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वह सोना चाहता है लेकिन नींद उसकी नीली आंखों से काफी दूर है...

वह लगातार कई दिनों से सोना चाह रहा था। लेकिन नींद थी, जो आने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसकी आंखे तो भारी होती पर हो सो नहीं पाता था। हाथ-पांव के नाखून भी बढ़ चुके थे। इससे नहाने की उम्मीद करना रेत में पानी ढूंढने के समान था।

फिर भी कुछ लोग उससे उम्मीद करते थे अच्छा बनने की। वह जी रहा था। क्यों जी रहा था, यह न उसे पता था और न उसके आसपास के लोगों को। यह अलग बात थी कि उसके आसपास ऐसा कोई नहीं बचा था जिससे वह अपने दिल की बात कर सके।

लेकिन आज से कुछ शताब्दी पहले तक ऐसा नहीं था। बात उस समय की है जब उस शहर में मॉल नहीं आए थे। शॉपिंग साप्ताहिक हॉट में हुआ करती थी। महिलाएं तो सड़क पर ना के बराबर निकलती थीं और सड़कों पर, जहां आज मर्सिडिज और नैनो दौड़ती हैं, वहां सिर्फ ऊंट, हाथी और घोड़े ही थे। शताब्दी बदली तो सबकुछ बदला।

उस जमाने में लोग एक-दूसरे के लिए जीते और मरते थे। आज भी जीते और मरते हैं पर किसके लिए। वह भी किसी के लिए जीना और मरना चाहता था लेकिन यह लंबी दास्तान बन गई। सुना था वह भी किसी के लिए जीती और मरती थी। लेकिन यह क्या अब वह उसके लिए नहीं और किसी के लिए जीने-मरने की बात करने लगी है।

शहर बदल चुका है। लेकिन वह आज भी उसका इंतजार करता है। क्योंकि वह नहीं बदल पाया अपने आपको। वह आज भी जी रहा है पर वह आज सोना चाहता है। वह सोना चाहता है। लेकिन नींद अभी भी उसकी नीली आंखों से काफी दूर है।

Comments

आशीष बहुत दिनों बाद तुम्हारे इस ब्लाग पर आई हूं, इसका पता कहीं खो गया था और बोल हल्ला पर इसका कोई लिंक नहीं है। हमेशा की तरह अपने विचारों को बहुत प्यार से लिख रहे हो, कुछ बताते और कुछ छुपाते हुए
RAJNISH PARIHAR said…
bahut sahi aur achha likha hai...
Anonymous said…
kisi ke liye koi jeeta nahi...aur koi kisi par marta nahi..
vaade hain sare jhuthe aur kasme galat...pyar koi kisi se karta nahi....
... prabhaavashaalee kahaanee !!
rajkishor said…
साहबजी आपका ये रूप देखना सुखद है।

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