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Showing posts from 2011

लघु कथा : आंसू

दोनों बहुत खुश थे। हर दिन तो भरपूर जीते थे। दुनिया से बेगाने थे फिर भी खुश थे। शादी हुई। हनीमून के दोनों घूमने के लिए जयपुर पहुंचे। एक मॉल में..सामने से आते एक युवक को देखकर प्रेमिका ने पहले इगनोर करने की कोशिश थी लेकिन वह जब सामने आ गया तो उसे नजर मिलानी पड़ी। युवक ने पूछा : कैसी हो तुम? मैं बहुत अच्छी हूं। उसने थोड़ा संकोच से जवाब दिया। गुड। रहना भी चाहिए। युवक ने ठहरे हुए शब्दों में कहा। इतने में इस लड़की का पति चॉकलेट फ्लेवर्ड आइसक्रीम लेकर पहुंचता है। लड़की अपने पति से उस युवक का परिचय कराती है। लड़की ने कहा, भोपाल में एक ही ऑफिस में जॉब करते थे। आजकल ये यहीं शिफ्ट हो गए हैं। पति ने मुस्कुराते हुए युवक से हाथ मिलाते हुए हैलो कहा।उधर से भी इतनी गर्मजोशी से हाथ मिले। कुछ मिनट की बात के बाद युवक बाहर निकल गया और वे दोनों शॉपिंग करने में व्यस्त हो गए। लेकिन इस लड़की और उस युवक की आंखें हल्की गीली हो चुकी थीं। इतनी गीली कि लड़की ने तय किया कि वह कभी जयपुर नहीं आएगी। और उस युवक का क्या हुआ..लड़की को कभी पता नहीं चला....

नादान परिंदे घर आ जा..घर आ जा..घर आ जा..

रॉकस्टार फिल्म देखने के बाद आपका भी दिल कुछ यूं ही गुनगुनाने लगे तो इसे रोकिए मत। गुनगुनाने दीजिएगा बरसों बाद। नादान परिंदे घर आ जा..घर आ जा..घर आ जा..। लेकिन कुछ परिंदे जब एक बार उड़ जाते हैं तो कभी नहीं आते। वे कहीं और अपना बसेरा बना लेते हैं। या कहें कि मजबूरी होती है एक अदद आशियाने की। कभी परिंदे इस लिए उड़ जाते हैं, क्योंकि जिंदगी की जंग में हार जाते हैं। वक्त की मार से डर जाते हैं। या फिर किस्मत उन्हें किसी और जगह ले जाती है। कुछ ऐसा ही जार्डन और हीर के संग भी होता है। दोनों रॉकस्टॉर फिल्म के मुख्य बिंदु हैं। जार्डन और हीर ही क्यों, ऐसा तो हर उस शख्स के साथ होता है जो अपनी पाक मोहब्बत से बिछड़ जाते हैं। वैसे अनगिनत जार्डन और हीर हमारे आसपास भी मौजूद हैं। बस हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं। खैर इस फिल्म में जिस तरह से शहरी युवा को दिखाया गया है, वह बहस के जाल में उलझ सकता है। क्या आज के शहरी युवा को इस बात से कोई फक्र्र नहीं पड़ता है कि उसका प्यार शादीशुदा है? वह अपनी दिल की बात जुबान तक लाने में उसके सामने कोई बंधन नहीं आता है। महिलाओं ने क्या अपने जिस्म से इतनी आजादी पा ली हैं कि

फेसबुक कहानी-1

हर दिन की तरह उस दिन भी मैं सामान्यतौर पर ऑफिस पहुंचा। कम्प्यूटर ऑन किया और अपने काम में मशगूल हो गया। सबकुछ सामान्य था और की नजर में। ऑफिस में काम करने वाले मेरी तरह अन्य सहकर्मियों की तरह। लेकिन घर से ऑफिस तक के दस मिनट के सफर में बहुत कुछ बदल गया था। जिस गलियों को पार कर के मैं ऑफिस तक का सफर तय करता था, आज वहां सन्नाटा ही सन्नाटा था। खिड़कियां बंद थीं। लेकिन उस घर के सामने भीड़ जमा था। अगरबत्ती की हल्की-हल्की सुगंध मेरे नखुनों से होती हुई मेरी सांसों में धुल गई थी। भीड़ में मौजूद हर चेहरा लटका हुआ था। जो खिड़की हमेशा खुली रहती थी। आज बंद थी। खामोशी। मातम। सन्नाटा। ऑफिस के लिए लेट हो रहा था। मेरे कदम और तेज हो गए। कदमों के तेज होने के साथ ही दिल की धड़कन भी दौड़ रही थी। नहीं, भाग रही थी। कई गलियों को पार कर मेन रोड पर आकर बाएं मुड़ा तो सामने ऑफिस की भव्य बिल्डिंग दिखी। मेरे कदम तेजी से दफ्तर में घुस गए। बाहर सबकुछ सामान्य था..लेकिन अंदर...

