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मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदमियों की इतनी कमाई नहीं है वो अपने परिवार को दो जून का भोजन दे सकें। यह मुंबई की एक तस्‍वीर है।

Comments

Anonymous said…
aashish ji...
ye hum bhartiyon ka durbhagya hi hai, jo hum apni hi banaayi paramparaon ki awhelna kate hain.
isi wajah se na to hum khud ke ban pate hain na dusaron ke..
jab ye halat mumbai jaise sammridh nagar ki hai, jise desh ki aarthik rajdhani kahaa jata hai, to dusari jagaho ka kya haal hoga..
shayad hamare ander ke janwar ne hamari samwednao ki hatya kar di hai...warna un aadiwasiyo ki ye durgati naa hoti...
Anonymous said…
is desh ka kuch nahi ho sakta hoin..
आशीषजी, ऐसे ही कंक्रीट के जंगल की रिपोर्टिंग करते रहें।
Anonymous said…
Good Report
hey Ashish,
there are lot of bitter things in mumbai, probably more than the good things, first, people come to mumbai to earn a living and other motives are secondary.

But the flip side is that Mumbai does sustains many ! whatever we say !

probably the article looks to be a spoken commentry not a writen one.
मुंबई हो या दिल्‍ली अथवा कोई अंतरराष्‍ट्रीय शहर सभी जगह गरीबी अधिक है लेकिन हमें केवल उजास ही दिखाई देता है और उसी झूठे भ्रम में हम पलते रहते हैं कि हम तेजी से विकास कर रहे हैं।

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