लोग कहते हैं कि दूरियों से प्यार बढ़ता है। कुछ वक्त पहले तक यही हम भी मानते थे। लेकिन धारणा अब टूट रही है। जब वे छोड़कर जा रही थीं तो लगा कि वे हमें हमेषा याद रखेंगे लेकिन ऐसा हो नहीं सका। वजह कुछ भी हो सकती। हो यह भी सकता है कि उसे वक्त ही नहीं मिलता है। यह भी संभव है कि वे अब मुझे याद ही नहीं करना चाहते। कुछ ही दिनों में हम उसके कुछ अधिक करीब आ गए थे। खैर यह तो अब पुरानी बात हो चुकी है। जिसे जाना वे जा चुके हैं। इस शहर में जिंदगी जीने का अलग ही मजा आ रहा है। हरदिन यहां के जीवन तो जिंदादिली से जी रहा हूं। इंदौर शहर के लोग जितने अच्छे हैं उतना ही अच्छा यहां का खाना। चाहे यह दाल बाफले हो या फिर साबुदाने की खिचड़ी। बाकी बात अगली बार।
आशीष महर्षि सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे। जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...
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आमतौर पर यही होता है..
Out of sight..
Out of mind..
Regards