समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस शहर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्यार है। और किसी भी प्यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा
Comments
खूब लिखते हो गुरु, लगे रहो
1999 में हम आठ दस दोस्त, बनारस मे एक मित्र के यहां विवाह के सिलसिले मे आठ दस दिन रहे। मजा आ गया था। सुबह से उठ कर गंगा स्नान और फ़िर सारा दिन पैदल ही शहर भटकना। शाम में शिव जी के प्रसाद से गला तर करना और फ़िर बनारसी पान मे भी प्रसाद मिलाकर लेना और फ़िर घर आकर ठूंस ठूंस के खाना।
वहां के हाथरिक्शे की सवारी जिस पे दो लोग मुश्किल से बैठें उसमें पांच लोग हम जाते थे कई बार।
लोहटिया से लेकर नाटी इमली, गदौलिया, लंका।
सब याद दिला दिया आपने।
अल्टीमेट शहर!!
अभी कुछ दिन पहले टीवी चैनल 'ईटीवी उर्दू' पर बनारस के बेनिया बाग में सम्पन्न एक मुशाइरा के मुख्य अंश देखे थे. एक शायरा ने पढा :
कोइ बताये इस ख्वाब की ताबीर है क्या
क्यों मुझे ख्वाब में आते हैं बनारस वाले ?
बाद में जब शायर डा. राहत इन्दोरी की बारी आई तो उन्होने इसी ज़मीन पर पूरी गज़ल ही सुना दी:
अपना किर्दार बनाने में जुटे रहते हैं
यूं तो साडी भी बना ते है बनारस वाले.
बाग की सैर तो बहाना है
तितलियां देखने जाते हैं बनारस वाले
दिन में कहते हैं सुधर जाओ मियां
रात में आके पिलाते हैं बनारस वाले
आसमां नाचता है और ज़मीं झूमती है
ऐसी शहनाई बजाते हैं बनारस वाले.
लेख अच्छा है. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
http://bhaarateeyam.blogspot.com
जब तक बनारस मी रहा 'घर की मुर्गी' ..... वाली स्थिति रही .......अब जब भी बनारस का ज़िक्र आता है या कही देखने सुनने को मिलता है होम सिकनेस से जकड जाता हूँ.
छोटी सी ज़िंदगी का अनुभव यही कहता है की जीवन के हर आयाम से बनारस जैसा शहर और कोई नही हो सकता.
साधुवाद
लिखते रहिये
मुझे तो अस्सी घाट पर घूमना याद आ गया और अपने BHU के दिन
पर आशीष आपने कही भी BHU की चर्चा नही की
शायद करनी चाहिए
खैर बहुत अच्छा लगा