उसे अचानक एक भूली बिसरी याद आती है। कई साल पहले जब वह कॉलेज में पढ़ता था तो वहां वह भी साथ ही पढ़ती थी। नजर मिलने के साथ ही वह उसके प्रेम में रंग चुका था। पहली होली पर वह घर चली गई थी जो उत्तर प्रदेश में कहीं था। लेकिन दूसरी होली में वह इसी शहर में थी। स्थिति अब बदल चुकी थी। वह अब उसके साथ होली नहीं खेल सकता था। देखते-देखते वह परायी हो गई थी।
वह किस रिश्ते से उससे होली खेलता। वह अब तक चाहता रहा कि उसे वह रंगे अपने रंग से। शुभ के साथ पाखी होली खेल रही थी। कॉलेज के अन्य साथी भी उससे होली खेल रहे थे। अमित को कुछ हो रहा था। शायद वह अंदर ही अंदर जल रहा था। वह उसके साथ होली खेलना चाहता था। वह सोचता रहा। सबने उसके साथ होली खेली। वह नहीं खेला। संकोच में नहीं खेल पाया।
होली फिर आई और उससे मुलाकात भी हुई। कोई फायदा नहीं था। अमित और वो एक ही ऑफिस में थे। लेकिन होली के ऐन पहले वह घर जा चुकी थी। इस बार भी अमित की अधूरी आस अधूरी रह गई। आज फिर रंगों का त्यौहार है। वह आज भी उसके साथ रंगों का त्यौहार मनाना चाहता है। इस शहर में पानी बचाने के लिए आंदोलन चल रहे हैं। हर कोई सूखी होली की बात कर रहा है। ताकि आने वाली गर्मियों में पानी की किल्लत से दो-चार नहीं होना पड़े। जबकि पाखी भी ऐसे ही किसी शहर में है, जहां सालभर पानी की किल्लत रहती है।
उसका पता नहीं लेकिन अमित इस बार भी होली नहीं खेल पाया। इस बार पानी बचाने के नाम पर वह होली नहीं खेल पाया। अचानक उसकी टीवी पर गाना चलने लगता - दीपक बगैर परवाने जल रहे हैं। कोई नहीं जलाता और तीर चल रहे हैं..आएगा..आने वाला..भटकी हुई जवानी मंजिल को ढूंढती है।
वह किस रिश्ते से उससे होली खेलता। वह अब तक चाहता रहा कि उसे वह रंगे अपने रंग से। शुभ के साथ पाखी होली खेल रही थी। कॉलेज के अन्य साथी भी उससे होली खेल रहे थे। अमित को कुछ हो रहा था। शायद वह अंदर ही अंदर जल रहा था। वह उसके साथ होली खेलना चाहता था। वह सोचता रहा। सबने उसके साथ होली खेली। वह नहीं खेला। संकोच में नहीं खेल पाया।
होली फिर आई और उससे मुलाकात भी हुई। कोई फायदा नहीं था। अमित और वो एक ही ऑफिस में थे। लेकिन होली के ऐन पहले वह घर जा चुकी थी। इस बार भी अमित की अधूरी आस अधूरी रह गई। आज फिर रंगों का त्यौहार है। वह आज भी उसके साथ रंगों का त्यौहार मनाना चाहता है। इस शहर में पानी बचाने के लिए आंदोलन चल रहे हैं। हर कोई सूखी होली की बात कर रहा है। ताकि आने वाली गर्मियों में पानी की किल्लत से दो-चार नहीं होना पड़े। जबकि पाखी भी ऐसे ही किसी शहर में है, जहां सालभर पानी की किल्लत रहती है।
उसका पता नहीं लेकिन अमित इस बार भी होली नहीं खेल पाया। इस बार पानी बचाने के नाम पर वह होली नहीं खेल पाया। अचानक उसकी टीवी पर गाना चलने लगता - दीपक बगैर परवाने जल रहे हैं। कोई नहीं जलाता और तीर चल रहे हैं..आएगा..आने वाला..भटकी हुई जवानी मंजिल को ढूंढती है।
Comments
-आपको होली की मुकारबाद एवं बहुत शुभकामनाऐं.
सादर
समीर लाल