मैं जब भी उससे बात करता था तो एक बात जो मुझे हमेशा और आज भी सताती है,
वो है उसकी खामोशी। मैं कितना बोलता था लेकिन वो कुछ भी नहीं बोलती थी। उसक खामोशी सागर की तरह है। उसकी खामोशी की ही ताकत है कि पूरी रात जागने के बावजूद मैं उसके बारें में लिख पा रहा हूं। सुबह के साढ़े पांच बजे हैं और मैं उसे शिद्दत से महसूस करना चाह रहा हूं। लेकिन मुझे इस बात का इल्म है कि वो करीब नहीं है। मैं इमरोज भी नहीं बन सकता जिसे अमृता प्रीतम से अलग किया जा सके। मैं सिर्फ मैं हूं। लेकिन उसे मैं क्या कहूं?
उसकी मासूमियत ही जो आज भी बांधे रखी हुई है। वरना हम लड़कों की जात तो ऐसी होती है कि तू नहीं तो और कोई। लेकिन मैं आज भी उसकी कमी महसूस कर सकता हूं। उसके साथ मैंने जिंदगी के सबसे बेहतर दिन गुजारे ही नहीं बल्कि जिए हैं।चाहे वे भोपाल के दिन हो या फिर मुंबई के। पिछले कुछ सालों से वे काफी नाराज हैं। उनकी जगह मैं होता तो शायद मैं भी यही करता जो वे कर रही हैं। कभी कभी सोचता हूं कि आज के कुछ सालों बाद मैं अपने रिश्ते को उनके साथ कैसे देखूंगा। मुझे जवाब नहीं मालूम है। वो खुश हैं। लेकिन मैं? इसका जवाब भी मुझे नहीं पता। लेकिन फिर भी इस बात का इल्म है कि मेरी किसी भी हरकत से उन्हें तकलीफ न हो।
Comments
इसमें अपनी मुक्त सांसें लेते रहिये.
aur jo bhi he vo bhi aapki kami mahsoos kar rahi hogi.......