वो चली गई। उसने एक बार भी उसे पीछे मुड़कर नहीं देखा। जबकि वो काफी देर तक उसी चौराहे पर खड़ा देखता रहा। उसे आस थी, वो मुड़ेगी और उसे हल्की नजर से देखेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उसे भरपूर नजर से देखना चाह रहा था। कई दिन, कई महीने, कई बरस और कई सदिया बीत गई। लेकिन वो आज भी वहीं खड़ा है और उसका इंतजार कर रहा है। बस इसी आस में, कि वो चौराहे के किसी न किसी रास्ते से वापस जरुर आएगी। वो आज भी इंतजार कर रहा है।
समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस शहर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्यार है। और किसी भी प्यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा
Comments
सो बढ़ लो आगे, खड़े नई रहने का!!
पहले भी कह चुका हूं, अब भी कह रहा हूं कहें आप इसे कल्पना लेकिन पुट है जरुर हकीकत का !!
सुन्दर पीस लिखा है.