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Showing posts from January, 2008

अधूरी दास्‍तां-अमित और वो

अमित ने सोचा था कि उसके जाने के बाद उसकी यादें भूली बिसरी यादों की तरह किसी कोने में दम तोड़ देगी। उसकी यादें भी उस नई नवेली दुल्‍हन की पहली सुबह की उसके माथे की बिदिंया की तरह होगी, जो कि बेतरकीब ढंग से माथे पर फिसलती रहती है। और वह काफी हद तक सही था। वो उसे लगातार भूलता जा रहा था, लेकिन दिन न जाने बेमौसम बारिश की तरह उसकी यादें उसे सताती लगती है और वो भीगता रहता है। शायद भीगना चाहता भी है । आज उसे लग रहा था कि उसे उसकी याद नहीं आ रही है। क्‍योंकि यादें तो उनकी आती हैं जिन्‍हें हम भुला देते हैं और उसे तो उसने कभी नहीं भुलाया था। आज वह बस यही सोच र‍हा था कि जब भी वो उससे पहली बार मिलेगा तो उसकी मांग में सुर्ख लाल सिंदूर की हल्‍की लकीर होगी जो कि उसे बार बार इस बात का अहसास कराएगी कि वो अब शादीशुदा है। किसी की बहू तो किसी की पत्‍नी है। ऐसे में उससे मिलना सही होगा। शायद नहीं। यह सोचते सोचते न जाने कब अमित की आंख लग गई। पता ही नहीं चला। सुबह जब नींद टूटी तो घड़ी सुबह के नौ बजने का इशारा कर रही थी। वो आज फिर ऑफिस जाने के लिए लेट हो गया। उसे याद है कि जब से वो उसे छोडकर इस शहर से गई है तब

मुंबई की गुलाबी ठंड के बीच फ्रेंच फिल्‍म फेस्‍टीवल

मुंबई की हल्‍की गुलाबी ठंड और फ्रेंच फिल्‍म फेस्‍टीवल, यदि दोनों एक साथ हो तो क्‍या बात है। मुंबई में पिछले दिनों चार दिवसीय इस फेस्‍टीवल के दौरान बड़ी तादाद में फिल्‍म प्रेमियों ने शिकरत कर , न सिर्फ इस फेस्‍टीवल के आयोजकों का हौसला बढ़ाया, बल्कि एक बार यह फिर से साबित कर दिया कि मुंबई वासी अच्‍छी फिल्‍मों के कितने कद्रदान हैं। हिंदुस्‍तान में यह अपने आप में पहला फिल्‍म फेस्‍टीवल था कि जिसमें आई लगभग सभी फिल्‍मे भारतीय वितरकों को बेची जा चुकी हैं। बस इन्‍हें सिनेमा हाल में प्रदर्शित करने की देर है । आयोजकों का मानना है कि भारतीय सिनेप्रेमी फिल्‍मों के बहुत बड़े दिवानें है, यही कारण है कि फ्रेंच फिल्‍मों को देखने को लिए इतने बड़े पैमाने पर लोग उपस्थित रहे । इस फेस्‍टीवल में दिखाई गई अधिकतर फिल्‍मे नॉन हॉलीवुड की रहीं। आस्‍कर से नवाजी जा चुकी फिल्‍म क्रॉसड ट्रेक को भी भारतीय वितरकों ने हाथों हाथ लिया। फेस्टिवल में दिखाई गई फिल्‍मों में क्रॉस्‍ड ट्रेक्‍स, अजूर एंड असमा और कारामेल प्रमुख फिल्‍में रहीं । फ्रेंच फिल्‍मों का यह सफर 27 जनवरी से 30 जनवरी तक मुंबई में चलने के बाद एक से चार फरवर

राजदीप सर बधाई

आईबीएन7 और नेटवर्क 18 से जुड़े राजदीप सरदेसाई को आज पदम श्री अवार्ड से नवाजा गया। राजदीप सरदेसाई के अलावा एनडीटीवी की बरखा दत्‍त और विनोद दुआ को भी इस अवार्ड से नवाजा गया है।

