यदि आप सोच रहे हैं कि मैं आज कुछ बहुत अधिक लिखने जा लिखने जा रहा हूं तो पूरी तरह गलत हैं। जी हां पूरी तरह गलत। चलिए अब बिना अधिक पकाए हुए कहानी की शुरूआत करता हूं। आप इसे कहानी मान भी सकते हैं और नहीं भी। वह शाम भी अन्य शामों की तरह एक सामान्य शाम थी। लेकिन मुंबई की शाम होने के नाते इसमें थोड़ी सी गरमाहट थी। वो अंधेरी रेलवे स्टेषन के प्लेटफार्म नंबर 4 पर खड़ा बैचेनी से विरार की ओर जाने वाली तेज लोकल का इंतजार कर रहा था। रह रहकर उसकी आंखे महिलाओं के फस्र्ट क्लास डिब्बे के सामने वाली भीड़ पर जा कर जम जा रही थी। वह उसका इंतजार कर रहा था। उसे आप कोई भी नाम दे सकते हैं। इससे न मुझे कोई फर्क पड़ने वाला है और न ही इस कहानी को।
अचानक उसकी नजर उस लड़की से मिली और इतने में जोरदार हार्न बजाते हुए 12 डिब्बे वाली लोकल भी आ चुकी थी। उसे घर पहुंचने की जल्दी थी और मुझे भी। मेरा घर उसके स्टेषन से चार स्टेषन आगे था। वह मीरा रोड में रहती थी। उसने किसी तरह अपने बैग को संभालते हुए लोकल में चढ़ने वाली भीड़ का एक हिस्सा बन चुकी थी और मैं भी। लोकल अपनी पूरी गति से भागी जा रही थी। मेरे और उसके डिब्बे को एक जाली जोड़ती थी। मैं हर बार नजर बचाकर उसे देख ही लेता था। लेकिन वह अपने बैग और खूबसूरत बालों के बीच उलझी हुई थी। उसके होंठो पर एक छोटा सा खूबसूरत सा तिल था। जहां बार बार मेरी नजर जाकर फंस रही थी। वह बला की खूबसूरत थी। आधे घंटे का वो सफर उसकी जिंदगी का सबसे बेहतरीन सफल बनेगा, वह भी नहीं जानता था।
कुछ देर बाद ही वो दिखना बंद हो गई थी। शायद उसका स्टेषन आने वाला था। वाकई में वो अब उतरने वाली थी। यह सोचकर मेरा दिल मेरा साथ देने से साफ मना कर रहा था। फिर भी जोर जोर से धड़क रहा था। मन हुआ कि उसके साथ उसी स्टेषन पर उतर जाना चाहिए था लेकिन कल आॅफिस जाने के ख्याल से मैं चाह कर भी नहीं उतर पाया। लोकल ने फिर अपनी स्पीड पकड़ ली थी।
अचानक उसकी नजर उस लड़की से मिली और इतने में जोरदार हार्न बजाते हुए 12 डिब्बे वाली लोकल भी आ चुकी थी। उसे घर पहुंचने की जल्दी थी और मुझे भी। मेरा घर उसके स्टेषन से चार स्टेषन आगे था। वह मीरा रोड में रहती थी। उसने किसी तरह अपने बैग को संभालते हुए लोकल में चढ़ने वाली भीड़ का एक हिस्सा बन चुकी थी और मैं भी। लोकल अपनी पूरी गति से भागी जा रही थी। मेरे और उसके डिब्बे को एक जाली जोड़ती थी। मैं हर बार नजर बचाकर उसे देख ही लेता था। लेकिन वह अपने बैग और खूबसूरत बालों के बीच उलझी हुई थी। उसके होंठो पर एक छोटा सा खूबसूरत सा तिल था। जहां बार बार मेरी नजर जाकर फंस रही थी। वह बला की खूबसूरत थी। आधे घंटे का वो सफर उसकी जिंदगी का सबसे बेहतरीन सफल बनेगा, वह भी नहीं जानता था।
कुछ देर बाद ही वो दिखना बंद हो गई थी। शायद उसका स्टेषन आने वाला था। वाकई में वो अब उतरने वाली थी। यह सोचकर मेरा दिल मेरा साथ देने से साफ मना कर रहा था। फिर भी जोर जोर से धड़क रहा था। मन हुआ कि उसके साथ उसी स्टेषन पर उतर जाना चाहिए था लेकिन कल आॅफिस जाने के ख्याल से मैं चाह कर भी नहीं उतर पाया। लोकल ने फिर अपनी स्पीड पकड़ ली थी।
Comments
मेरे ब्लोग पर भी आये
ham bhi dastan-e-chennai sunate hain.. :)
http://mallar.wordpress.com
:(
ek aarse se teri yaad bhi aayi na hame,
aur ham bhool gaye ho tumhe aisa bhi nahi...
http://shaam-e-ghazal.blogspot.com