भोपाल आए पूरे दो महीने हो गए. कितनी जल्दी ये समय कटा पता ही नहीं चला. काम और बस काम. बाकी चीजों के लिए समय ही नहीं निकाल पाया. काफी मजा आ रहा है. खासतौर पर उस वकत जब सुबह उठकर अख़बार में अपना नाम पढ़ता हूँ. बायलाइन का अलग नशा है. दिन भर दीमाग खास ख़बर खोजता है किसी भी कीमत पर. कई बार ऐसा भी हुआ है कि जब भी उन सडकों या मोहल्लों से गुजरता हूँ जहाँ कभी उसे देखा था या दो कदम साथ चले थे.तो पुरानी यादें तजा हो जाती हैं. आज भी यहाँ की फिजा में उसे मैं महसूस करता हूँ. वो आसमान से उतरी एक परी थी मेरे लिए. और मैं उसका महाराज.
मुंबई यानि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्चे कुपोषित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्चे उन्हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम...
Comments
कोई साथ ना हो बैशक। उसकी यादों के सहारे ही चला चल।
मिल जाऐगी वह किसी राह चलते चलते जरा होसला तो रख।
जिंदगी चलने का नाम है यू ही चला चल।
कभी उस परी से मिलाइए। :)