टूटने के बाद फिर से जुड़ना शायद इतना तकलीफदेय नहीं होता है जितना जुड़ने के बाद टूटना। कल शाम अचानक वे मेरे सामने खड़ी थीं। मुझे लगा मैं कोई ख्वाब देख रहा हूं, लेकिन यकीन मानिए यह ख्वाब नहीं सोलह आना सच था। अंतिम बार वे मुझे बोरीवली के स्टेषन पर छोड़कर जयपुर चली गई थीं और मैं मुंबई के उसी स्टेषन पर कई दिनों तक उसका इंतजार करता रहा। लगा था कि जयपुर से आने वाली गाड़ी से वे वापस आएगीं। पहले दिन बीते और फिर महीने। लेकिन वे नहीं आईं। मेरा भी मुंबई छूट गया। मौसम बदलते गए और कैलेंडर के पन्ने। पर वे नहीं आईं। धीरे धीरे मैं भी उन्हें भुलाता गया। लगभग भूला ही दिया था। लेकिन अचानक उन्हें देखकर उनके साथ बिताए गए एक एक पल फिर से मेरे सामने जिंदा हो गए। मैने कभी कभी सोचा भी नहीं था कि वे ऐसे मेरे सामने आएंगी। बोरीवली में जब वे छोड़कर जा रही थीं तो कुछ अजीब सा लग रहा था और जब आज वे मेरे सामने हैं तो भी अजीब लग रहा है।
आशीष महर्षि सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे। जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...
Comments
.......ऐसा ही होता है .........बिल्कुल सही लिखा है।
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया।
तो ये मामला है
:)
.......ऐसा ही होता है ........