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वह लगातार रोए जा रही थी..

वो लगातार रोई जा रही थी। विदाई की बेला में वैसे भी रोना लड़की के चरित्र के लिए उसके समाज में अच्छा माना जाता है। पिछली जनवरी में जब उसके पड़ोसी शर्मा जी की बेटी हंसते हुए विदा हुई थी तो कई दिनों तक उसकी हंसी चाची-मौसी के लिए चर्चा का विषय बनी रही थी। लेकिन वह लगातार रो रही थी। उसके रोने में अजीब सा कुछ था। जो केवल वही महसूस कर सकता था जो कि कहीं दूर बैठा उसका इंतजार कर रहा था।

वह कभी अपनी मां से लिपट कर रो रही थी तो कभी अपने छोटे भाई से। बाप के पास भी गई थी रोने के लिए। बाप की आंखों में आंसू के दो बूंद तो जरूर थे। लेकिन वह दहाड़ मार कर रो रही थी। कार का दरवाजा खोला जा चुका था। अपने पति और ननद केसाथ वह अंदर बैठ चुकी थी लेकिन उसका रोना थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। वह लगातार रो रही थी।

सुबह के वक्त जब वह अपने पति के लिए चाय बनाने के लिए उठी तो न जाने क्यों मन हुआ कि जाकर अखबार भी ले आया जाए। अखबार से उसका कुछ खास लगाव था। उसका वह भी एक अखबार में ही तो काम करता था। उसके घर आने वाला अखबार भी वही अखबार था जहां उसका प्रेमी काम करता था। अखबार के एक कोने में आज एक छोटी सी खबर थी। उस अखबार के एक संवाददाता की कल रात ही मौत हो चुकी थी। उसका रोना फिर शुरु हो चुका था। वह लगातार रोए जा रही थी। कभी अखबार को देखकर तो कभी अपने हाथों में लगी हुई उस मेहंदी को जिसे उसने किसी के लिए रचाने का वादा किया था। वह लगातार रोई जा रही थी।

Comments

Anonymous said…
subah subah itni dardnak kahani...ap media wale bhi!
Anonymous said…
bahut marmik kahani,achhi lagi
Unknown said…
' कथा' ही है न आशीषजी,कहीं 'सत्य कथा'
तो नहीं लिख दिए आप!!!!?
sandeep sharma said…
क्या खूब लिखा है...
इस पर मैं हंसू या रोऊँ....
समझ नहीं आता...
Anonymous said…
wade hote hi tutne ke lie hain ashish bhai...samay bahut balwan hota hai..waise kahani acchi hai par haqiqat me yahi hota hai..samay ke sath sab apne atit ko bhul jate hain.islie wo bhi bhul jaegi..waise apko dusron ki kahanion ya sacchaiyon ko aise sabke samne lane me bahut maja aata hai..badle nai aap..gud..kabhi itminan se sochiyega ashish babu ksii ki jindagi ka majak aise nahi banate..
Unknown said…
Itni pessimistic kahani q likhte ho?
Anonymous said…
aisa sirf kahaniyon me hota hai..vastvikata isase kahi ulat hoti hai.......sach kahe to pyar jaisi koi chhej nahi hoti....hota hai to bas swarth....aur sabki apani mahavkanshayen...jab tak jisase swarth pura hota hai sahi hai..usase adhik swarth ki purti karne wala koi aa gaya..to bas pichhla chhut jata hai...
ashish, tumhe kya ho raha hai, ye devdas style kahaniyan khoob likh rahe ho
गुरू जी इसमें तो संपादक महोदय की भी गलती है....पर सजा सिर्फ लड़की को क्यूं.....

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