रविश जी भी ऊब जाते हैं, जबकि वह देश के सर्वोत्तम न्यूज चैनल में हैं। मैं भी इन दिनों कुछ अधिक ही ऊब रहा हूं। मुंबई से नहीं बल्कि अपनी नौ से सात वाली नौकरी से। पत्रकारिता में कुछ करने के जूनून से आया था और यहां आकर ऊब रहा हूं। हर दिन बीतता जा रहा है। और ऐसे देखते देखते पूरे दो साल गुजर गए। पत्रकारिता में हर किसी को मैं ऊबते हुए देख रहा हूं, खासतौर पर मेरे जैसे युवा पत्रकारों को। जो कि पत्रकारिता को सिर्फ एक नौकरी नहीं बल्कि इससे बढ़कर मानते हैं। लेकिन सीधा सा मामला है कि यदि आप सिस्टम को नहीं बदल पाते हैं तो सिस्टम आपको बदल जाता है। अधिकतर पत्रकार सिस्टम के साथ बदल कर पत्रकारिता नहीं नौकरी कर रहे हैं। मैं भी शायद उन्हं के कदमों पर जा रहा हूं। लेकिन समय रहते नहीं चेता तो दिक्कत हो जाएगी। सुबह 7 बजकर 49 मिनट की विरार से चर्च गेट की लोकल पकड़ना और फिर दिनभर ऑफिस में वही रुटीन काम और शाम को फिर 7 बजकर 18 मिनट की चर्च गेट विरार लोकल में एक घंटे का सफर। कुछ भी नया नहीं है और ऊब बढ़ती जा रही है। अब आप ही बताएं इस ऊब से कैसे निपटा जाए।
समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस शहर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्यार है। और किसी भी प्यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा
Comments
फिलहाल तो रोजमर्रा के काम उत्साह से किये जा रहे है -- और ऊब से काफी राहत मिल जाती है.
आपकी उब बहुत कम हो जायेगी.
इस पर भी अगर कम ना हो तो शायर बाज़ार की तरफ़ रुख करले उब किस चिडिया का नाम है भूल जायेंगे.
आपकी उब बहुत कम हो जायेगी.
इस पर भी अगर कम ना हो तो शायर बाज़ार की तरफ़ रुख करले उब किस चिडिया का नाम है भूल जायेंगे.
सुमित सिंह
आजकल हम गूगल अर्थ में बम्बई को देखते हैं, क्योंकि एक हफ्ते के लिए आ रहे हैं. विरार से चर्च गेट मतलब एक कोने से दूसरे कोने पर आना...भई आप तो बहादुर हैं फिर रोज़ रोज़ ट्रेन में तो आपको तो नए नए विषय मिलने चाहिए लिखने के लिए.