कविता

मैं फिर से जीने लगा हूँ क्यूंकि फिर से कविता लिखने लगा हूं.. मैं उसे गुनगुनाता हूं अकेले पड़ने पर जोर जोर से अपनी ही लिखी एक एक लाइनों को चिलाता हूं.. मैं फिर से कविता लिखने लगा हूं.. मेरी कविताओं में केवल और केवल तुम हो लेकिन तुम कौन! हाँ याद आया तुम मतलब मैं क्यूंकि मुझसे ही तुम हो और तुमसे मैं तुम मुझसे दूर जा सकती हो लेकिन खुद से कैसे? क्यूंकि तुम्हारे एक एक अहसास में मैं ही मैं हूं

पाश की कविताएं

सभी कविताएं मशहूर कवि पाश की हैं। उनका जन्म 9 सितंबर 1950 को पंजाब के तलवंडी सलेम, तहसील नकोदर, जिला जालंधर में हुआ था। 23 मार्च 1988 को अमेरिका लौटने से दो दिन पहले तलवंडी सलेम में अभिन्न मित्र हंसराज के साथ खालिस्तानी आतंकवादियों की गोलियों के शिकार होकर शहीद हुए। 1- बस कुछ पल और तेरे चेहरे की याद में बाकी तो सारी उम्र अपने ही नक्श खोजने से फुरसत न मिलेगी बस कुछ पल और यह सितारों का गीत फिर तो आसमान की चुप सबकुछ निगल जाएगी....। देख, कुछ पल और चांद की चांदनी में चमकती यह तीतरपंखी बदली शायद मरुस्थल ही बन जाए ये सोए हुए मकान शायद अचानक उठकर जंगल की ओर ही चल पड़ें.... 2- उनकी आदत है सागर से मोती चुग लाने की उनका रोज का काम है, सितारों का दिल पढ़ना। 3- हजारों लोग हैं जिनके पास रोटी है चांदनी रातें हैं, लड़कियां हैं और 'अक्ल' है हजारों लोग हैं, जिनकी जेब में हर वक्त कलम रहती है और हम हैं कि कविता लिखते हैं... 4- मेरे पास चेहरा संबोधक कोई नहीं धरती का पागल इश्क शायद मेरा है और तभी जान पड़ता है मैं हर चीज पर हवा की तरह सरसराता हुआ गु

एक अधूरा प्रेम पत्र

उसने एक बार फिर से कोशिश की कि वह आपस आ जाए। उसने अपना लैपटॉप ऑन किया और कुछ लिखने लगा। वह क्या लिख रहा है, उसे भी नहीं पता। शुरूआत कुछ यूं की.. प्रिय गीत, तुम जा चुकी थी। तुम चली गई आखिरकार। कितनी कोशिश की थी तुम्हें रोकने की मैंने। सबकुछ बेकार रहा। तुम नहीं रूकी। तुमने तय कर लिया कि अब जो भी हो जाए, मेरे जैसे शख्स के साथ कोई संबंध नहीं रखोगी। तुम लगातार मुझसे दूर होती जा रही थी। और मैं सिर्फ देखता ही रह गया। जिस शहर में हम पहली बार मिले थे, उसी शहर में हम जुदा भी हुए। शुरूआत के कुछ महीने तुम कितना दुखी थी। ऑफिस हो, मुंबई हो या फिर खुद का घर, हर जगह तुम्हारे जाने के बाद की उदासी छाई हुई थी। तुम जा चुकी थी। मैं तो बहुत पहले ही जा चुका था। बाद में लौटकर भी आया मैं। लेकिन तुम नहीं लौट पाई। नहीं चाहते हुए भी मुझे एक फैसला लेना पड़ा। हर बार कि तरह इस बार भी मैंने ही फैसला लिया। इस बार तो तुम्हें इसके बारे में बताया भी नहीं। लेकिन मेरी जिंदगी में आने का और मुझे अपनी जिंदगी में लेना का फैसला तुमने ही किया था। मैं तुम्हारा पहला प्यार था। ऐसा तुमने बताया था लेकिन फिर भी तुम वापस नहीं आ पाई। तु

सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का सांप 1

सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का सांप अब तक यही सुना होगा आपने गलत। बिल्कुल गलत। आस्तीन के सांप से ज्यादा खतरनाक होता है आस्तीन का इंसान वह कोई भी हो सकता है बस सांप नहीं हो सकता वह इंसान के भेष में कोई भी हो सकता है वह आपका सबसे अच्छा दोस्त, साथी भी हो सकता वह अपकी जान पर नजर रखता है वह आपको धोखा दे सकता है वह आपकी ऐसी-तैसी करने में हमेशा तत्पर रहता है क्योंकि वह आस्तीन का इंसान है वह किसी भी जाति का हो सकता है किसी भी धर्म का हो सकता है आस्तीन का इंसान होना ही उसकी सबसे बड़ी जाति है, धर्म है

सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का इंसान होना...

सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का इंसान होना... डसता नहीं छुऱा भोंकता है पीठ में.... कांटे बिछाता है रास्ते में...फूलों की आड़ में... बांहों में फलता-फूलता है...अमरबेल की तरह पेड़ को ही खोखला कर देता है एक दिन... जड़ों में डालता है मट्ठा...धीमे जहर सा... और कभी सींचता है तेजाबी जहर से... बुनियादें हिलाने तक रहता है आस्तीन में... गिरता है जब कोई महल...तभी खिसकता है... नए शिकार की खोज में....सारे हथियार लेकर... जीवन भर की भागदौड़ तभी विराम लेती है... जब खुद की सोच का जहर कर देता है तन नीला... या कभी, कभी खुद की आस्तीन से ही निकल आता है इंसान... तब जाती है जान...फरामोशी के इल्जाम से... सबसे खतरनाक होता है आस्तीन का इंसान...

कॉफी हाउस

कई दिनों बाद आज उसका न्यू मॉर्केट वाले कॉफी हाउस में जाना हुआ। उसने अंदर घुसते ही वेटर को एक ब्लैक कॉफी लाने का आर्डर दिया और सीट पर दोनों हाथ रखकर बैठ गया। वह कुछ सोच रहा था लेकिन कॉफी की खुशबू ने उसका ध्यान भंग किया। गर्मागम कॉफी का पहला घूंट गले में उतरने से पहले ही अटक गया। सामने से गीत और दुष्यंत आते हुए दिखे। दोनों एक दूसरे का हाथ थामें अंदर चले आ रहे थे। एक दूजे में खोए हुए से वे सीधे कॉफी हाउस के फैमिली वाले हिस्से में चले गए। उनकी नजर अमित पर नहीं पड़ी थी क्योंकि वो नीचे वाले हिस्से में बैठा हुआ था। शहर का यह कॉफी हाउस किसी जमाने में पत्रकारों, साहित्यकारों, नेताओं, स्टूडेंट्स और बुद्धिजीवियों की सैरगाह हुआ करता था। अब इसे दो भागों में बांट दिया गया है। एक हिस्सा पूरी तरह आधुनिक रेस्टोरेंट की शक्ल अख्यिातर कर चुका है तो दूसरा हिस्सा आज भी अतीत में ही उलझा हुआ है। उन दोनों को देखकर पहले तो अमित ने उन्हें नजरअंदाज करने की कोशिश की लेकिन फिर उन्हें उस वक्त तक देखता रहा, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो गए। अमित, दुष्यंत और गीत एक ही ऑफिस में काम करते थे। अमित ने जब पहली बार गीत को द

लघु कथा : जिंदगी की परीक्षा

सुबह होने में देर हो सकती थी लेकिन उसके उठने में आज तक देर नहीं हुई। गर्मी, बरसात, ठंड कोई भी उसका रास्ता नहीं रोक पाया था आज तक। वह हर रोज स्कूल खुलने से पहले ही पहुंच जाता था। वह उसका स्कूल नहीं था। फिर भी वह स्कूल के सामने वाली चाय की दुकान पर खड़ा हो जाता था स्कूल खुलने से पहले। वह आती। रिक्शे से उतरती और अपनी सहेलियों से बात करते हुए अंदर चली जाती है। स्कूल का गेट किसी जेल की तरह बंद हो जाता है। उसे देखते ही उसके दिल की धड़कन बढ़ जाती है। आंखों में चमक आ जाती है। ऐसा ही हर रोज चलता। परीक्षा आई। गई। रिजल्ट आया। वह बहुत खुश था। वह प्रथम श्रेणी से पास हो गई थी। वाह और क्या चाहिए? रोज की तरह वह उस दिन भी स्कूल खुलने से पहले उस चाय की दुकान पर पहुंच गया था। वह नहीं दिखी। ऐसे ही कई दिन महीनों में बदल गए। वह नहीं आई। उसके आंखों की चमक जा चुकी थी। दिल लेकिन फिर भी धड़क रहा था। वह उसके घर पहुंचा तो वहां मातम की खामोशी छाई हुई थी। ढेर सारे रिश्तेदारे-नातेदार कल ही गए हैं। वह भी जा चुकी थी। कल उसे गए पूरे तेरह दिन हो गए थे। वह न सिर्फ स्कूल की परीक्षा में फेल हुआ बल्कि जिंदगी की परीक्षा मे
...लोग कहते हैं कि दूरियों से प्यार बढ़ता है आखिर ऐसी दूरियां किस काम की जहां प्यार बढ़ाने के लिए फासलों का सहारा लेना पड़े सोचा था तुमसे दूर जाऊंगा तो तुम मेरे और करीब आओगी मैं दूर जाता रहा, तुम दूर जाती रही एक दिन प्यार दूरियों में ऐसा बदला कि मैं चाह कर भी तुम्हें वापस ना पा सके सोचा था कि मैं तुम्हें मना लूंगा, घर ले आऊंगा मैं गलत था, तुम जा चुकी थी बहुत दूर

