यूपी से लौटकर आशीष महर्षि
यदि आप यूपी से बाहर बैठकर यहां के चुनाव को लेकर कोई अंदाजा लगा रहे हैं, तो हो सकता है कि आपका अंदाजा गलत हो। यूपी पहुंचने से पहले तक अगर मैं अपनी बात करूं तो मुझे ऐसा लग रहा था कि यूपी में इस दफा भाजपा सरकार आ सकती है। लेकिन लखनऊ पहुंचते-पहुंचते मेरी सोच करवट लेने लगी। जमीनी हकीकत मेरी सोच से एकदम उलट रही। लखनऊ, गोरखपुर, बनारस, इलाहाबाद जैसे प्रमुख शहरों में घूमने के बाद यह बात दावे के साथ कह सकता हूं कि यूपी में या तो पूर्ण बहुमत वाली सरकार यानी सपा आएगी या फिर मामला फंस सकता है।
कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से सपा को जितना फायदा हुआ है, उससे ज्यादा फायदा कांग्रेस को हुआ है। यूपी के मैदानों से पूरी तरह साफ यदि कांग्रेस पिछली बार की तरह 25 सीट भी ले आए तो उसकी इज्जत बच जाएगी।
हालांकि, उम्मीद है कि सपा के साथ हाथ मिलाने से उसकी सीट 25 से बढ़कर 35 हो सकती है। कांग्रेस और सपा के कार्यकर्ताओं का अब एक ही लक्ष्य है कि किसी भी कीमत पर अखिलेश यादव को फिर से सत्ता की कमान सौंपी जाए।
पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो पता चलता है कि सपा और कांग्रेस ने ही एक-दूसरे के सबसे ज्यादा वोट काटे थे। हालांकि, गठबंधन के कारण इस बार ऐसा नहीं होगा। यूपी की राजनीति में मुसलमानों का वोट काफी अहम है जो गठबंधन से पहले कांग्रेस और सपा में बंट जाता था, लेकिन इस बार ऐसा होने की आशंका काफी कम है। भाजपा को रोकने के लिए मुसलमान अपना वोट खराब नहीं करेंगे। इसलिए वोट उन्हें ही जाएगा, जो सत्ता पर काबिज हो रहे हैं।
सपा के बाद दूसरे नंबर पर बसपा है। बसपा जमीन पर चुपके-चुपके अपनी पकड़ बना रही है। मायावती खुद सीएम पद के लिए एक चेहरा हैं। मायावती के वक्त गुंडागर्दी काफी हद तक कम हो जाती है, जो कि सपा के दौरान बढ़ जाती है। हालांकि, खुद भाजपा के पास ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो कई तरह के अपराधों में शामिल हैं। खैर मायावती को दलित, मुसलमान और बाकी पिछड़े तबकों से काफी उम्मीदें हैं। जबकि भाजपा यूपी में तीसरे नंबर पर नजर आ रही है।
नोटबंदी से लोगों में काफी गुस्सा है। जिन भाजपा के वोटर्स ने देशहित में नोटबंदी का समर्थन किया, उन्हें भी अब समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर नोटबंदी से क्या फायदा हुआ। बड़ी तादाद में कामकाज बंद हुए हैं। गन्ना किसानों से लेकर बड़े कारोबारी तक नोटबंदी की मार झेल रहे हैं। रोजगार की तलाश में बाहर गए मजदूर फिर से गांव में बेरोजगार लौट आएं हैं। ऐसे में ये लोग भाजपा को कितना वोट देंगे। ये भविष्य की गर्त में ही छुपा है।
भाजपा और बसपा के पास एक भी ऐसा इश्यू नहीं है जो अखिलेश के खिलाफ जनता को खड़ा कर सके। जाति, धर्म के इस प्रदेश में पहली बार विकास के नाम पर चुनाव लड़ा जा रहा है। लेकिन हर इलाके में उन्हें ही ticke दी जा रही है जो जाति के समीकरण पर सेट हो रहे हैं। भाजपा ने एक भी मुसलमान को यूपी में अब तक ticket नहीं दी है।
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