हर शहर का अपना मिजाज होता है। हर शहर कुछ सिखाता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप इन शहरों से क्या सीख पाते हैं? वाराणसी, मुंबई, जयपुर और भोपाल। मेरी जिंदगी का फलसफा इन्हीं से निकला है।
खैर सबसे पहले बात बनारस की, जहां मेरा जन्म हुआ। बनारस एक पुराना लेकिन करवट लेता शहर। संस्कृति, परंपराओं के साथ दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक होने का खिताब है इस शहर को। कई शामें बनारस के मशहूर मणिकर्णिका घाट पर गुजारी हैं। यह जगह आपको मोहमाया से मुक्त होने के लिए प्रेरित करेगी तो चाय की छोटी-छोटी दुकानों पर होने वाली बौद्धिक बहसें देश-दुनिया की राजनीति में खींच लाएंगी। खासतौर से दशाश्वमेध और अस्सी घाट की मशहूर दुकानें। यहां सुबह हो या देर रात, मजमा देखने लायक होता है। बनारस को समझना है तो आपको इन दुकानों के अलावा पैदल बनारस की गलियों में भटकना होगा।
सबक : जिंदगी गंगा की तरह सबकुछ अपने में समाहित कर निरंतर बहने का नाम है।
जयपुर पहुंचा तो युवावस्था की दहलीज पर था। इस शहर को आप दो शहरों का मेल कह सकते हैं। एक पुराना तो दूसरा नया जयपुर। शहर की सड़कों पर मर्सिडीज भी दौड़ती हैं तो ऊंट भी चलते हैं। यहां कई मॉल हैं तो पुराने जयपुर में सैकड़ों साल पुरानी दुकानें। बनारस में जिन बहसों को सुनता था, यहां आकर उनमें हिस्सा लेने लगा। यहां के महलों और किलों ने मुझे इस बात का अहसास कराया कि आज जो वर्तमान है, कल अतीत होगा। लेकिन सुनहरा भविष्य भी इंतजार कर रहा है।
सबक : आधुनिकता के साथ अपनी परंपराओं का भी ध्यान रखें।
सफर चलता रहा। जयपुर से भोपाल पहुंचा। नौकरी के लायक इसी शहर ने बनाया। सोच में गहराई आई। अब मैं खुद को पत्रकार कहलाने की जद्दोजहद में लगा। भोपाल को बाबुओं का शहर भले ही कहा जाए, लेकिन यह अब काफी बदल चुका है। मौसम बदल गया है। जो झील पहले शहर की प्यास बुझाती थी, आज खुद प्यासी है।
सबक : जिंदगी में आने वाले मोड़ उसे और बेहतर बनाते हैं।
मुंबई शहर से मेरा अपनेपन का रिश्ता रहा। लोकल ट्रेन हो या फिर अंधेरी से ऑफिस के लिए मिलने वाली बसें। हर बस का नंबर मुंहजुबानी याद रहता था। चारों ओर लोगों का समुद्र। पहली बार जब मुंबई के लोकल स्टेशन पर उतरा तो यकीन नहीं हुआ कि एक साथ इतने लोग भी हो सकते हैं। हर रविवार को समुद्र किनारे क्रिकेट खेलने की यादें आज भी मुझे उत्साह से भर देती हैं। शनिवार की हर रात कुछ खास होती थी। लेकिन एक दिन यह शहर भी छूट गया। मुंबई की २६ जुलाई की बाढ़ हो या फिर लोकल ट्रेन में हुए विस्फोट, हर बार यह शहर पूरे जोश, जुनून के साथ फिर उठ खड़ा हुआ। मुंबई को लोग मतलबियों का शहर कहते हैं, लेकिन यकीन मानिए ऐसा नहीं है। मुंबई की आबोहवा आपको हर कदम पर आगे बढ़ने का हौसला देती है। बस इस शहर को जीना होगा, ठीक अपनी जिंदगी की तरह।
सबक : खुद पर विश्वास रखें। मंजिल खुद रास्ता बताएगी।
खर घूम-फिरकर फिर भोपाल आ गया। शहर बदल चुका है। दोस्त बेगाने हो गए। बेगाने दोस्त गए। जिन पर भरोसा किया, उन्होंने भरोसा तोड़ा। लेकिन खुश हूं, क्योंकि इस शहर ने बहुत कुछ दिया है। जिंदगी का सफर बदस्तूर जारी है।