दिल्ली की बारिश ने इस बार रूला दिया...

एक बार फिर उसका दिल्ली जाना हुआ। शहर में झमाझम बारिश हो रही थी। एयरपोर्ट से घर पहुंचने के लिए उसने टैक्सी ली। टैक्सी में जैसे ही वह बैठा, एफएम के गाने ने उसे अतीत में ले जाकर पटक दिया। गाने के बोल कुछ यूं थे.चलते-चलते क्यूं ये फासले हो गए..इस गाने में वह खुद को खोजने लगा। शीशे से बाहर झांकते हुए उसकी निगाह किसी को खोज रही थी। वह जा चुकी थी। उनके बीच फासले बहुत बढ़ चुके थे। उसने कार को रुकवाया और खुद को भिगोने के लिए बाहर निकला। बरखा पूरे शबाब पर थी। एक-एक बूंदे उसे जला रही थी। वह लगातार भीग रहा था। वह लगातार जल रहा था। भीगते-भीगते जब वह थक गया तो राजपथ के किनारे फुटपाथ पर दोनों हाथों से माथे को पकड़ कर बैठ गया। वक्त का पहिया उलटा चल चुका था। वह पिछले साल में था। वह बारिश की एक खूबसूरत रात थी। जब वह दोनों पहली बार दिलवालों के शहर दिल्ली में मिले थे। दोनों बहुत खुश थे। बारिश की पहली बूंदों की तरह उनकी जिंदगी भी महक रही थी। सबकुछ सामान्य था। दोनों एक दूसरे के प्यार में डूबे हुए थे। बालकनी में बूंदे पूरे शबाब के साथ बरस रही थीं। उसी बालकनी से वह दोनों बारिश की उन मासूम बूंदों के साथ खेल र

जैसे सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

कल देर रात एक गाना सुनते हुए नींद कब लग गई, पता ही नहीं चला। बोल कुछ यूं थे: जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते। इस गाने की कशिश और जिंदगी का फलसफा बयान करने की तासीर अद्भुत है। आपकी कसम फिल्म के इस गाने को याद कीजिए। राजेश खन्ना का चेहरा उस दर्द की दास्तान बन जाता है, जिससे हम और आप इस भागती दुनिया में चाहे-अनचाहे कभी न कभी रूबरू होते हैं। मौके पर अपनी बात न कह पाने का दर्द। अपनी विगत जिंदगी पर नजर डालिए, आपको भी कभी न कभी किसी से कोई बात न कह पाने का गम आज भी सालता होगा। गाहेबगाहे वो दर्द किसी भी रूप में आज भी छलक आता होगा। लेकिन गुजरा मुकाम कभी लौटकर नहीं आता, हम ताकते रह जाते हैं। इस गाने का संदेश यही है। वक्त पर अपनी बात रख दीजिए, अन्यथा पछताते रहिए। यह गाना आपकी और मेरी जिंदगी की एक सच्चई से रूबरू करवाता है। इसे हम मानें या नहीं, लेकिन यह सच है। जिंदगी के सफर में कई लोग आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन जिंदगी पूरी रफ्तार के साथ चलती रहती है। यदि जिंदगी थम गई तो समझिए आप थम गए। जो लोग हमसे बिछुड़ जाते हैं, उनकी सिर्फ यादें रह जाती हैं। लेकिन कई बार मिलने-बिछड़न