कविता या कूड़ा

कविताओं का अपना ही संसार होता है। कुछ के लिए कुछ लाइने कविता बन जाती है तो किसी के लिए यह उनके अनुभव होते हैं। मुझे नहीं पता है कि कविता किसे कहेंगे। कविता लिखने के लिए क्‍या किसी अनुभव से होकर गुजरना जरुरी है। कुछ कहेंगे हां और कुछ कहेंगे नहीं। लेकिन कविता तो आपके आसपास रोजाना घटती है। बस उसे शब्‍दों में ढालने की जरुरत है। अब आप ही बताएं कि यहां जो कविताएं है उसे कविता कहें या कूड़ा। आप की जो भी राय होगी, वो सर आंखों पर।

ब्‍लॉग की दुनिया में एक और ब्‍लॉगर

मेरे एक और दोस्‍त ने आखिरकार ब्‍लॉग की दुनिया में कदम रख ही दिया। कानपुर के बिंदकी नामक कस्‍बे के निवासी नमित से मेरी दोस्‍ती कालेज के जमाने की है। नमित फिलहाल छत्‍तीसगढ़ भास्‍कर में कार्यरत हैं। नमित और मैने एक साथ माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता संस्‍थान से मास्‍टर डिग्री हासिल की है। दोस्‍तों की मंडली में ददा के नाम से प्रसिद्व नमित के ब्‍लॉग का लिंक यहां है। आप सभी से निवदेन है ब्‍लॉग की इस दुनिया में उसका स्‍वागत करें। http://namitshukla.blogspot.com/

मुंबई की गुलाबी ठंड और शेयर मार्केट की ठंडक

मुंबई में दो दिन से पड़ रही गुलाबी ठंड ने शहर का मिजाज थोड़ा और रंगीन बना दिया है। मुंबई की लोकल ट्रेन से लेकर चौपटी तक पर इस ठंड का असर देखा जा सकता है। एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले मुंबई के नौजवान इन दिनों इस ठंड का भरपूर मजा उठा रहे हैं। लेकिन यह बात केवल इस शहर के युवाओं पर ही लागू नहीं होती है। जीवन के अंतिम पड़ाव पर खड़े बुर्जुगों का भी यही हाल है। समुंद किनारे इनकी संख्‍या भी कम नहीं है। पूरे बिंदास और नई ताजगी के संग इन बुर्जुगों को जिंदगी का मजा लेते अच्‍छे अच्‍छे युवा चकरा जाएं। कल की मैराथन, मोहरम और मोदी के भाषण के बाद एक बार फिर शहर भागने को तैयार है लेकिन बुरा हो शेयर बाजार का, जिसकी भारी गिरावट से शहर को थोड़ा हिला दिया। इसका सबसे अधिक असर लोकल ट्रेन में देखने को मिलेगा। खासतौर पर विरार लोकल में। इस रुट पर पड़ने वाले भायंदर और वसई रोड स्‍टेशन पर गुजरातियों के साथ मारवाडियों की तादाद बहुत अधिक है और शेयर बाजार में भी इनकी भागीदारी सबसे अधिक है।

गुजरात का शेर मुंबई में दहाड़ा

मुंबई के प्रसिद्व शिवाजी पार्क को जाने वाली हर सड़क कल भगवे रंग में नजर आ रही थी। मौका था गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्‍मान समारोह के बहाने महाराष्‍ट्र में भाजपा में नई जान फूंकने की कोशिश की गई। देखे देखे कौन आया, गुजरात का शेर आया, जैसे नारों के बीच मोदी के निशाने पर कांग्रेस, केंद्रीय सरकार और कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी थी। सभा को संबोधित करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि केंद्र सरकार ने कश्मीर स्थित भारत-पाकिस्तान सीमा से बड़ी संख्या में सैनिकों को हटाने का पाप किया है। उन्होंने कहा कि केंद्र की संप्रग सरकार आतंकवाद से लड़ने में अक्षम है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस देश पर बोझ बन गई है। इससे मुक्ति के बिना देश का भविष्य सुरक्षित नहीं हो सकता। कांग्रेस पर वोटबैंक की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए मोदी ने कहा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक है। मोदी ने कहा कि इसी सांप्रदायिक नजरिये से एक बार देश के टुकड़े हो चुके हैं। अब सरकार गरीबों के पेट भी इसी आधार पर बांटना चाहती है। इस प्रकार सांप्रदायिक नजरिये से बजट तैयार

