Skip to main content

मुंबई और मेरे एक साल


मुंबई में आए एक साल होने को है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिए हैं। जिसमें पेट भरने के लिए एक अदद नौकरी, अच्‍छे दोस्‍त और एक पहचान। कुछ लोगों से गिले शिकवे मिटे तो कुछ लोगों से दूरियां। लेकिन इन सबके बावजूद मैं खुश हूं इस शहर से। थोड़ा तन्‍हां हूं लेकिन इस तंहाई को अपनी ताकत बनाने को प्रयास कर रहा हूं जो कि जारी है। मेरी एक दोस्‍त इन दिनों स्विजलैंड मे है। उससे जब मैनें अपनी तंहाई की बातें बताई तो उसका यही कहना कि अपनी तंहाई को अपनी ताकत बना। बात दिल को जम गई और कर लिया तय कि इस तंहाई को अपनी ताकत बनाई जाए। कालेज के कुछ दोस्‍त यहां पर भी है और कुद दिल्‍ली और बिलासपुर में। याद आती है इन सबकी। कालेज के बाद सीधे नौकरी के मैदान में कूद पड़ा हूं। कालेज में बिताई गए एक एक दिन और एक एक चीजें आज भी मेरे जेहन में बसी हुईं हैं। लेकिन मुंबई की भीड़ और व्‍यस्‍त लाइफ में भी उन यादों को नहीं भूला पाया हूं और भूलाना भी नहीं चाहता हूं। जब भी याद आती है तो फोन पर बात कर ली या फिर पुराने एलबम देख लेता हूं। मुंबई में लाखों लोग अपने सपनों को साकार करने के लिए आते हैं। कुछ इस भीड़ में खो जाते हैं तो कुछ नई पहचान बना लेते हैं। लेकिन मुझे आगे जाना है।सफर की शुरुआत जरुर यहां से हुई है लेकिन अंत कहां होगा. . . .मैं नहीं जानता हूं। लेकिन मुझे सिर्फ जीत पसंद है और मुझे जीतने की आदत भी है।बस इस जीत से किसी को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। इस शहर से मुझे आत्‍मविश्‍वास मिला है जो कि पहले बहुत कम था। रोज नालासोपारा स्‍टेशन से सफर शुरु होता है जो कि अंधेरी तक जाता है। दिनभर न्‍यूज के साथ खेलने के बाद शाम को फिर घर के लिए वापसी। बस पिछले एक सालों से यही चल रहा है। लेकिन इसके बाद का वक्‍त मेरा अपना होता है। जब मैं कुछ लिखता हूं और कुछ पढ़ता हूं। लेकिन मन में हमेशा एक उलझन रहती है।

सीने में जलन, आंखों में चुभन,
इस शहर में हर शख्‍स परेशां सा क्‍यूं हैं।

Comments

भाई आशीष जी, मुंबई में आप यदि करना चाहे तो काफी कुछ किया जा सकता है। यहां कई बेहतर पुस्‍तकालय हैं तो अनेक लोग आपके अच्‍छे ऐसे दोस्‍त बन सकते हैं जिनसे आपको नहीं लगेगा कि यहां आप नए हैं। लेकिन एक बात साफ बता दूं कि यहां आप काफी कुछ सीखिएं और दूसरे मध्‍यम कस्‍बों में जाकर ज्ञान व तकनीकी का उपयोग किजिए, मजा आएगा।

Popular posts from this blog

बाघों की मौत के लिए फिर मोदी होंगे जिम्मेदार?

आशीष महर्षि  सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे।  जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा...

सेक्‍स बनाम सेक्‍स शिक्षा

बहस जारी है सेक्स शिक्षा पर। कुछ लोग साथ हैं तो कुछ लोग विरोध में खड़े हैं। सामने खड़े लोगों का कहना है कि इससे हमारी संस्‍कृति को खतरा है। युवा पीढ़ी अपने राह से भटक सकती है। मैं भी एक युवा हूं, उम्र चौब्‍बीस साल की है। लेकिन मुझे नहीं लगता है कि सेक्‍स शिक्षा से हम अपनी राह से भटक सकते हैं। तो वो कौन होते हैं जो हमारे जैसे और हमारे बाद की पीढि़यों के लिए यह निर्धारित करेंगे कि हम क्‍या पढ़े और क्‍या नहीं। रवीश जी ने अपने लेख में सही ही लिखा है कि सेक्स शिक्षा से हम हर दिन दो चार होते रहते हैं । चौराहे पर लगे और टीवी में दिखाये जाने वाले एड्स विरोधी विज्ञापन किसी न किसी रूप में सेक्स शिक्षा ही तो दे रहे हैं । फिर विरोध कैसा । सेक्स संकट में है । देश नहीं है । समाज नहीं है । इसके लिए शिक्षा ज़रुरी है । लेकिन यह हमारा दोगलापन ही है कि हम घर की छतों और तकियों के नीचे बाबा मस्‍तराम और प्‍ले बाय जैसी किताबें रख सकते हैं लेकिन जब इस पर बात करने की आएगी तो हमारी जुबां बंद हो जाती है। हम दुनियाभर की बात कर सकते हैं, नेट से लेकर दरियागंज तक के फुटपाथ पर वो साहित्‍य तलाश सकते हैं जिसे हमारा सम...