लेकिन उसकी आंखों की बारिश को कोई नहीं देख पा रहा था

आज फिर बदरा फिर बरसे। झूम-झूम कर बरसे। लेकिन इस बार उसने खुद को इन आवारा बादलों से बचा लिया था। बाहर भले ही बारिश हो रही थी लेकिन उसकी आंखों में रिमझिम आंसू थे। बादलों को बरसते हुए देखकर वह अतीत में लौट चुकी थी। एक ऐसा अतीत जिसकी खूबसूरत यादों को वह संभाल कर नहीं रख सकती थी। पहली बार उन दोनों की मुलाकात एक बारिश में हुई थी। अंधेरी वेस्ट के उस बस स्टैंड पर वह खुद को बारिश से भगाने की असफल कोशिश कर रही थी। लेकिन जैसे पूरे बारिश का पानी उसे भिगोने के लिए ही बरस रहा था। वह पूरी तरह भीग चुकी थी। पास में ही खड़ा अमित बार-बार नजरें चुरा कर उसे देख रहा था। वह भी उसे तिरछी नजरों से उसे ही देख रही थी। अमित ने सोचा कि बात की जाए या नहीं। कई मिनटों तक वह इस उधेड़बुन में लगा रहा। अंत में हिम्मत कर उसने अपना छाता उसकी ओर बढ़ा दिया। यह देखकर वह सकपका गई। लेकिन उसने मना नहीं किया। बस यह उनकी पहली मुलाकात थी। बारिश थमी और दोनों के रास्ते जुदा हो गए। वह चर्च गेट की लोकल पकड़कर चली गई। जबकि अमित ने मलाड लोकल को पकड़ा। इसके बाद स्टेशन पर हर रोज लाखों लोग अपने सफर के लिए उतरते और चढ़ते रहे। लेकिन अमित कहीं

मेरा कुत्ता भी फेसबुक पर है

काम वाली बाई एक दिन अचानक काम पर नहीं आई तो पत्नी ने फोन पर डांट लगाईं अगर तुझे आज नहीं आना था तो पहले बताना था वह बोली - मैंने तो परसों ही फेसबुक पर लिख दिया था क़ि एक सप्ताह के लिए गोवा जा रही हूँ पहले अपडेट रहो फिर भी पता न चले तो कहो पत्नी बोली = तो तू फेसबुक पर भी है उसने जवाब दिया - मै तो बहुत पहले से फेसबुक पर हूँ साहब मेरे फ्रेंड हैं ! बिलकुल नहीं झिझकते हैं मेरे प्रत्येक अपडेट पर बिंदास कमेन्ट लिखते हैं मेरे इस अपडेट पर उन्होंने कमेन्ट लिखा हैप्पी जर्नी, टेक केयर, आई मिस यू, जल्दी आना मुझे नहीं भाएगा पत्नी के हाथ का खाना इतना सुनते ही मुसीबत बढ़ गयी पत्नी ने फोन बंद किया और मेरी छाती पर चढ़ गयी गब्बर सिंह के अंदाज़ में बोली - तेरा क्या होगा रे कालिया ! मैंने कहा -देवी ! मैंने तेरे साथ फेरे खाए हैं वह बोली - तो अब मेरे हाथ का खाना भी खा ! अचानक दोबारा फोन करके पत्नी ने काम वाली बाई से पूछा, घबराये-घबराए तेरे पास गोवा जाने के लिए पैसे कहाँ से आये ? वह बोली- सक्सेना जी के साथ एलटीसी पर आई हूँ पिछले साल वर्माजी के साथ उनकी कामवाली बाई गयी थी तब मै नई-नई थी जब मैंने रोते हुए उन्हें

तुम

कल रात की बारिश ने उसे पूरी तरह भिगो दिया था। बूंदे उसे तेजाब की तरह जला रही थीं। उसके अंदर बहुत तेजी से बहुत कुछ बदल रहा था। दिल की धड़कन फूल स्पीड में थीं। पसीने और बारिश बूंदों ने उसे पूरी तरह भिगो दिया था। उसने तय किया कि अगली सुबह वह उससे फिर से आंखों में आंख डालकर बात करेगा। लेकिन सुबह से पहले एक काली रात से भी उसे गुजरना था। अचानक वह अतीत में लौट जाता है.. वह दूर तक उसे ताकता रहता था, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी। तपती दोपहर भी उसे ठंडक देती थी। वह जब भी उसकी आंखों में झांकता था, खुद को पूरी तरह उसमें खोया हुआ पाता था। उसकी आंखों में पूरी आकाश गंगा समा सकती थी। उसकी तिरछी नजरों में कुछ अजीब सा था। सागर उसे नर्म पैरों को छूकर जब बहता था तो खुद को धन्य मानता था। दूर तक बिखरी काली रात खुद बड़ी नजाकत से उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में काजल लगाती थी। हिरणियां उससे नजरें नहीं मिलाने में शर्माती थी। उसकी आंखे खूबसूरती के सभी पैमाने को तोड़ती थी। वह जिधर से भी गुजरती थी, खिदमत के लिए फरिश्ते उसके पास खड़े रहते थे। उसकी एक दस्तक से पूरी कायनात में बसंत छा जाता था। (मेरी एक कहानी के बीच