अंतिम सबक : सोच सकारात्मक हो तो समस्या में से ही समाधान निकल आएगा।
खैर सबसे पहले बात बनारस की, जहां मेरा जन्म हुआ। बनारस एक पुराना लेकिन करवट लेता शहर। संस्कृति, परंपराओं के साथ दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक होने का खिताब है इस शहर को। कई शामें बनारस के मशहूर मणिकर्णिका घाट पर गुजारी हैं। यह जगह आपको मोहमाया से मुक्त होने के लिए प्रेरित करेगी तो चाय की छोटी-छोटी दुकानों पर होने वाली बौद्धिक बहसें देश-दुनिया की राजनीति में खींच लाएंगी। खासतौर से दशाश्वमेध और अस्सी घाट की मशहूर दुकानें। यहां सुबह हो या देर रात, मजमा देखने लायक होता है। बनारस को समझना है तो आपको इन दुकानों के अलावा पैदल बनारस की गलियों में भटकना होगा।
सबक : जिंदगी गंगा की तरह सबकुछ अपने में समाहित कर निरंतर बहने का नाम है।
जयपुर पहुंचा तो युवावस्था की दहलीज पर था। इस शहर को आप दो शहरों का मेल कह सकते हैं। एक पुराना तो दूसरा नया जयपुर। शहर की सड़कों पर मर्सिडीज भी दौड़ती हैं तो ऊंट भी चलते हैं। यहां कई मॉल हैं तो पुराने जयपुर में सैकड़ों साल पुरानी दुकानें। बनारस में जिन बहसों को सुनता था, यहां आकर उनमें हिस्सा लेने लगा। यहां के महलों और किलों ने मुझे इस बात का अहसास कराया कि आज जो वर्तमान है, कल अतीत होगा। लेकिन सुनहरा भविष्य भी इंतजार कर रहा है।
सबक : आधुनिकता के साथ अपनी परंपराओं का भी ध्यान रखें।
सफर चलता रहा। जयपुर से भोपाल पहुंचा। नौकरी के लायक इसी शहर ने बनाया। सोच में गहराई आई। अब मैं खुद को पत्रकार कहलाने की जद्दोजहद में लगा। भोपाल को बाबुओं का शहर भले ही कहा जाए, लेकिन यह अब काफी बदल चुका है। मौसम बदल गया है। जो झील पहले शहर की प्यास बुझाती थी, आज खुद प्यासी है।
सबक : जिंदगी में आने वाले मोड़ उसे और बेहतर बनाते हैं।
मुंबई शहर से मेरा अपनेपन का रिश्ता रहा। लोकल ट्रेन हो या फिर अंधेरी से ऑफिस के लिए मिलने वाली बसें। हर बस का नंबर मुंहजुबानी याद रहता था। चारों ओर लोगों का समुद्र। पहली बार जब मुंबई के लोकल स्टेशन पर उतरा तो यकीन नहीं हुआ कि एक साथ इतने लोग भी हो सकते हैं। हर रविवार को समुद्र किनारे क्रिकेट खेलने की यादें आज भी मुझे उत्साह से भर देती हैं। शनिवार की हर रात कुछ खास होती थी। लेकिन एक दिन यह शहर भी छूट गया। मुंबई की २६ जुलाई की बाढ़ हो या फिर लोकल ट्रेन में हुए विस्फोट, हर बार यह शहर पूरे जोश, जुनून के साथ फिर उठ खड़ा हुआ। मुंबई को लोग मतलबियों का शहर कहते हैं, लेकिन यकीन मानिए ऐसा नहीं है। मुंबई की आबोहवा आपको हर कदम पर आगे बढ़ने का हौसला देती है। बस इस शहर को जीना होगा, ठीक अपनी जिंदगी की तरह।
सबक : खुद पर विश्वास रखें। मंजिल खुद रास्ता बताएगी।
खर घूम-फिरकर फिर भोपाल आ गया। शहर बदल चुका है। दोस्त बेगाने हो गए। बेगाने दोस्त गए। जिन पर भरोसा किया, उन्होंने भरोसा तोड़ा। लेकिन खुश हूं, क्योंकि इस शहर ने बहुत कुछ दिया है। जिंदगी का सफर बदस्तूर जारी है।
अंतिम सबक : सोच सकारात्मक हो तो समस्या में से ही समाधान निकल आएगा।
Comments
aadmi ko hamesha positive hona chahiye
sss
bimariyo me nahi vicharo me