कल मुंबई दौड़ेगी लेकिन मैं

कुछ दिनों पहले मेरी ही कंपनी से एक ई मेल आया कि यदि आप मुंबई मैराथन में भाग लेना चा‍हते हैं तो ई मेल के साथ भेजे गए फार्म को भर कर फारवर्ड कर दें। इस बात को करीब दो महीने होने को आए। मैने ई मेल का जवाब नहीं दिया लेकिन अब थोड़ा अफसो हो रहा है कि यार आशीष तूने क्‍यों नहीं भाग लिया। खैर समय बीत चुका है और कल मुंबई दौड़ेगी और मैं शायद अपने घर पर सोता रहूंगा या‍ फिर मुंबई के लोगों को दौड़ता देखने के लिए जाऊंगा। पता नही। खैर इस समय यह शहर पूरी तरह दौड़ने के लिए तैयार है। मुंबई के आजाद मैदान से शुरु होकर यह मैराथन बांद्रा तक जाएगी यानि करीब 40 किलोमीटर से अधिक की दौड़। मीडिया से लेकर लोकल ट्रेन तक में हर जगह इस मैराथन का रंग दिख रहा है। जगह जगह होर्डिंग्स लगाए गए हैं और इस पर शहर के आम लोगों को जगह दी गई है। पिछले साल वर्षों से एशिया की सबसे बड़ी मैराथन मुंबई में ही आयोजित की जा रही है। अनुमान है कि इस बार इसमें 33 हजार लोग दौड़ेंगे। अनिल अंबानी, राहुल बोस, तीस्‍ता सीतलवाड़ से लेकर मुंबई के हवलदार, टैक्‍सी चालक और बुर्जुग लोग भी इसमें दौड़ेंगे।

काले कौवे

अब काले कौवे नहीं दिखते हैं साख पर संसद में उनकी आवाजाही बढ़ गई है खादी की टोपी से लेकर नेकर तक कौवे कांव कांव कर रहे हैं संसद में किसी के लिए राम जरुरी है किसी के लिए जरुरी है गरीबों का हाथ फिर भी कौवे कांव कांव कर रहे हैं कोई कहता है कि वे गायब हो रहे हैं तो कोई कहता है कि संसद निगल रही है उनको गली से लेकर संसद के गलियारों तक में कौवे कांव कांव कर रहे हैं मुंबई, 18 जनवरी 2008

वाकई मुंबई हादसों का शहर है

वाकई यह शहर हादसों का शहर है। यहां कब क्‍या हो जाए, कुछ भी कहना मुश्किल है। जैसे आज सुबह मेरे ऑफिस के करीब वाले मॉल में एक आदमी को चाकू घोपकर मारने का प्रयास किया जाता है और कुछ ही देर में यहां पुलिस के साथ प्रेस वालों का जमावड़ा खड़ा हो जाता है और यह जमावड़ा इस पोस्‍ट को लिखने तक वहीं पर खड़ा है। इसमें आईबीएन7, आज तक, स्‍टॉर न्‍यूज से लेकर स्‍थानीय चैनल वाले तक शामिल हैं। कुछ अखबार वाले भी हैं लेकिन उन्‍हें पहचाना थोड़ा मुश्किल है। सब अपने अपने ढ़ंग से स्‍टोरी बनाने में जुटे पड़े हैं। मामला यह है कि मैग्‍नेट मॉल के सुपरवाइजर की हत्‍या का प्रयास किया जाता है और कारण यह था कि उसने अपने एक पूर्व कर्मचारी को वेतन नहीं दिया था। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इतनी छोटी सी वजह से हत्‍या कैसे की जा सकती है लेकिन यह प्रयास हुआ है। बात देखने में भले ही छोटी लगे लेकिन यहां हमें यह देखना होगा कि तीन हजार रुपए की पगार पर काम करने वाले उस व्‍यक्ति के घर की माली हालत कैसी होगी। उसका एक परिवार होगा, जिसमें उसकी पत्‍नी, मां बाप और बच्‍चे होंगे। ऐसे में यदि तीन हजार रुपए यानि उसे पगार नहीं मिले तो उसके घर

