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चारों ओर कब्र, बीच में दुनिया का इकलौता शिव मंदिर


वाराणसी। दुनिया के सबसे पुराने शहरों में शुमार बनारस के बारे में मान्यता है कि यहां मरने वालों को महादेव तारक मंत्र देते हैं, जिससे मोक्ष लेने वाला कभी भी दोबारा गर्भ में नहीं पहुंचता। इसी बनारस में एक ऐसा मंदिर भी है जो कब्रिस्तान के बीचोंबीच है। ओंकारेश्वर महादेव मंदिर भले ही हजारों साल पुराना हो, लेकिन बनारस के स्थानीय लोगों को भी इसके बारे में बहुत कम जानकारी है।

मंदिर के पुजारी शिवदत्त पांडेया के अनुसार, "काशी खंड में ओंकारेश्वर महादेव का जिक्र है। ये मंदिर करीब पांच हजार साल पुराना है। यहां दर्शन से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है, तीर्थ माना गया है लेकिन आज कभी कोई भूला-बिसरा यहां दर्शन करने आ जाता है। वरना ये मंदिर हमेशा सुनसान ही रहता है।"


स्कंद पुराण में ओंकारेश्वर महादेव का जिक्र है। इस पुराण के अनुसार, काशी में जब ब्रह्मा जी ने हजारों साल तक भगवान शिव की तपस्या की, तो शिव ने ओंकार रूप में प्रकट होकर वर दिया और इसी महालिंग में लीन हो गए।

ग्रंथों के मुताबिक, एक विशेष दिन सभी तीर्थ ओंकारेश्वर दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन इस मंदिर से जिला प्रशासन और सरकार दोनों ने मुंह मोड़ रखा है।

ऐसा है ओंकारेश्वर महादेव मंदिर

एक ऊंचे टीले पर बने इस मंदिर के चारों ओर कब्र ही कब्र हैं। पास ही एक मजार और मस्जिद बनी हुई है। कुछ सीढ़ियां चढ़कर मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है।


बनारस से नहीं, दर्शन करने दक्षिण भारत से आते हैं लोग

 मंदिर के पुजारी शि‍‍वदत्त पांडेय कहते हैं कि इस मंदिर में कभी-कभी कोई स्थानीय बाशिंदा ही दर्शन करने आता है। अक्सर यहां दक्षिण भारत से तीर्थ यात्री आते हैं और पूजा करते हैं।

पुण्य देने वाला  कुंड गंदा

जि‍स मच्छोदरी कुंड में लोग नहाकर कभी इस मंदि‍र में दर्शन के लि‍ए जाया करते थे, आज वह एक गंदे पोखर में तब्दील हो गया है। बनारस की फेमस अनाज मंडी विश्वेश्वरगंज से प्रह्लाद घाट की ओर जाने वाले रास्ते पर मच्छोदरी तालाब पड़ता है। इसी तालाब पर मोहल्ले का नाम मच्छोदरी पड़ा है।   मान्यता है कि इस कुंड में नहाने से पुण्य मिलता है।

गौरतलब है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व बारिश के दिनों में गंगा में बाढ़ के कारण वरुणा नदी उलटी बहती हुई मत्स्योदरी (मच्छोदरी) में आ जाती थी। उस समय वहां नहाने से मनुष्य ब्रह्म हत्या के पाप से भी छुटकारा पा जाता था।

दर्शन से अश्वमेघ यज्ञ का फल

काशीखंड के 86वें अध्याय में इस मंदिर का जिक्र है। मान्यता तो यहां तक है कि ओंकारेश्वर महादेव के दर्शन से अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

काशी खंड के अनुसार, " ओंकारेश्वर महादेव की यात्रा के लिए ब्रहमांड के सभी तीर्थ बैशाख शुक्ल चतुर्दशी को लिंग प्रधान श्री ओंकारेश्वर की यात्रा करते हैं। "

पुराणों के अनुसार, समस्त ब्रह्मांड में बनारस का अविमुक्त क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण है। यहां मरने वाले जन्म और मृत्यु के कालचक्र से मुक्ति पाकर मोक्ष पा जाते हैं। काशी के अविमुक्त श्रेत्र में ओंकारेंश्वर का स्थान सबसे श्रेष्ठ है।

विश्वनाथ मंदिर आते हैं रोजाना लाखों लोग, यहां कोई नहीं


पंडित शिवदत्त पांडेय के अनुसार, ‘पुराणों में उल्लेख है कि ब्रह्मांड में जितने भी तीर्थ हैं, वे सभी वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को ओंकारेश्वर दर्शन के लिए काशी आते हैं। बनारस में हर दिन लाखों लोग विश्वनाथ मंदिर दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन ओंकारेश्वर मंदिर से दूरी रखते हैं।

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