टूटने के बाद फिर से जुड़ना शायद इतना तकलीफदेय नहीं होता है जितना जुड़ने के बाद टूटना। कल शाम अचानक वे मेरे सामने खड़ी थीं। मुझे लगा मैं कोई ख्वाब देख रहा हूं, लेकिन यकीन मानिए यह ख्वाब नहीं सोलह आना सच था। अंतिम बार वे मुझे बोरीवली के स्टेषन पर छोड़कर जयपुर चली गई थीं और मैं मुंबई के उसी स्टेषन पर कई दिनों तक उसका इंतजार करता रहा। लगा था कि जयपुर से आने वाली गाड़ी से वे वापस आएगीं। पहले दिन बीते और फिर महीने। लेकिन वे नहीं आईं। मेरा भी मुंबई छूट गया। मौसम बदलते गए और कैलेंडर के पन्ने। पर वे नहीं आईं। धीरे धीरे मैं भी उन्हें भुलाता गया। लगभग भूला ही दिया था। लेकिन अचानक उन्हें देखकर उनके साथ बिताए गए एक एक पल फिर से मेरे सामने जिंदा हो गए। मैने कभी कभी सोचा भी नहीं था कि वे ऐसे मेरे सामने आएंगी। बोरीवली में जब वे छोड़कर जा रही थीं तो कुछ अजीब सा लग रहा था और जब आज वे मेरे सामने हैं तो भी अजीब लग रहा है।
मुंबई यानि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्चे कुपोषित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्चे उन्हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम
Comments
.......ऐसा ही होता है .........बिल्कुल सही लिखा है।
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया।
तो ये मामला है
:)
.......ऐसा ही होता है ........