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Showing posts from February, 2009

मीडिया - मैसेज - सेक्स

उन दोनों की मुलाकात हुए कुछेक ही महीने हुए थे। लेकिन इन कुछेक महीनों में वे कुछ अधिक करीब आ गए थे। लड़की यूनिवर्सिटी में पढ़ती थी तो लड़का वहां ग्रेड टू का कर्मचारी था। उसकी डच्यूटी यूनिवर्सिटी की लायब्रेरी में थी। जहां वह अक्सर किताबों के बहाने उसे देखने के लिए आती रहती थी। लायब्रेरी की रैक से किताबें निकलती थीं। पन्ने पलटे जाए जाते थे। लेकिन नजरे सामने बैठे उस ग्रेेड टू के कर्मचारी पर होती थी। वह कर्मचारी भी उसके आने के बाद कुछ अधिक ही सक्रिय हो जाता था। स्टूडेंट्स को लेकर चपरासी पर रौब झाड़ने का कोई मौका वह नहीं छोड़ता था। वे दोनों एक दूसरे की जरूरतों को पूरा कर रहे थे। बसंत के बाद यूनिवर्सिटी में नया बैच आया। वह अब सीनियर्स बन गई थी। लेकिन वह लड़का अभी सेकेंड ग्रेड का ही कर्मचारी था। नए बैच में कुछ खूबसूरत लड़कियों के साथ कुछ पैसे वाले लड़के तो कुछ गांव से पहली बार निकले लड़के भी आए थे। बंसत के साथ अब सबकुछ बदल गया था। अब सेकेंड ग्रेड का कर्मचारी और उस लड़की में कुछ भी पहले जैसा नहीं था। स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी। कल तक जिस लड़की को वह अपनी सेकेंड हैंड स्कूटर पर बैठाकर उसके घ

वह लगातार रोए जा रही थी..

वो लगातार रोई जा रही थी। विदाई की बेला में वैसे भी रोना लड़की के चरित्र के लिए उसके समाज में अच्छा माना जाता है। पिछली जनवरी में जब उसके पड़ोसी शर्मा जी की बेटी हंसते हुए विदा हुई थी तो कई दिनों तक उसकी हंसी चाची-मौसी के लिए चर्चा का विषय बनी रही थी। लेकिन वह लगातार रो रही थी। उसके रोने में अजीब सा कुछ था। जो केवल वही महसूस कर सकता था जो कि कहीं दूर बैठा उसका इंतजार कर रहा था। वह कभी अपनी मां से लिपट कर रो रही थी तो कभी अपने छोटे भाई से। बाप के पास भी गई थी रोने के लिए। बाप की आंखों में आंसू के दो बूंद तो जरूर थे। लेकिन वह दहाड़ मार कर रो रही थी। कार का दरवाजा खोला जा चुका था। अपने पति और ननद केसाथ वह अंदर बैठ चुकी थी लेकिन उसका रोना थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। वह लगातार रो रही थी। सुबह के वक्त जब वह अपने पति के लिए चाय बनाने के लिए उठी तो न जाने क्यों मन हुआ कि जाकर अखबार भी ले आया जाए। अखबार से उसका कुछ खास लगाव था। उसका वह भी एक अखबार में ही तो काम करता था। उसके घर आने वाला अखबार भी वही अखबार था जहां उसका प्रेमी काम करता था। अखबार के एक कोने में आज एक छोटी सी खबर थी। उस अखबार के

क्या एनजीओ वाली लड़कियां बड़ी चालाक होती हैं?

बेटा ये एनजीओ वाली लड़किया बड़ी चालाक होती हैं। जरा बच कर रहना है। यह चेतावनी मुझे पिछले दिनों मिली है। चेतावनी देने वाली हमारी नई मकान मालकिन हैं। भोपाल के शाहपुरा का यह घर है फिलहाल पर है। एंडवास किराया लेने के बाद हमारी मकान मालिक ने जब मुझे चेताते हुए एनजीओ वाली चेतावनी दी थी तो मुझे मुस्कुराना पड़ा। इसकी भी वजह थी। वजह यह थी कि राजस्थान में कई साल जन आंदोलन को देने के साथ मैने एनजीओ को बड़े करीब से देखा है। एनजीओ वाली लड़किया चालाक नहीं बल्कि अपने अधिकारों को लेकर जागरुक रहती हैं। बस यही बात मकान मालिकन को अटक रही है। खैर आशंका है कि कुछ दिनों बाद एनजीओ वाली लड़कियों को मकान छोड़ना पड़ सकता है। क्योंकि वे बहुत चालाक होती हैं। मसक कली मटक कली बॉलीवुड में प्रयोग तो आए दिन होते रहते हैं। लेकिन इन दिनों जो प्रयोग हो रहे हैं वे वाकई शानदार हैं। जरा दिल्ली -६ फिल्म को ही देख लिजीए। फिल्म के सभी गाने दिल को छुने वाले हैं। इस फिल्म का अधिकांश हिस्सा जयपुर के पास सांभर कस्बे में फिल्माया गया है। निर्देशक से लेकर पूरी टीम तक ने सांभर को चांदनी चौक में तब्दील करने में कोई कमी नहीं रखी है। खै