बताएं इस ऊब से कैसे निपटा जाए

रविश जी भी ऊब जाते हैं, जबकि वह देश के सर्वोत्‍तम न्‍यूज चैनल में हैं। मैं भी इन दिनों कुछ अधिक ही ऊब रहा हूं। मुंबई से नहीं बल्कि अपनी नौ से सात वाली नौकरी से। पत्रकारिता में कुछ करने के जूनून से आया था और यहां आकर ऊब रहा हूं। हर दिन बीतता जा रहा है। और ऐसे देखते देखते पूरे दो साल गुजर गए। पत्रकारिता में हर किसी को मैं ऊबते हुए देख रहा हूं, खासतौर पर मेरे जैसे युवा पत्रकारों को। जो कि पत्रकारिता को सिर्फ एक नौकरी नहीं बल्कि इससे बढ़कर मानते हैं। लेकिन सीधा सा मामला है कि यदि आप सिस्‍टम को नहीं बदल पाते हैं तो सिस्‍टम आपको बदल जाता है। अधिकतर पत्रकार सिस्‍टम के साथ बदल कर पत्रकारिता नहीं नौकरी कर रहे हैं। मैं भी शायद उन्‍हं के कदमों पर जा रहा हूं। लेकिन समय रहते नहीं चेता तो दिक्‍कत हो जाएगी। सुबह 7 बजकर 49 मिनट की विरार से चर्च गेट की लोकल पकड़ना और फिर दिनभर ऑफिस में वही रुटीन काम और शाम को फिर 7 बजकर 18 मिनट की चर्च गेट विरार लोकल में एक घंटे का सफर। कुछ भी नया नहीं है और ऊब बढ़ती जा रही है। अब आप ही बताएं इस ऊब से कैसे निपटा जाए।

वो नहीं आई

वो हर रोज सुबह के पहली पहल गंगा मईया के दर्शन को आती थी। सुंदर मुख, भरा हुआ शरीर और गहरी आंखों में बहुत कुछ खोया हुआ था उसकी। लेकिन इसके बावजूद वह सफेद साड़ी में लिपड़ी बस जिंदा लाश थी, जो इस शहर की एक धर्मशाला के एक अंधेरे कमरे में रह कर अपनी मौत का इंतजार करती रहती थी। पच्‍चीस साल की थी बिमला बस। रोजाना की तरह वह वहां उसका इंतजार कर रहा था लेकिन आज बिमला नहीं आई। माहौल में अजीब सी खामोशी थी। धर्मशाला के बाहर जब वह पहुंचा तो कुछ लोग एक लाश को बांधकर गंगा मईया के हवाले करने जा रहे थे। आज बिमला हमेशा के लिए गंगा मईया में जा रही थी। अब सिर्फ वह और गंगा मईया होंगी। मोहल्‍ले में चर्चा है कि बिमला ने खुदखुशी कर ली। अब वह उसे कभी नहीं देख पाएगा। वह उससे बात करना चाहता था लेकिन आज तक उसने केवल उसे देखा ही था, बात करने की कभी हिम्‍मत नहीं हुआ और अब तो वह हमेशा के लिए ही चली गई है। कुछ दिनों बाद उस धर्मशाला में एक दूसरी विधवा आ गई।