अब सबसे खतरनाक होता है सपनों का अधूरे रह जाना

कल रात पाश मेरे सपने में आए मुझे जगाया और फिर जोर-जोर से चिल्लाए सबसे खतरनाक होता है हमारे सपना का मर जाना सबसे खतरनाक होता है हमारे सपना का मर जाना मैंने सोती आंखों से उन्हें चुप कराया कहा, बंद कीजिए अपनी बकवास अब जमाना बदल चुका है, सपनों का कोई मोल नहीं अब सबसे खतरनाक होता है सपनों का अधूरा रह जाना पाश फिर भी नहीं झुके, मैं भी झुकने को तैयार नहीं बहस पूरे शबाब पर थी उन्होंने मेरी कालर पकड़ी और कहा सपनों को मत मरने दो. मैंने भी कहा, कैसे सपने जो अधूरे रह जाते हैं जो हकीकत बनने से पहले टूट-टूट कर बिखर जाते हैं

ए लव स्टोरी एट फेसबुक - 1

देर रात जैसे ही उसे फेसबुक खोला, इनबॉक्स में एक मैसेज था किसी अमित का। अमित ने उसे एड करने की रिक्वेस्ट भेजी थी। उसने पहले उसे इगनोर करने की कोशिश की फिर उसकी प्रोफाइल में जाकर और डिटेल खोजने लगी। अमित के एबाउट मी को पढ़कर वह खुद को उसे एड करने से नहीं रोक पाई। एबाउट मी में लिखा था.मेरे आसपास हर पल बहुत कुछ घटता है लेकिन मैं बिखरता नहीं हूं। बल्कि आसमां की तरह मेरा और विस्तार होता जाता है और सागर की तरह और गहरा। रात गई, बात गई। अगली सुबह जब वह ऑफिस पहुंची तो अचानक उसके मोबाइल ने बीप किया। फेसबुक पर कोई मैसेज था। यह मैसेज अमित का था। उसने थैक यूं लिखा था। वह तुंरत अपने केबिन की ओर मुड़ी और लैपटॉप ऑन करने के साथ ही फेसबुक लॉग किया। वह ऑनलाइन का। बातों का सिलसिला निकल पड़ा। ऐसे ही कई दिन और रात बीत गई। अब अमित और वह अच्छे दोस्त बन चुके थे। दोनों ने अपने-अपने नंबर भी शेयर कर चुके थे एक दूसरे से। लेकिन अब तक फोन पर बात नहीं हुई थी। वह बरसात की शाम की। शहर को पहली बार बारिश ने भिगोया था। कार ड्राइव करते हुए वह घर की ओर लौट रही थी। अचानक उसका मोबाइल बजा। यह अमित का कॉल था। वह उससे मिलना चाहता

अलविदा..अलविदा..अलविदा..

अमित के मन में कुछ था, जिसे वह सब से छिपा रहा था। अपनी मां, पिता, बहन, दोस्त सबसे। उस रात जब वह अपने दोस्त रबींद्र के घर ठहरा हुआ था तो उसने रबींद्र से एक कागज देने को कहा था। इस कागज पर उसने कुछ लिखा। जब रबींद्र ने उसे दिखाने को कहा तो उसने इससे मना कर दिया। रात को सोते समय उसने रबींद्र से पूछा अगर कोई अपने ऑफिस की चौथी मंजिल से छलांग लगा दे तो क्या वह बच पाएगा? इस पर रबींद्र से उसे चुप कराते हुए सोने को कहा। एक मध्यवर्गीय दंपती के 27 साल के बेटे अमित ने अपने दफ्तर की चौथी मंजिल से कूद कर सुसाइड कर लिया था। अगले दिन अमित का अंतिम संस्कार कर दिया गया। उधर दूसरी ओर पूरा दफ्तर परेशान था कि आखिर ऐसा कैसे हो गया? ऑफिस में यह भी चर्चा है कि अमित इमोशनल स्ट्रेस में था। माना जा रहा है कि अपने माता-पिता से दूर रहने के कारण उसके मन में यह स्ट्रेस था, जिसने उसे सुसाइड के लिए प्रेरित किया। अमित के बैग से पुलिस को जो सुसाइड नोट मिला है, उसमें उसने चार लोगों को संबोधित करते हुए कुछ बातें कही हैं। उसने अपनी मां को लिखा है कि वह एक नई दुनिया में कदम रखने जा रहा है। वह आशा करता है कि उसकी मां अपना खुद

