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Showing posts from 2012

हक

तुम लड़ोगे तो मारे जाओगे क्‍योंकि व्‍यवस्‍था को पसंद नहीं  ऊंची आवाज, बराबरी, लोकतंत्र लेकिन बिना लड़े जीना भी क्‍या कोई जीना है आओ साथियों लड़ा जाए हक के लिए, हवा के लिए, आजादी के लिए हक खैरात में नहीं, लड़ने से मिलते हैं भूख झूठे आश्‍वासन से नहीं रोटी से मिटती है तो अब कब तक झूठे आश्‍वासन, गैरबरारी सहेंगे उठो, लड़ो, मरो लेकिन झुको मत क्‍यों हक मांगना हमारा अधिकार है लड़ेंगे, जीतेंगे 

ज़िंदगी की एक और दोपहर बीत गई

ज़िंदगी की एक और दोपहर बीत गई और मैं बस देखता रह गया कुछ साथ आए और कुछ पीछे छुटते गए फिर भी मैंने हार नहीं मानी और लोगों को जोड़ता गया जोड़ तोड़ के इस खेल में मैं खुद ही टूटता गया फिर भी अब अगली दोपहर का इंतजार है अक्‍टूबर, 2007, मुंबई

दोस्ती की इबादत

जिनसे मैंने दोस्ती की इबादत सीखा ना जाने वो मुझसे क्यों खफा हो गए जाते जाते मैं उन्हें मना नही सका और वो मुझे माफ़ कर ना सके मुंबई, 13 अगस्‍त 2007

लव स्टोरी : मैडम्ममममममम..आप बहुत अच्छी लगती हैं।

गर्मी पूरे शबाब पर थी। अंदर भी और बाहर भी। मौसम पूरे शरीर में से पानी निचोड़ लेने के लिए बेताब था तो दिमाग की गर्मी से खून उबल रहा था। आखिर उसने उसे सिर्फ चाहा ही तो था। पागलों की तरह। दीवानों की तरह। बस यही उसका कसूर था। वह उससे पूरी दस साल बड़ी थी। चेहरे पर हल्की झुर्रियों के बावजूद उसके बदन में कसावट थी। इसी कसावट का वह दीवाना था। उसके दिल से से अधिक वह उसके शरीर पर मिटता था। वह शादीशुदा थी। तीन बच्चों की की अच्छी मां थी। और वह..कुछ भी नहीं। उसके ऑफिस के सामने चाय की दुकान का ठेला लगाता था। दिन में दो बार वह उसे देख ही लेता था। वह उससे चाहता था। ऐसा उसने बताया था। एक दिन उसने उससे कहा, मैडम्ममममममम..आप बहुत अच्छी लगती हैं। आगे वह कुछ बोल नहीं पाया। दिन बीत गए। इसके बाद वह कभी नहीं दिखी। गर्मी पूरे शबाब पर थी। उसका सिर फटा जा रहा था। सामने से पागल खाने की बस आते देखकर वह जोर-जोर से चिल्लाने लगना..मैडम्ममममममम..आप बहुत अच्छी लगती हैं।