टूटने के बाद फिर से जुड़ना शायद इतना तकलीफदेय नहीं होता है जितना जुड़ने के बाद टूटना। कल शाम अचानक वे मेरे सामने खड़ी थीं। मुझे लगा मैं कोई ख्वाब देख रहा हूं, लेकिन यकीन मानिए यह ख्वाब नहीं सोलह आना सच था। अंतिम बार वे मुझे बोरीवली के स्टेषन पर छोड़कर जयपुर चली गई थीं और मैं मुंबई के उसी स्टेषन पर कई दिनों तक उसका इंतजार करता रहा। लगा था कि जयपुर से आने वाली गाड़ी से वे वापस आएगीं। पहले दिन बीते और फिर महीने। लेकिन वे नहीं आईं। मेरा भी मुंबई छूट गया। मौसम बदलते गए और कैलेंडर के पन्ने। पर वे नहीं आईं। धीरे धीरे मैं भी उन्हें भुलाता गया। लगभग भूला ही दिया था। लेकिन अचानक उन्हें देखकर उनके साथ बिताए गए एक एक पल फिर से मेरे सामने जिंदा हो गए। मैने कभी कभी सोचा भी नहीं था कि वे ऐसे मेरे सामने आएंगी। बोरीवली में जब वे छोड़कर जा रही थीं तो कुछ अजीब सा लग रहा था और जब आज वे मेरे सामने हैं तो भी अजीब लग रहा है।