आर के लक्ष्‍मण

आर के लक्ष्‍मण से मेरी पहली मुलाकात जयपुर के जवाहर कला केंद्र में एक प्रर्दशनी में कई साल पहले हुई थी। उस समय वो व्‍हील चेयर पर थे। काफी तादाद में लोग उनका आटोग्राफ लेने में लगे हुए थे। किसी तरह उनसे कुछ बात हो पाई। लेकिन उनसे बात करने के बाद पता चला कि भले ही उनका शरीर उनका साथ छोड़ रहा है लेकिन आज भी उम्र के इस पड़ाव पर वो थके नहीं हैं। पेश है उन्‍ही की कुछ रचना।

मुंबई की लोकल ट्रेन और सुबह की भागमभाग

मुंबई की लोकल ट्रेन का सफर अक्‍सर कष्‍ट्रदायी ही होता है लेकिन आज यह सुखद रहा। फ्री में जिस ट्रेन में मसाज होती हो वही मुंबई की लोकल है। लोकल जिसमें इंसानों की दशा किसी कत्‍लखाने जाती जानवरों की ट्रक से कम नहीं होती है, जिसमें इंसान जानवर से भी अधिक बुरी तरह ठूंसा रहता है। सुबह जब घर से निकला तो इस बात का पूरा अंदाजा था कि आज 8 बजे वाली लोकल छुटने वाली है। स्‍टेशन पर पहुंचा तो लोकल आती हुई दिख रही। मजबूरन मुझे रेल लाइन पार कर प्‍लेटफार्म दो पर जाना पड़ा। गाड़ी के साथ दौड़ते दौड़ते आखिर मैने ट्रेन पकड़ ही रही। भीड़ बाकी दिनों की तुलना में आज थोड़ी कम थी । गेट के बाजू में, जहां हमेशा मैं खड़ा रहता हूं, वहां जाकर अपने स्‍थान पर खड़ा हो गया। बसई रोड, नायगांव, भायंदर और फिर मीरा रोड़ आते आते साथ के लोग भी आ चुके थे और गाड़ी अब पूरी तरह पैक थी । कान में रेडियों बज रहा था और मैं हल्‍की झपकी लेते हुए सुन रहा था। दादर आया तो अचानक ग्रुप वालों ने स्‍टेशन पर ही चाय और वड़ा पाव खाने की इच्‍छा जता दी । बस फिर क्‍या था, हम सात आठ लोगों की मंडली वहीं वड़ा पाव और चाय पीने के बाद निकल पड़े अपने काम ओर।

उसका यूं चला जाना

कुछ रिश्‍ते ऐसे होते हैं जो हमें सबसे प्रिय होते हैं। उन रिश्‍तों के आगे और पीछे हमें कुछ भी नहीं सूझता है और खास तौर पर ये रिश्‍तों उस दौर में बनते हैं जब आप या तो स्‍कूल में होते हैं या कॉलेज में। यानि उस उम्र में जब आप धीरे धीरे दुनिया को समझने लगते हैं। ऐसा सबके साथ होता है। लेकिन एक वक्‍त ऐसा भी आता है कि आप अपना साया आपका साथ छोड़ने लगता है, दूसरों से क्‍या गिला की जाए। कॉलेज के शुरुआती दौर में की वह उसकी तरफ खींचा चला जा रहा था। कुछ था उस लड़की में। शायद वह उससे प्‍यार करने लगा था। शायद इसलिए क्‍योंकि वह एकतरफा प्‍यार था। और फिल्‍मों की तरह यहां भी एक तरफा प्‍यार सफल हो नहीं सकता। लेकिन कई सालों की दोस्‍ती में उनके बीच एक ऐसा संबंध बन गया था कि उसे विश्‍वास था कि वह उसे कभी छोड़कर नहीं जाएगा। एक दोस्‍त के रुप में वह हमेशा उसके साथ रहेगी। लेकिन नहीं ऐसा नहीं हुआ। मुंबई में एक साल साथ रहने के बाद वह चली गई। स्‍टेशन पर दोनों रोए भी लेकिन वहां जाने के बाद न जाने ऐसा क्‍या हुआ कि वह उससे बात ही करना छोड़ दी। आखिर ऐसा क्‍यूं किया उसने। आज भी वह बस एक ही प्रश्‍न उससे करना चाहता है। लेक

मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़शाँ है हयात तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख़्वाब में बुनवाये हुये जा-ब-जा बिकते हुये कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म ख़ाक में लिथड़े हुये ख़ून में नहलाये हुये जिस्म निकले हुये अमराज़ के तन्नूरों से पीप बहती हुई गलते हुये नासूरों से लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मग़र क्या कीजे और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शिवसेना की आमची मुंबई

जिस बात का डर हुआ, वही हुआ। आमची मुंबई के नाम पर शहर को बांटने वाली शिव सेना ने कहा है कि दूसरे राज्‍यों के निवासी के कारण मुंबई का नाम बदनाम हो रहा है। शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने कहा कि दूसरे प्रांत से आ कर लोग मुंबई में ऐसी घटना को अंजाम देते हैं, हम महिलाओं के उत्‍पीड़न को बर्दाश्‍त नहीं करेंगे। ठाकरे का बयान उस वक्‍त आया है जब कि जुहू छेड़छाड़ मामले में जिन 14 आरोपियों को गुरुवार रात पुलिस ने गिरफ्तार किया था , उनमें से ज्यादातर मराठी मूल के निवासी हैं। शिवसेना के इस ब्‍यान पर राज्‍य कांग्रेस के प्रवक्‍ता संजय निरुपम ने कहा है कि अपराधियों को किसी राज्‍य से जोड़कर देखना गलत है। अपराधियों को सजा मिलनी चाहिए लेकिन इस राजनैतिक इश्‍यू बनाने से बचना चा‍हिए। निरुपम ने कहा कि आज से दो साल पहले हुए एक बलात्‍कार कांड के आरोपी दूसरे राज्‍य के नहीं थे।मुंबई पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार था, जिन्‍हें बाद में जमानत मिल गई, उनके नाम हैं: नीलेश भागयंकर, सुधीर निकावडे, रवींद्र शुक्ला, संदीप शुक्ला, डेरिक जाधव, कुणाल जाधव, सिद्घार्थ सिंह, अमित कपूर, सेबिस्तन डिसल्वा, अजय मराठे, वैभव मराठे, संदीप

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए--पाश की एक और कविता

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्‍छाओं के लिए हम चुनेंगे साथी, जिंदगी के टुकड़े हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर हल अब भी चलता हैं चीखती धरती पर य‍ह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्‍न नाचता है प्रश्‍न के कंधों पर चढ़कर हम लड़ेंगे साथी कत्‍ल हुए जज्‍बों की कसम खाकर बुझी हुई नजरों की कसम खाकर हाथों पर पड़े घटटों की कसम खाकर हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे तब तक जब तक वीरू बकरिहा बकरियों का मूत पीता है खिले हुए सरसों के फूल को जब तक बोने वाले खुद नहीं सूंघते कि सूजी आंखों वाली गांव की अध्‍यापिका का पति जब तक युद्व से लौट नहीं आता जब तक पुलिस के सिपाही अपने भाईयों का गला घोटने को मजबूर हैं कि दफतरों के बाबू जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर हम लड़ेंगे जब तक दुनिया में लड़ने की जरुरत बाकी है जब तक बंदूक न हुई, तक तक तलवार होगी जब तलवार न हुई लड़ने की लगन होगी लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी और हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता हम लड़ेंगे कि अब तक लड़े क्‍यों नहीं हम लड़ेंगे अपनी सजा कबूलने के लिए लड़ते हुए जो मर गए उनकी याद जिंदा रखने के लिए हम

