिंह की तीसरी पत्नी बन कर पहली बार जयपुर आईं थीं।
वो भले ही लोगों के लिए पूर्व राजमाता रही हों लेकिन मुझ जैसे लोगों के लिए वो हमेशा न सिर्फ जयपुर की राजमाता रहीं, बल्कि कहीं न कहीं वो मुझे खुद की राजमाता लगती थीं। जयपुर में जिन लोगों ने कुछ साल भी गुजारे हैं, वे इस बात को अच्छी तरह समझ सकते हैं। गायत्री देवी और जयपुर को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। राजमाता से मेरी पहली और आखिरी मुलाकात आज से करीब छह साल पहले हुई थी। उस वक्त मैं बीकॉम फाइनल की पढ़ाई खत्म कर जयपुर के एक स्थानीय अखबार के लिए काम करता था। उसी वक्त जयपुर के फेमस होटल रामबाग पैलेस में एक कार्यक्रम के दौरान राजमाता से मुलाकात हुई। अब तक उनके बारे में सिर्फ पढ़ा और सुना ही था। लेकिन जैसे ही उन्हें मैने गलियारे से आते देखा तो मेरी आंखें खुली की खुली रह गईं। यह किसी ख्वाब के सच होने जैसा था। क्योंकि राजमाता अब तक मेरे लिए उस दुनिया का हिस्सा थीं जो मुझ जैसे आम आदमी के लिए किसी रहस्य से कम नहीं था।
खैर, बात पहले उस गलियारे की। होटल के कांफ्रेंस रूम में आने के लिए बकायदा एक लंबा गलियारा पार करना होता है। प्रोगाम शुरूनहीं हुआ था, क्योंकि राजमाता अब तक नहीं पहुंच पाई थीं। मैं और बाकी पत्रकार बाहर गलियारे में घूमने लगे। तभी सामने से एक खूबसूरत महिला आती दिखीं। इनके साथ भी कई लोग थे। मेरे साथ आए साथी ने बताया कि आशीष बाबू राजमाता सामने हैं। वाकई मेरे सामने राजमाता गायत्री देवी थीं। उस दोस्त ने राजमाता से मेरा परिचय करवाया। राजमाता ने मुस्कुरा कर कहा, आइए अंदर चलते हैं। राजमाता से वह पहली और आखिरी मुलाकात मैं कभी नहीं भूल सकता हूं। जयपुर आने के बाद मैंने सबसे पहले उनकी आत्मकथा पढ़ी। उस आत्मकथा को पढ़ते-पढ़ते मैं कई बार उस दौर में गया, जब राजमाता जयपुर के महाराज मानसिंह की तीसरी पत्नी बन कर पहली बार जयपुर आईं थीं।
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