आज फिर से बात उत्तर प्रदेश की। यूपी की बात इस वक्त होगी तो चुनाव का जिक्र भी होगा। जिक्र संघ और भाजपा के साथ नरेंद्र मोदी का भी होगा। चलिए फिर आज हम इन्हीं के बारे में जिक्र करते हैं। भाजपा का यूपी में हारना देश के सबसे बड़े संगठन संघ के लिए रामबाण जैसा होगा। ये हार जहां संघ को फिर से जिंदा करने में मदद करेगी, वहीं प्रचंड बहुमत से सत्ता में आए मोदी एंड टीम पर थोड़ा अंकुश भी लगाएगी। क्योंकि ये पहली दफा है जब केंद्र में तो भाजपा की मजबूत सरकार है लेकिन संघ और उसका एजेंडा कहीं दूर तलक तक नहीं दिखता। संघ की पहचान हमेशा से ऐसे संगठन की रही है जो खुद को सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त बताता है और ऐसे मुल्क का ख्वाब देखता है जहां केवल हिंदुओं के लिए स्थान होगा। यानी ऐसे मुल्क में मुसलमानों और उनसे जुड़ी किसी भी चीज के लिए कोई जगह नहीं होगा। लेकिन ये दुर्भाग्य है संघ का कि केंद्र में सत्ता में आने के बाद भाजपा के उसके प्रधानमंत्री एजेंडे से विचलित हो जाते हैं। बात राम मंदिर की हो, गो हत्या की हो या फिर सिविल यूनिफॉर्म कोड की हो। हर बार भाजपा की सरकार ने संघ से केवल वादे किए, लेकिन निभाए कभी नहीं। जबकि संघ का अस्तिव ही इन मुद्दों के कारण है। संघ से जुड़े करोड़ों लोग चाहते हैं कि मुसलमानों को सबक सिखाया जाए। लेकिन सत्ता की मलाई खाने के चक्कर में बेचारे संघी प्रधानमंत्री ये भूल जाते हैं।
खैर फिर से हम मुद्दे पर लौटते हैं। मोदी के कारण कहीं न कहीं संघ और पूरी भाजपा हाशिए पर चली गई है। हर तरफ जिक्र मोदी और अमित शाह का ही होता है। मोदी तो पार्टी और संघ से बड़े हो चुके हैं। ऐसे में भाजपा के कई नेता और पूरा संघ चाहता है कि मोदी के बढ़ते कद को कम करना जरूरी है। यही कारण है कि यूपी जैसे सबसे महत्वपूर्ण राज्य में हो रहे विधानसभा चुनाव में संघ कहीं दूर तक नहीं दिख रहा है। संघ एक संगठन के तौर पर इस चुनाव से दूरी बना चुका है। क्योंकि उसे पता है कि यदि यूपी में भाजपा जीतती है तो मोदी को संभालना असंभव हो जाएगा। इसलिए यूपी के सिंहासन से भाजपा की दूरी जरूरी है। क्योंकि कई बार चार कदम दौड़ने के लिए दो कदम पीछे भी जाना होता है। संघ भी इस बार इसी सोच के साथ काम कर रहा है। यूपी में इस बार अमित शाह के नेतृत्व में जो टिकट का बंटवारा हुआ है, उससे भी संघ के नेताओं में काफी नाराजगी है। भाजपा ने जीत के लालच में ऐसे नेताओं को टिकट बांटा है, जिनका संघ की विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में यदि चुनाव में संघ दूरी बनाता है तो भाजपा की हार तय है। ये हार भाजपा के साथ मोदी और अमित शाह के बढ़ते कदमों को भी रोकेगी, लेकिन जीत संघ की होगी। संघ को यदि खुद का अस्तिव बचाए रखना है तो भाजपा को हारना होगा। भाजपा की हार मोदी की हार होगी।
यदि यूपी चुनाव में भाजपा हारती है तो एक बार फिर से पार्टी पर संघ की पकड़ मजबूत होगी। ऐसा हम नहीं, बल्कि संघ के कई नेता दबी जुबान में ऑफ द रिकॉर्ड मानते भी हैं। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में संघ मोदी को साइडलाइन कर ऐसे नेता की तलाश करेगा, जो संघ के कंट्रोल में रहे। संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाए। खैर, राजनीति में कुछ भी कहना संभव नहीं है। इसलिए बदलते वक्त को देखते रहिए और देखते रहिए कि यूपी में करवट लेता हुआ ऊंट दिल्ली से लेकर नागपुर तक में कहां बैठेगा।
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