कभी जीते थे एक-दूसरे की बाहों में

कभी जीते थे एक-दूसरे की बाहों में आज हो गए बेगाने कल तक जिनकी नजरों में हम थे आज और कोई है कल तक जिनकी नजर हमें खोजती थीं आज किसी और को फिर भी मैं खुश हैं क्योंकि उनकी नजर कोई तो है उनसे कोई गिला नहीं, कोई शिकवा नहीं मैंने ही तो कहा था, भूल जाओ मुझे हम नहीं बने हैं एक दूजे के लिए और जब आज उनका दिल धड़कता है किसी और के लिए तो फिर मुझे क्यों दर्द होता है क्या मैं आज भी तुमसे प्यार करता हूं? हां करता हूं, बिल्कुल करता हूं जब तक दिल धड़केगा, बस तुम्हारे लिए ही धड़केगा हो सके तो मुझे कर माफ फिर से मुझे बसा लो अपनी निगाहों में

क्या तुम मुझे कभी माफ नहीं करोगी?

अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि तुम इतना उदास क्यों रहते हैं। कम क्यों बोलते हो? मेरे पास मुस्कुराने के अलावा कोई जवाब नहीं होता है। लेकिन मैं जानता हूं कि यह मुस्कुराहट सिर्फ लोगों को बेवफूक बनाने के लिए है। उसे गए कई दिन हो गए। मैं हर दिन उंगुलियों पर गिनता हूं कि वह फिर लौटेगी। इंतजार कब दिन से महीने में बदल गए, यह सिर्फ मैं जानता हूं। खैर.देर रात हो चुकी है। मैं छत पर बैठा हूं जहां से पूरा शहर नजर आता है। आसमान शायद साफ है लेकिन मुझे धुंधला सा दिखाई दे रहा है। आंखों को पोछता हूं तो महसूस हुआ कि आंखों में पानी है। क्या तुम्हे याद है जब हम एक साथ इन्हीें आंखों से कई सपने देखे थे। याद है, मुझे पूरा यकीन है। वह अतीत में लौट चुका था। झुलसा देने वाले गर्मी भी उसे अच्छी लगती थी जब वह उसके साथ होता था। उसके होने का अहसास भी काफी था मेरे पास। लेकिन आज मैं अकेला हूं। सोच रहा हूं कि आखिर मेरे गुनाह की इतनी बड़ी सजा मुझे क्यों मिली। कहते हैं कि सुबह का भूला यदि शाम को लौटे तो उसे माफ कर देना चाहिए। क्या तुम मुझे माफ नहीं करोगी। तुम मुझसे भले ही कोसो दूर चली गई हो, भले ही मेरे एक फैसले से हमारे बी

हाथ छूटे, रिश्ते छूटे

कल तक मैं और तुम हम थे कल तक हमारे सपने एक थे कल तक हम दो जिस्म एक जान थे कल तक तुम्हारी नजरों से मैं दुनिया देखता था कल तक हम सिर्फ हम थे कल तक पूरी दुनिया से हम अनजान थे कल तक मुझमें तुम और तुममें मैं था आज सबकुछ बदल गया मैं मैं नहीं रहा, तुम तुम नहीं रही सपने बिखरे, हाथ छूटे कल तक जो हम थे आज मैं और तुम हो गए आज भी दुनिया देखता हूं बस अपनी नजरों से आज दुनिया अनजान नहीं रही साथ छूटा, रिश्ता टूटा हम में से तुम हट गई तो हम मैं बन गया

मनाली और मेरे अनुभव

जब हम हिमाचल की खूबसूरत वादियों में मनाली की फिजा में होते हैं तो जावेद अख्तर का लिखा ये गीत हमेशा हमारी जुबान पर होता है-वो देखो जरा परबतों पे घटाएं, हमारी दास्तान हौले से सुनाए... आपको यकीन ना आए तो इस बार जरा हो के आइए... आप मानेंगे कि हमने गलत नहीं कहा था... मेरी नजर से मनाली खूबसूरत वादियां, बर्फ से ढंके पहाड़, उबड़-खाबड़ पथरीले रास्ते, नागिन की तरह बलखाती घाटियां, सड़क के किनारे कभी दाएं तो कभी बाएं बहती खूबसूरत व्यास नदी। हिमाचल की सीमा शुरू होते ही यह किस्सा आपके साथ चलता है। लेकिन लक्ष्य एक ही था कि जल्दी से जल्दी कुल्लू-मनाली पहुंचना है। कुल्लू में घुसते ही दूर खड़े बर्फीले पहाड़ों पर जब नजर पड़ी तो नजरों को यकीन नहीं हुआ। कुल्लू-मनाली यदि आप जाने की कोई योजना बना रहे हैं तो सब कुछ भूलकर ही वहां जाएं। क्योंकि वहां जाने के बाद आप खुद को जन्नत में पाएंगे। और जब वापस आएंगे तो फिर से खुद को जहन्नुम में पाएंगे। देर शाम जब मैं मनाली पहुंचा तो वहां के बाजार अपने शबाब पर थे। एक छोटा सा कस्बा मनाली दुनियाभर के टूरिस्टों से भरा पड़ा था। हर दुकान पर पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ और सामान

