भोपाल आए पूरे दो महीने हो गए. कितनी जल्दी ये समय कटा पता ही नहीं चला. काम और बस काम. बाकी चीजों के लिए समय ही नहीं निकाल पाया. काफी मजा आ रहा है. खासतौर पर उस वकत जब सुबह उठकर अख़बार में अपना नाम पढ़ता हूँ. बायलाइन का अलग नशा है. दिन भर दीमाग खास ख़बर खोजता है किसी भी कीमत पर. कई बार ऐसा भी हुआ है कि जब भी उन सडकों या मोहल्लों से गुजरता हूँ जहाँ कभी उसे देखा था या दो कदम साथ चले थे.तो पुरानी यादें तजा हो जाती हैं. आज भी यहाँ की फिजा में उसे मैं महसूस करता हूँ. वो आसमान से उतरी एक परी थी मेरे लिए. और मैं उसका महाराज.
समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस शहर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्यार है। और किसी भी प्यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा
Comments
कोई साथ ना हो बैशक। उसकी यादों के सहारे ही चला चल।
मिल जाऐगी वह किसी राह चलते चलते जरा होसला तो रख।
जिंदगी चलने का नाम है यू ही चला चल।
कभी उस परी से मिलाइए। :)