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सपनों को तोड़ने के लिए

कई दिनों बाद कुछ लिखने बैठ रहा हूं। दोस्तों ने कहा कि तेरे मुंबई को फिर से निषाना बनाया गया हूं, कुछ तो लिख। सबसे पहले मैं यह बता दूं कि आंतकवादियों ने नरीमन प्वाइंट के जिस होटल को निषाना बनाया है, उसके आसपास और उससे मेरी जिंदगी में बहुत अहम स्िाान है। खासतौर पर मेरे जैसे हजारों ऐसे लोगों को जिन्हें मुंबई पनाह देता है। घर परिवार से दूर, ऑफिस को तनाव को कम करने के लिए नरीमन प्वाइंट सबसे अहम स्थान है। नरीमन प्वाइंट से मेरी पहली मुलाकात हिंदी फिल्मों से हुई थी। मुंबई जाने से पहले ही मैने तय कर लिया था कि सबसे पहले इसी स्थान पर जाना है। और मैं गया भी। इस जगह से मेरी जो पहली याद जुड़ी है, वह यह है कि तीन साल पहले दीवाली की बात है। घर जा नहीं पाया था। बस फिर क्या था रात के दो तीन बजे तक यहीं आकाष और सागर को देखकर घर की याद से लड़ता रहा। कल जब मुंबई ब्लास्ट के फुटेज देखा तो अचानक मुंबई के उन सभी स्थानों पर बिताए एक एक पल याद आ गए, जहां विस्फोट हुआ था। यह विस्फोट मुंबई या हिंदुस्तान को तबाह करने के लिए नहीं बल्कि मेरे जैसे आम आदमी के सपनों को तोड़ने के लिए किया गया। आम आदमी सपने देखता था, देख रहा है और देखता रहेगे। जय हिंद

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मै जरुर वापस आऊंगा

समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्‍हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस श‍हर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्‍थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्‍तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्‍छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है। और किसी भी प्‍यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्‍टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्‍त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्‍त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा

मुंबई का कड़वा सच

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बस में तुम्‍हारा इंतजार

हर रोज की तरह मुझे आज भी पकड़नी थी बेस्‍ट की बस। हर रोज की तरह मैंने किया आज भी तुम्‍हारा इंतजार अंधेरी के उसी बस स्‍टॉप पर जहां कभी हम साथ मिला करते थे अक्‍सर बसों को मैं बस इसलिए छोड़ देता था ताकि तुम्‍हारा साथ पा सकूं ऑफिस के रास्‍ते में कई बार हम साथ साथ गए थे ऑफिस लेकिन अब वो बाते हो गई हैं यादें आज भी मैं बेस्‍ट की बस में तुम्‍हारा इंतजार करता हूं और मुंबई की खाक छानता हूं अंतर बस इतना है अब बस में तन्‍हा हूं फिर भी तुम्‍हारा इंतजार करता हूं