गरीब विदेशी गेहूं खाएंगे

भूख से मर रहे हैं लोग, फिर भी अनाज सड़ रहा है नेता जी खुश हैं, मंत्री जी खुश हैं, सरकार खुश है वाह, वाह ! चलिए जितना अनाज सड़ेगा, उतना आयात बढ़ेगा गरीब विदेशी गेहूं खाएंगे वैसे भी देशी गेहूं में वह बात क्या? आयात बढ़ेगा, मंत्री जी को दलाली मिलेगी वाह, वाह!

जिंदगी का फलसफा समझाते ये शहर

हर शहर का अपना मिजाज होता है। हर शहर कुछ सिखाता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप इन शहरों से क्या सीख पाते हैं? वाराणसी, मुंबई, जयपुर और भोपाल। मेरी जिंदगी का फलसफा इन्हीं से निकला है। खैर सबसे पहले बात बनारस की, जहां मेरा जन्म हुआ। बनारस एक पुराना लेकिन करवट लेता शहर। संस्कृति, परंपराओं के साथ दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक होने का खिताब है इस शहर को। कई शामें बनारस के मशहूर मणिकर्णिका घाट पर गुजारी हैं। यह जगह आपको मोहमाया से मुक्त होने के लिए प्रेरित करेगी तो चाय की छोटी-छोटी दुकानों पर होने वाली बौद्धिक बहसें देश-दुनिया की राजनीति में खींच लाएंगी। खासतौर से दशाश्वमेध और अस्सी घाट की मशहूर दुकानें। यहां सुबह हो या देर रात, मजमा देखने लायक होता है। बनारस को समझना है तो आपको इन दुकानों के अलावा पैदल बनारस की गलियों में भटकना होगा। सबक : जिंदगी गंगा की तरह सबकुछ अपने में समाहित कर निरंतर बहने का नाम है। जयपुर पहुंचा तो युवावस्था की दहलीज पर था। इस शहर को आप दो शहरों का मेल कह सकते हैं। एक पुराना तो दूसरा नया जयपुर। शहर की सड़कों पर मर्सिडीज भी दौड़ती हैं तो ऊंट भी चलते हैं। यह

कभी रुलाती कभी गुदगुदाती यादें

वह एक अजीब सुबह थी। नींद ने कब साथ छोड़ दिया, पता नहीं। आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। वहां अब पुरानी यादें तैर रही थीं। ये यादें स्मृतियों से होते हुए दिल तक पहुंच गईं। 28 बरस मेरे सामने थे। बचपन से लेकर अब तक का सबकुछ आंखों के सामने घूम रहा था। बनारस की संकरी गलियों से होता हुआ अब राजस्थान के रेगिस्तान में खड़ा था। चारों तरफ अजीब-सी बेचैन कर देने वाली खामोशी थी। बैकग्राउंड में केसरिया बालम पधारो नी म्हारे देस की धुन सुनाई दे रही थी। यादों की संकरी गलियां आ-जा रही थीं। कई बार यादें खुशी देती हैं तो कई बार रुला भी देती हैं। यादें तो यादें हैं, उनका क्या? यदि आप भावुक हैं तो यादें ज्यादा परेशान करती हैं। यादें किसी भी घटना, व्यक्ति या संबंध से जुड़ी होती हैं। उस चीज से जितना अधिक मोह, यादें भी उतनी गहरीं। कभी मैं अपने बचपन के शहर बनारस की यादों में खो जाता हूं तो कभी उस प्यार की यादों में, जिसे मैंने मंजिल से पहले ही छोड़ दिया। कभी उस बाघिन की यादों में खो जाता हूं, जो मुझे बांधवगढ़ के जंगलों में मिली थी। बस यादें ऐसी होती हैं। कभी-कभी मैं उनकी यादों में खो जाता हूं, जो कभी मेरे सबसे कर