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एक नजर यारा दा ठर्रापना पर

हिंदी में इस वक्त इतने ब्लॉग हो गए हैं कि कुछ समझ में ही नहीं आता है कि कौन से ब्लॉग को पढ़ा जाए और कौन सा छोड़ा जाए। कुछ ऐसे ब्लॉग हैं जिन्हें चौबीस घंटे में एक बार देखना ही पढ़ता है। मजबूरी सी हो गई है। तो कुछ ऐसे ब्लॉग भी हैं जहां कभी कभी नजर पढ़ती है। कुछ ब्लॉग जिन पर कभी कभी जाना होता है, उन्हें पढ़कर यही लगता है कि इनकी गलियों में कभी कभी क्यों जाया जाए। रोज क्यों नहीं?

मसलन एक नजर शब्द योग पर। शब्द योग ब्लॉग पर जहां कुछ अच्छे व्यंग्य हैं तो कुछ दिल को छूती कविता। शब्द योग ब्लॉग के लेखक अनुज खरे भोपाल में रहते हैं और दैनिक भास्कर में कार्यरत्त हैं। इनकी व्यंग्य की शैली कमाल है। यकीन नहीं आता तो एक नजर यारा दा ठर्रापना पर। इसे पढ़ने पर आप बिना कमेंट के रही नहीं सकते हैं। तो देर किस बात की। जरा जल्दी से पढ़कर मुझे बताएं।

Comments

Anonymous said…
यार ब्लॉग तो शानदार है। खैर सुना है तुम्हारी पाखी की शादी है।

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