लड़कियां मुंबई की सड़कों पर क्‍यों नहीं निकलें

31 दिसंबर की देर रात मुंबई में जो दो महिलाओं के साथ सत्‍तर अस्‍सी लोगों की भीड़ ने जो कुछ किया, वह शर्मनाक था लेकिन इसी के साथ एक नई बहस छिड़ गई है। ब्‍लॉग की दुनिया में कई लोगों ने इस पर लिखा और कमेंट के रुप में कई लोगों ने अपनी अपनी राय। कुछ ने इसे शर्मसार करने वाली घटना बताई तो किसी ने संस्‍कृति के ठेकेदारों पर सवालिया निशान उठाया। किसी ने इन लड़कियों के बहाने पूरे समाज के सामने यह सवाल उठा दिया कि महिलाओं को देर रात सड़क पर नहीं निकलना चाहिए क्‍योंकि यह हमारी संस्‍कृति में नहीं है। खैर सब ने अपने अपने अनुसार अपनी राय दी। कुछ बातों से मैं सहमत हूं और कुछ से नहीं। लेकिन मैं सभी लोगों का तहेदिल से आभारी हूं कि इन्‍होंने पूरी ईमानदारी से अपनी राय दी। अरे मुंबई तूने यह क्‍या कर डाला नामक शीर्षक खबर के लिए यहां क्लिक करें वाह मनी ब्‍लॉग के कमल शर्मा ने कहा कि भाई शहर सुरक्षित हो या असुरक्षित....रात में पौने दो बजे तो किसी के भी घूमने के लिए ठीक नहीं है। इन महिलाओं के साथ जो अभद्रता हुई वह शर्मनाक है और छेड़ने वालों को खोजकर कानूनी कारईवाई होनी चाहिए। लेकिन इन महिलाओं और इनके पुरुष मित

अरे मुंबई तूने यह क्‍या कर डाला

मैं आज शर्मिंदा हूं। और इस शर्मिंदगी की वजह उस शहर के लोग हैं जिस शहर को मैं अपना दूसरा प्‍यार मानता हूं लेकिन नए वर्ष की शुरुआत पर मुंबई में जो दो महिलाओं के साथ हुआ है, उसके बाद मुझे एक बार सोचना पड़ेगा कि क्‍या वाकई मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है या नहीं। महिलाओं के लिए सुरक्षित समझे जाने वाले इस शहर में नए साल के पहले ही दिन करीब 70 से 80 पुरूषों ने दो युवतियों को घेरकर उनके कपड़े फाड़कर वह सब कुछ किया जो कि हमारे जैसे हर उस शख्‍स के लिए शर्म से डूब जाने की बात है जो कि सभ्‍य समाज में रहने का दावा करता है। मुंबई के अति व्यस्त जुहू इलाके में 70 से 80 पुरूषों ने इन महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की और उनका शारीरिक उत्पीड़न किया। करीब 15 मिनटों तक चली यह शर्मनाक हरकत चलती रही ।खबरों के अनुसार एक जनवरी को सुबह के पौने दो बजे महिलाएं अपने दो पुरूष मित्रों के साथ जे.डब्ल्यू. मैरियट होटल से जूहू बीच की ओर सैर करने आई थीं, तभी लगभग 70 से 80 लोगों की भीड़ ने उन्हें छेड़ना शुरू कर दिया। यह फोटो हिंदुस्‍तान टाइम्‍स के कैमरामेन ने ली है

आईए सुमित का ब्‍लॉग की इस दुनिया में स्‍वागत करें

ब्‍लॉग की दुनिया में एक और शख्‍स ने कदम रख दिया है। नाम है सुमित सिंह। मूलत बिहार के रहने वाले सु‍मित इन दिनों मुंबई में जोश18 के साथ जुड़कर कार्य कर रहे हैं। सुमित एक युवा पत्रकार और मेरे दोस्‍त हैं। आप सभी लोगों से निवेदन है कि सुमित के ब्‍लॉग के साथ उसका भी इस ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत करें। सुमित के ब्‍लॉग का नाम है अपना अपना आसमां । इनके ब्‍लॉग का यूआरएल है http://apnaapnaasman.blogspot.com/