समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस शहर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्यार है। और किसी भी प्यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्टदायक होता है।
इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा नहीं है। बनारस में पैदा हुआ हूं तो उससे मोह होना स्वाभाविक है लेकिन मुंबई के लिए ऐसा कोई कारण नहीं है।
इस शहर की भागती जिंदगी से मैने बहुत कुछ सीखा है। मैने कभी हार नहीं मानना सीखा है यहां से। कुछ भी हो जाएगा बस चलते जाना ही इस शहर का मूल मंत्र है। मुंबई जिंदादिल शहर है। जिसके लिए कहा जाता है कि यह शहर आपको कुछ ही पल में जमीन से उठा कर महल में बैठा सकता है। यह वही शहर है जहां कभी रात नहीं होती है। भागते लोगों को जिंदा शहर। इस शहर की सबसे बड़ी खासियत मैने जो महसूस की है वो यह है कि यह शहर कभी निराश नहीं होता है, कभी थकता नहीं है और कभी हार नहीं मानता है। मुझे याद है कुछ साल पहले जब इस शहर की जीवन रेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेन में बम विस्फोट हुआ था तो लोगों ने किस तरह एक दूसरे की मदद की थी। ऐसा ही कुछ 26 जुलाई 2005 की बाढ़ में देखने को मिला था। जब पूरा मुंबई पानी में डूब रहा था। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी थे जो अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों को बचाने में लगे हुए थे। वे ही मुंबईकर थे। मुझे फ्रर्क है कि दो साल यहां रहने के साथ ही मेरी पहचान मुंबईकर के रुप में हुई। मैंने इस शहर को अपना माना। नतीजा यह हुआ कि इस शहर ने भी मुझे पूरी तरह गले लगाया। लेकिन अफसोस मुझे जाना पड़ रहा है। लेकिन इस शहर को मेरा एक वादा है। मै वापस आऊंगा। जरुर आऊंगा।
इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा नहीं है। बनारस में पैदा हुआ हूं तो उससे मोह होना स्वाभाविक है लेकिन मुंबई के लिए ऐसा कोई कारण नहीं है।
इस शहर की भागती जिंदगी से मैने बहुत कुछ सीखा है। मैने कभी हार नहीं मानना सीखा है यहां से। कुछ भी हो जाएगा बस चलते जाना ही इस शहर का मूल मंत्र है। मुंबई जिंदादिल शहर है। जिसके लिए कहा जाता है कि यह शहर आपको कुछ ही पल में जमीन से उठा कर महल में बैठा सकता है। यह वही शहर है जहां कभी रात नहीं होती है। भागते लोगों को जिंदा शहर। इस शहर की सबसे बड़ी खासियत मैने जो महसूस की है वो यह है कि यह शहर कभी निराश नहीं होता है, कभी थकता नहीं है और कभी हार नहीं मानता है। मुझे याद है कुछ साल पहले जब इस शहर की जीवन रेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेन में बम विस्फोट हुआ था तो लोगों ने किस तरह एक दूसरे की मदद की थी। ऐसा ही कुछ 26 जुलाई 2005 की बाढ़ में देखने को मिला था। जब पूरा मुंबई पानी में डूब रहा था। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी थे जो अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों को बचाने में लगे हुए थे। वे ही मुंबईकर थे। मुझे फ्रर्क है कि दो साल यहां रहने के साथ ही मेरी पहचान मुंबईकर के रुप में हुई। मैंने इस शहर को अपना माना। नतीजा यह हुआ कि इस शहर ने भी मुझे पूरी तरह गले लगाया। लेकिन अफसोस मुझे जाना पड़ रहा है। लेकिन इस शहर को मेरा एक वादा है। मै वापस आऊंगा। जरुर आऊंगा।
Comments
सच है शहर छोडकर जाने का दुख होता है। पर करियर और जिंदगी के लिए कई बार करना होता है ऐसा।
जब किसी से प्यार हो जाता है चाहे वह दोस्त हो या कोई शहर. दुख तो होता है.परतु कोई किसी से दूर नही होता उसकी यादे हमेशा पास रह्ती है इन्ही यादे के सहारे चलते जाओ जिदगी तो चलते रहने का नाम है.
नए काम की बधाई। और, तुम्हीं ने लिखा है कि जिस शहर में जाते हो उसके मोह में बंध जाते हो। इसलिए तीसरा प्यार मिल रहा है। वैसे भोपाल शहर अच्छा है, मैं एक ही बार बहुत पहले गया हूं।
waise bhi mumbai ki aabadi bad rahi hai...
ye dono ya to aapke bahut karibi mitra hain ya fir aapse chidhne vaale.. :D
meri subhkaamanaain..
aisi bhaashaa bolne ka hak ham bas apne doston ko hi dete hain.. :)
या रास्ते में हो
वैसे रास्ते अब
लंबे नहीं रहे
रास्ते रोमिंग में
अपना भेद नहीं देते
आप कहीं भी हो
एक जगह ही हो
यही रोमिंग का सत्य है.
अविनाश वाचस्पति