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Showing posts from May, 2011

मनाली और मेरे अनुभव

जब हम हिमाचल की खूबसूरत वादियों में मनाली की फिजा में होते हैं तो जावेद अख्तर का लिखा ये गीत हमेशा हमारी जुबान पर होता है-वो देखो जरा परबतों पे घटाएं, हमारी दास्तान हौले से सुनाए... आपको यकीन ना आए तो इस बार जरा हो के आइए... आप मानेंगे कि हमने गलत नहीं कहा था... मेरी नजर से मनाली खूबसूरत वादियां, बर्फ से ढंके पहाड़, उबड़-खाबड़ पथरीले रास्ते, नागिन की तरह बलखाती घाटियां, सड़क के किनारे कभी दाएं तो कभी बाएं बहती खूबसूरत व्यास नदी। हिमाचल की सीमा शुरू होते ही यह किस्सा आपके साथ चलता है। लेकिन लक्ष्य एक ही था कि जल्दी से जल्दी कुल्लू-मनाली पहुंचना है। कुल्लू में घुसते ही दूर खड़े बर्फीले पहाड़ों पर जब नजर पड़ी तो नजरों को यकीन नहीं हुआ। कुल्लू-मनाली यदि आप जाने की कोई योजना बना रहे हैं तो सब कुछ भूलकर ही वहां जाएं। क्योंकि वहां जाने के बाद आप खुद को जन्नत में पाएंगे। और जब वापस आएंगे तो फिर से खुद को जहन्नुम में पाएंगे। देर शाम जब मैं मनाली पहुंचा तो वहां के बाजार अपने शबाब पर थे। एक छोटा सा कस्बा मनाली दुनियाभर के टूरिस्टों से भरा पड़ा था। हर दुकान पर पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ और सामान

गरीब विदेशी गेहूं खाएंगे

भूख से मर रहे हैं लोग, फिर भी अनाज सड़ रहा है नेता जी खुश हैं, मंत्री जी खुश हैं, सरकार खुश है वाह, वाह ! चलिए जितना अनाज सड़ेगा, उतना आयात बढ़ेगा गरीब विदेशी गेहूं खाएंगे वैसे भी देशी गेहूं में वह बात क्या? आयात बढ़ेगा, मंत्री जी को दलाली मिलेगी वाह, वाह!

जिंदगी का फलसफा समझाते ये शहर

हर शहर का अपना मिजाज होता है। हर शहर कुछ सिखाता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप इन शहरों से क्या सीख पाते हैं? वाराणसी, मुंबई, जयपुर और भोपाल। मेरी जिंदगी का फलसफा इन्हीं से निकला है। खैर सबसे पहले बात बनारस की, जहां मेरा जन्म हुआ। बनारस एक पुराना लेकिन करवट लेता शहर। संस्कृति, परंपराओं के साथ दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक होने का खिताब है इस शहर को। कई शामें बनारस के मशहूर मणिकर्णिका घाट पर गुजारी हैं। यह जगह आपको मोहमाया से मुक्त होने के लिए प्रेरित करेगी तो चाय की छोटी-छोटी दुकानों पर होने वाली बौद्धिक बहसें देश-दुनिया की राजनीति में खींच लाएंगी। खासतौर से दशाश्वमेध और अस्सी घाट की मशहूर दुकानें। यहां सुबह हो या देर रात, मजमा देखने लायक होता है। बनारस को समझना है तो आपको इन दुकानों के अलावा पैदल बनारस की गलियों में भटकना होगा। सबक : जिंदगी गंगा की तरह सबकुछ अपने में समाहित कर निरंतर बहने का नाम है। जयपुर पहुंचा तो युवावस्था की दहलीज पर था। इस शहर को आप दो शहरों का मेल कह सकते हैं। एक पुराना तो दूसरा नया जयपुर। शहर की सड़कों पर मर्सिडीज भी दौड़ती हैं तो ऊंट भी चलते हैं। यह

कभी रुलाती कभी गुदगुदाती यादें

वह एक अजीब सुबह थी। नींद ने कब साथ छोड़ दिया, पता नहीं। आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। वहां अब पुरानी यादें तैर रही थीं। ये यादें स्मृतियों से होते हुए दिल तक पहुंच गईं। 28 बरस मेरे सामने थे। बचपन से लेकर अब तक का सबकुछ आंखों के सामने घूम रहा था। बनारस की संकरी गलियों से होता हुआ अब राजस्थान के रेगिस्तान में खड़ा था। चारों तरफ अजीब-सी बेचैन कर देने वाली खामोशी थी। बैकग्राउंड में केसरिया बालम पधारो नी म्हारे देस की धुन सुनाई दे रही थी। यादों की संकरी गलियां आ-जा रही थीं। कई बार यादें खुशी देती हैं तो कई बार रुला भी देती हैं। यादें तो यादें हैं, उनका क्या? यदि आप भावुक हैं तो यादें ज्यादा परेशान करती हैं। यादें किसी भी घटना, व्यक्ति या संबंध से जुड़ी होती हैं। उस चीज से जितना अधिक मोह, यादें भी उतनी गहरीं। कभी मैं अपने बचपन के शहर बनारस की यादों में खो जाता हूं तो कभी उस प्यार की यादों में, जिसे मैंने मंजिल से पहले ही छोड़ दिया। कभी उस बाघिन की यादों में खो जाता हूं, जो मुझे बांधवगढ़ के जंगलों में मिली थी। बस यादें ऐसी होती हैं। कभी-कभी मैं उनकी यादों में खो जाता हूं, जो कभी मेरे सबसे कर