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कभी रुलाती कभी गुदगुदाती यादें


वह एक अजीब सुबह थी। नींद ने कब साथ छोड़ दिया, पता नहीं। आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। वहां अब पुरानी यादें तैर रही थीं। ये यादें स्मृतियों से होते हुए दिल तक पहुंच गईं। 28 बरस मेरे सामने थे। बचपन से लेकर अब तक का सबकुछ आंखों के सामने घूम रहा था। बनारस की संकरी गलियों से होता हुआ अब राजस्थान के रेगिस्तान में खड़ा था। चारों तरफ अजीब-सी बेचैन कर देने वाली खामोशी थी। बैकग्राउंड में केसरिया बालम पधारो नी म्हारे देस की धुन सुनाई दे रही थी। यादों की संकरी गलियां आ-जा रही थीं।

कई बार यादें खुशी देती हैं तो कई बार रुला भी देती हैं। यादें तो यादें हैं, उनका क्या? यदि आप भावुक हैं तो यादें ज्यादा परेशान करती हैं। यादें किसी भी घटना, व्यक्ति या संबंध से जुड़ी होती हैं। उस चीज से जितना अधिक मोह, यादें भी उतनी गहरीं। कभी मैं अपने बचपन के शहर बनारस की यादों में खो जाता हूं तो कभी उस प्यार की यादों में, जिसे मैंने मंजिल से पहले ही छोड़ दिया। कभी उस बाघिन की यादों में खो जाता हूं, जो मुझे बांधवगढ़ के जंगलों में मिली थी। बस यादें ऐसी होती हैं। कभी-कभी मैं उनकी यादों में खो जाता हूं, जो कभी मेरे सबसे करीब थे। क्या कभी पुराने जमाने के फोटो एलबम को पलटते हुए आप यादों के संसार में लौटे हैं? इसका अपना एक अलग ही अनुभव है। यादें कुलबुलाती हैं। शरीर से लेकर रूह तक छा जाती हैं। पिछले दिनों पुरानी तस्वीरें देखते-देखते मैं न जाने कहां-कहां घूम आया। वाकई यादों का कोई जोड़-तोड़ नहीं है। यादें मोबाइल फोन पर भी आपको कुलबुला सकती हैं। यहां तक कि आपके इनबॉक्स में पड़े कई साल पुराने मैसेज भी आपको उस दुनिया में ले जा सकते हैं।

कभी आप अपने उन दोस्तों के पुराने ईमेल पढ़िए, जो आपके सबसे करीब थे। दिल को बहुत सुकून मिलता है। मैंने अपने उन दोस्तों के ईमेल और तस्वीरें आज भी संभालकर रखी हैं, जो अब दूर हो गए हैं। बस इस उम्मीद के संग कि जिंदगी के किसी भी मोड़ पर उनसे मुलाकात हो तो उनके साथ मैं इन्हें शेयर कर सकूं। कई बार बॉलीवुड की फिल्में भी आपको यादों की दुनिया में ले जाती हैं। अक्सर फिल्मों में मैं खुद को और अपनों को खोजता हूं। किसी न किसी किरदार में जब वह मिल जाता है तो फिर यादों का लंबा सफर शुरू हो जाता है। मसलन नगीना फिल्म हमेशा मुझे बचपन के दिनों में ले जाती है, जब पूरे इलाके में सिर्फ हमारे यहां ही रंगीन टीवी और वीसीआर लाकर पूरी रात तीन फिल्में देखी जाती थीं। वह उत्सव की रात होती थी। परिवार के तमाम सदस्य हों या आसपास के लोग, सब छत पर जुटते थे। तीन फिल्मों का भी अपना अलग ही तर्क था। सौ रुपए में वीसीआर और तीन फिल्मों का पूरा पैकेज आता था। सुबह वह वापस चला जाता था।

कई बार ऐसा भी हुआ करता था कि दो फिल्में रात में और एक सुबह जल्दी उठकर पूरी करनी होती थी। अक्सर यह शनिवार की रात हुआ करती थी। कई बार खबरें भी आपको पुरानी यादों में ले जाती हैं। जब भी मैं ऑनर किलिंग की खबरें पढ़ता हूं तो मुझे अपने उस प्यार की याद सताने लगती है, जो मेरे लिए सबकुछ छोड़कर पूरी दुनिया से लड़ने के लिए तैयार थी। लेकिन मैं गलती कर बैठा। आज बस उसकी यादें ही साथ हैं। ऐसी न जाने कितनी यादें मुझे तंग कर रही हैं।

कभी ये यादें ख्वाबों में तो कभी खुद साक्षात प्रकट होती हैं। लोग चले जाते हैं, लेकिन उनकी यादें रह जाती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि याद उन बातों को किया जाता है, जिन्हें हम भुला देते हैं। लेकिन मुझे तो हर बात याद है। क्या आपको याद है? मैं यादों के समंदर से निकलने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन उसमें धंसता जा रहा हूं।

Comments

vivek kumar said…
good
आदमी को हमेशा पॉजिटिव होना चाहिए.
स्स्स
बिमारियों में नहीं, विचारों में....
vivek kumar said…
good
आदमी को हमेशा पॉजिटिव होना चाहिए.
ssss
बिमारियों में नहीं विचारों में....

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