भोपाल आए पूरे दो महीने हो गए. कितनी जल्दी ये समय कटा पता ही नहीं चला. काम और बस काम. बाकी चीजों के लिए समय ही नहीं निकाल पाया. काफी मजा आ रहा है. खासतौर पर उस वकत जब सुबह उठकर अख़बार में अपना नाम पढ़ता हूँ. बायलाइन का अलग नशा है. दिन भर दीमाग खास ख़बर खोजता है किसी भी कीमत पर. कई बार ऐसा भी हुआ है कि जब भी उन सडकों या मोहल्लों से गुजरता हूँ जहाँ कभी उसे देखा था या दो कदम साथ चले थे.तो पुरानी यादें तजा हो जाती हैं. आज भी यहाँ की फिजा में उसे मैं महसूस करता हूँ. वो आसमान से उतरी एक परी थी मेरे लिए. और मैं उसका महाराज.
आशीष महर्षि सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे। जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...
Comments
कोई साथ ना हो बैशक। उसकी यादों के सहारे ही चला चल।
मिल जाऐगी वह किसी राह चलते चलते जरा होसला तो रख।
जिंदगी चलने का नाम है यू ही चला चल।
कभी उस परी से मिलाइए। :)