भोपाल यानि झीलों की नगरी। लेकिन मेरे लिए यह सिर्फ एक झीलों की नगरी नहीं बल्कि एक ऐसा मुकाम था जहां मैने बहुत कुछ पाया है। सिर्फ पाया ही नहीं बल्कि जिया भी है। यही से मैने अपनी मास्टर डिग्री पूरी की है। माखन लाल यूनिवर्सिटी हमारी यूनिवर्सिटी थी। एक साल हो गए भोपाल छोड़े हुए लेकिन आज भी उसकी एक एक याद जेहन में बसी हुई है। चाहे वह भाजपा कार्यालय के पास जायका की दुकान पर घंटों बैठना हो या फिर भईया लाल की दुकान पर बैठकर मस्ती और कई मुददों पर बात और फिर बहस करना। इन्हीं दुकानों पर बैठकर सिगरेट का धुंआ छोड़ना हो या फिर भोपाल की सड़कों पर रातों में धूमना हो। सबकुछ याद है। कई छोटी छोटी बातें हैं जिसे मुझे कहना है। मसलन हबीबगंज स्टेशन के सामने रात के दो बजे चाय पीने के लिए जाना हो या फिर बीयर के नशे में हंगामा करना हो। बहुत जिया है मैने भोपाल को। मैंने ही नहीं बल्कि मेरे जैसे कई लोगों ने भोपाल को जिया है। भोपाल शुरुआती दौर में मुझे बड़ा बोरिंग लगा लेकिन जब वहां रहने का एक मकसद मिला था सही में मुझे उस शहर से प्यार हो गया था। भोपाल में अंतिम दिनों को मैने जमकर जिया है। देर रात तक कैम्पस की लाईब्रेरी के बाहर दोस्तों के साथ बैठकर दिल की बात करना बड़ा रोमांचक होता था। फिर वहीं की सड़को पर रात भर धूमना भी मजेदार हुआ करता था। भोपाल के भारत भवन में नाटक देखना और फिर न्यू मार्केट में धूमना भी याद है। लेकिन इस शहर में मैने जो सपना देखा उसका क्या हुआ। फिर भी इस शहर ने मुझे एक खूबसूरत ख्वाब दिया जिसे कि मै कभी भूल नहीं सकता हूं। एक इंसान नहीं एक अच्छे इंसान के साथ एक अखबार वाला बनने का सपना
समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस शहर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्यार है। और किसी भी प्यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा
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ap hi ki tarah mai bhi bpl ki yado ko apne dil me sanjo kar dunia ki sair par hun..