मुंबई की भागमभाग जिंदगी से तंग आकर मध्यप्रदेश के गांवों में कुछ दिन शांति के लिए बिताने गया तो वहां भी शांति नहीं मिल पाई। अजी साहेब शांति मिलती भी कैसे। जब हमारे प्यारे प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री जी चैन की सांस नहीं ले पा रहे हैं तो मेरे जैसे खबरनवीस की क्या हैसियत। नाक में दमकर दिया है इस निकम्मे गेहूं ने। मप्र के खेतों में इन दिनों गेहूं और चना मिलकर यूपीए सरकार को राहत पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। लेकिन डर बस इस बात का है कि यदि विपक्षी पाटियों को गेहूं व चना की योजना का कहीं पता चल गया तो गुड़ गोबर न कर दे। हुआ यूं कि गेहूं और चना देश की महंगाई कम करने में लगे हुए हैं। जबकि, विपक्ष को डर इस बात था कि यदि महंगाई कम हुआ तो उप्र के चुनाव में क्या मुद्वा उठाएगें। इस बार इन दोनों फसलों ने मिलकर रिकार्ड उत्पादन का मन बना लिया। गेहूं जहां 720 लाख टन के नीचे समझौता करने को तैयार नहीं है वहीं, ससुरा चना भी 68 लाख टन की बात कर रहा है। अब इतना उत्पादन होगा तो बेचारी विपक्ष क्या करेगी। लेकिन ये गेहूं और चना इस बात को समझ ही नहीं रहें हैं। देश में जब महंगाई का दानव फैल रहा था तो इस ठिकरा फोडा गया गेहूं पर। वित्तमंत्री ने कहा कि इस निकम्मे गेहूं की वजह से महंगाई बढ़ी है। यह सुनकर पिछले कई महीनों तक गेहूं सो नहीं पाया लेकिन अंत में इसने भी फैसला कर लिया था बहुत हो गया अब हम नहीं झुकेगें। सरकार के साथ दो दो हाथ करने का मन भी बना लिया था लेकिन जब 55 लाख टन गेहूं आयात की खबर उसके कानों में पड़ी तो उससे रहा नहीं गया और परिणाम पूरा जोर लगा कर देश को बंपर उत्पादन देने की ठानी लेकिन सरकार का अभी भी चैन नहीं पड़ रहा है। रह रहकर सरकार के नुमाइंदे कोई नया राग छेड़ देते हैं। देश में एक ओर बंपर उत्पादन तो वहीं फिर से तीस लाख टन गेहूं आयात की संभावना। अब बताईऐ बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी।
समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस शहर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्यार है। और किसी भी प्यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा
Comments
Mohan
ab chahe kuchh bhi ho jaye...gehu aur chane ki yojna vifal nahi hone payegi....