प्रिय प्रद्युम्न,
तुम जहां भी हो, अपना ख्याल रखना। क्योंकि अब तुम्हारा ख्याल रखने के लिए तुम्हारे मां और पिता तुम्हारे साथ नहीं हैं। हमें भी माफ कर देना। सात साल की उम्र में तुम्हें इस दुनिया से जाना पड़ा। हम तुम्हारी जान नहीं बचा पाए। तुम्हारी मौत के लिए रेयान इंटरनेशनल स्कूल का बस कंडक्टर ही नहीं, बल्कि हम सब भी जिम्मेदार हैं। आखिर हमने कैसे समाज का निर्माण किया है, जहां एक आदमी अपनी हवस को बुझाने के लिए स्कूल का यूज कर रहा था। लेकिन गलत वक्त पर तुमने उसे देख लिया। अपने गुनाह को छुपाने के लिए इस कंडक्टर ने चाकू से तुम्हारा गला रेत कर कत्ल कर देता है। हम क्यों सिर्फ ड्राइवर को ही जिम्मेदार मानें? क्या स्कूल के मैनेजमेंट को इसलिए छोड़ दिया जा सकता है? हां, उन्हें कुछ नहीं होगा। क्योंकि उनकी पहुंच सत्ताधारी पार्टी तक है। प्रिय प्रद्युम्न, हमें माफ कर देना। हम तुम्हें कभी इंसाफ नहीं दिलवा पाएंगे। क्योंकि तुम्हारे रेयान इंटरनेशनल स्कूल की मालिकन सत्ता की काफी करीबी हैं। मैडम ने पिछले चुनाव में अपने देशभर के स्कूलों में एक खास पार्टी के लिए मेंबरशिप का अभियान चलाया था। जिसमें स्कूल के टीचर्स से लेकर अभिभावक तक को जबरन पार्टी की मेंबरशिप दिलाई गई थी। जिसके लिए उनकी काफी आलोचना भी हुई थी। हमें माफ कर देना प्रद्युम्न।
जिस मुल्क में एक महिला पत्रकार की मौत पर लोग जश्न मनाएं। गौरी लंकेश को गालियां दें और उसके लिए आपत्तिजनक भाषा बोलें, उस देश में तुम्हें कहां इंसाफ मिल पाएगा प्रद्युम्न। पिछले कुछेक सालों में देश का मिजाज काफी बदल गया है। कहीं गाय के नाम पर कत्लेआम हो रहा है तो कहीं भारत माता के नाम पर सरकार की आलोचना करने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। इसके बावजूद हमारे जैसे लोग सत्ता की आंखों में आंखे डालकर सवाल पूछने का साहस कर रहे हैं। सिर्फ इसलिए ताकि हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहे।
खैर, आज तुम्हारी ही बात करते हैं। मां ने कितने अरमान से तुम्हें तैयार कर स्कूल भेजा था। बस इस उम्मीद के साथ कि तुम पढ़लिखकर अपने खानदान का नाम रोशन करोगे। तुम तो चले गए लेकिन तुम्हारी मां का रो रोकर बुरा हाल है। पिता तो पिता होते हैं। दर्द उन्हें भी है तुम्हें खोने का। लेकिन उनके आंसू सूख गए हैं। वो यदि कमजोर हो गए तो तुम्हारी मां को कौन संभालेंगा? इसलिए वो चाहकर तुम्हारे जाने का मातम नहीं मना सकते हैं। आज प्राइवेट स्कूल चलाना सबसे फायदे का धंधा है। शिक्षा के नाम पर गली मोहल्लों से लेकर हर इलाके में स्कूल खुल गए हैं। इन स्कूलों को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचाने के लिए सरकारें जानबूझकर सरकारी स्कूलों का स्तर गिराती जा रही हैं। क्योंकि यदि सरकारी स्कूलों का स्तर अच्छा हो गया तो इन निजी स्कूलों में हमारे जैसे अभिभावक अपने बच्चों को क्यों भेजेंगे? अब वक्त आ गया है कि जनता खुद आगे बढ़कर सरकार और निजी स्कूलों की जिम्मेदारी तय करे। वरना इसकी कीमत हमारे बच्चों को उठानी पड़ेगी।
(आशीष महर्षि युवा पत्रकार हैं। फिलहाल में वे भोपाल में एक मीडिया संस्थान में कार्यरत हैं।)
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