आशीष महर्षि
सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे।
जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उस्ताद होती हैं, तो हो सकता है कि नई गिनती में बाघों की तादाद बढ़ी हुई बताई जाए।
साथ ही, आदेश में यह भी जिक्र है कि पार्क खोलने से पहले ‘नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी’ (एनटीसीए) के 18 अगस्त 2015 के आदेश की पालना को भी कहा गया है। इस फैसले के बाद वन्य जीवों के संरक्षण में लगे संगठनों में खलबली मची हुई है। विशेषज्ञ भी अापत्तियां जता रहे हैं। उनका मानना है कि राज्य सरकार का यह फैसला जंगल और बाघों के हित में नहीं है। सिर्फ होटल लॉबी को खुश करने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
केंद्र में कांग्रेस सरकार हो या फिर भाजपा सरकार, इन पर होटल और टूरिज्म लॉबी का लगातार दबाव रहता है। लेकिन कांग्रेस से ज्यादा भाजपा सरकारें दबाव में आ जाती हैं। वजह पर किसी और दिन चर्चा करेंगे। आज केवल बात बाघों की। राजस्थान का रणथंभौर नेशनल पार्क दुनियाभर में अपने बाघों के लिए फेमस है। न जाने कितनी डॉक्युमेंट्री फिल्मों को रणथंभौर पर बनाया गया है। लेकिन अब होटल और टूरिज्म लॉबी के दबाव के कारण रणथंभौर में फुल-डे सफारी की छूट देने के बाद बाघों को उन्हीं के घर में खतरे में डालने की तैयारी कर ली गई है।
खबरों के अनुसार, नेशनल पार्क के 1 से 5 नंबर तक के अहम और वीआईपी समझे जाने वाले टाइगर जोन को 12 महीने खोलने का निर्णय हो गया है। यही नहीं राज्य के सभी टाइगर रिजर्व पर्यटन के लिए अब कभी बंद नहीं होंगे। गौर करें कि टाइगर रिजर्व मानसून सीजन जुलाई से सितंबर महीने तक बंद रहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बाघों का यह प्रजनन काल है और इस दौरान बाघ एकांत पसंद करते हैं। पर्यटकों को भी बाघों से दूर रखा जाता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में वे हमला भी कर सकते हैं।
जंगल के इस नियम के ठीक उलट राज्य के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ने हाल ही में टाइगर रिजर्व के सभी फील्ड डायरेक्टरों को एक निर्देश जारी किया है। इसमें स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की स्टैंडिंग कमेटी का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि मानसून सीजन में टाइगर रिजर्व को खोला जा सकता है। इसके अनुसार, पार्क खोलने से पहले ‘नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी’ (एनटीसीए) के 18 अगस्त 2015 के आदेश की पालना को भी कहा गया है। इस फैसले के बाद वन्य जीवों के संरक्षण में लगे संगठनों में खलबली मची हुई है। विशेषज्ञ भी अापत्तियां जता रहे हैं। उनका मानना है कि राज्य सरकार का यह फैसला जंगल और बाघों के हित में नहीं है। सिर्फ होटल लॉबी को खुश करने के लिए किया जा रहा है। रणथंभौर के फील्ड डायरेक्टर वाई के साहू ने कहा कि हम रोस्टर के हिसाब से एक-एक जोन बंद रखेंगे, बाकी बरसात के हिसाब से देखेंगे। हालांकि एनटीसीए के आदेश, जिसमें मानसून में जंगल बंद रखना था उसकी धज्जियां उड़ना तय है।
राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण के पूर्व सदस्य सचिव राजेश गोपाल कहते हैं कि मानसून में शिकारियों का खतरा बढ़ जाता है। इस समय में टाइगर का प्रजनन-काल होता है, इसमें बाधा नहीं पहुंचनी चाहिए। जहां तक रणथंभौर की बात है तो वहां तो यह और जरूरी है, क्योंकि वहां जंगल के साथ ही बाहर भी हरा-भरा एरिया रहने के कारण जंगल का फर्क कम हो जाता है और बाघों के बाहर निकल ह्यूमन कन्फ्लिक्ट बढ़ने का खतरा। दूसरी तरफ राजस्थान सरकार के वन मंत्री गजेंद्रसिंह खींवसर कहते हैं कि रोटेशन वाइज जंगल खोलेंगे। राजस्थान में केरल जितनी बारिश नहीं होती कि पूरे मानसून में जंगल बंद रखें। जिस दिन कहीं ज्यादा बारिश है तो उस एरिया को बंद रखने का फैसला फील्ड डायरेक्टर लेंगे।
साल के चार महीने जुलाई से लेकर अक्टूबर तक न सिर्फ बाघों के प्रजनन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि जंगलों के लिए भी जरूरी हैं। मानसून का ये वक्त वही होता है जब जंगलों का मेंटेंस किया जाता है, बाकी समय वन विभाग के ऑफिसर्स से लेकर कर्मचारी तक टूरिज्म में लगे रहते हैं। मानसून में ये पूरी तरह जंगलों के रखरखाव में ध्यान देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, मानसून में जंगलों को खोलने का फैसला बाघों से लेकर जंगलों तक के अस्तिव के लिए खतरा पैदा करेगा।
(लेखक वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट हैं। बाघों से खास लगाव है। फिलहाल भोपाल में दैनिक भास्कर ग्रुप के साथ जुड़े हुए हैं।)
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