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रेगिस्तान और वो : बंजर जमीं इंतजार की- भाग चार

हवा हल्की सी सर्द हो चुकी थी और इसी के साथ इस शहर का मौसम और मिजाज दोनों बदलने लगा था. लेकिन आज से करीब बारह साल पहले इस शहर का मिजाज थोड़ा अलग सा था. जब इस शहर की हवाओं में दोनों के प्यार की खुशबू हुआ करती थी.

लेकिन आज नहीं हैं, परुनिशा की जिंदगी में अब अमित की जगह शुभ आ चुका है..या कहें की शुरू से ही शुभ रहा है उसके मन में.

खैर लोगों आते और जातें हैं..जिंदगी कभी नहीं थमती हैं...इसीलिए इसे जिंदगी कहते हैं..

शहर में पिछले दिनों एक नया काफ़ी हाऊस खुला था. लेकिन आज यहाँ कुछ अजीब सा कुछ था..जैसे जैसे शाम ढल रही थी वैसे वैसे इस काफ़ी हाउस में भीड़ जुटना शुरू हो जाती थी. लेकिन आज सप्ताह का अन्तिम दिन होने के कारण यहाँ भीड़ कुछ ज्यादा ही है.

शहर का यह इकलोता काफी हाउस है....

''क्या मुझे एक गरमा गर्म काफी मिलेगी'' यह आवाज उसकी की जो अभी अभी भीगते भीगते अन्दर आई है
''बिल्कुल'' इस बार काफी हाउस के वेटर ने कहा.

वो काफी पीते पीते कोने में बैठी उस महिला को निहारती रही जो कि यहाँ की मालकिन हैं. वो उसकी आंखों में कुछ खोजना चाह रही थी.अचानक कोने में बैठी उस महिला की नजर उस युवती की नजर से टकराती हैं जो कि अभी भी उसे निहार रही थी.

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