वो चली गई। उसने एक बार भी उसे पीछे मुड़कर नहीं देखा। जबकि वो काफी देर तक उसी चौराहे पर खड़ा देखता रहा। उसे आस थी, वो मुड़ेगी और उसे हल्की नजर से देखेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उसे भरपूर नजर से देखना चाह रहा था। कई दिन, कई महीने, कई बरस और कई सदिया बीत गई। लेकिन वो आज भी वहीं खड़ा है और उसका इंतजार कर रहा है। बस इसी आस में, कि वो चौराहे के किसी न किसी रास्ते से वापस जरुर आएगी। वो आज भी इंतजार कर रहा है।
आशीष महर्षि सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे। जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...
Comments
सो बढ़ लो आगे, खड़े नई रहने का!!
पहले भी कह चुका हूं, अब भी कह रहा हूं कहें आप इसे कल्पना लेकिन पुट है जरुर हकीकत का !!
सुन्दर पीस लिखा है.