हम जी रहे हैं। क्यों जी रहे हैं? इसका जवाब कोई नहीं ढूंढना चाहता। दिल और दुनिया के बीच हर इंसान कहीं न कहीं फंसा हुआ है। मौत आपको आकर चूम लेती और हम दिल और दुनिया के बीच में फंसे रहते हैं। बहुत से लोगों को इसका अहसास तक नहीं होता है कि वो क्या करना चाहते थे और क्या कर रहे हैं। बचपन से लेकर जवानी की शुरूअात तक हर कोई एक सपना देखता है। लेकिन पूरी दुनिया आपके इस सपने के साथ खेलती है और एक दिन हम सब दुनिया के बहाव में बहने लगते हैं। जिस दुनिया में हम अपने हिसाब से जीना चाहते हैं, वहां दुनिया के हिसाब से जीने लगते हैं। यह समाज, यह दुनिया आपके अंदर के उस शख्स को मारने के लिए जी जान से लगी रहती है। बहुत कम लोग होते हैं जो अपने हिसाब से, अपनी खुशी के लिए जीते हैं। हर कोई कहीं न कहीं दिल और दुनिया के बीच में फंसा हुआ है। मैं भी फंसा हुअा हूं और आप भी।
आशीष महर्षि सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे। जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...
Comments