आप यकीन मानिये या मत मानिये लेकिन यह सोलह आने सच बात है. बात क्या जनाब किस्सा ही है. आप परी को नहीं जानते हैं. चलिए मैं बता देता हूँ. यह न तो आसमान से आई कोई परी है और ना ही किस्से कहानी वाली परी. यह परी है उत्तर प्रदेश के एक कस्बे की. नाम कुछ भी हो सकता है. जैसे सपना, मीना या फिर टीना लेकिन मेरे लिए बस वो परी है. इस परी से हमारी पहली मुलाकात झीलों की नगरी में ही हुई थी. इसे आप पहली नज़र का प्यार कहें या और कुछ. कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन उसमे कुछ ऐसा था या कहूँ है, जो मुझे आज भी उसकी ओर खींचता है. उसकी आंखों में जब भी मैंने आंसू देखा तो मेरी आँखें गीली हो गई. कई महीनो के साथ में उसने मुझे जीना सिखा दिया था. मैं आज जो भी हूँ, उसी के कारण हूँ. लेकिन उसे प्यार हो गया. ओर परी को यदि किसी से प्यार हो जाए तो वो बन्दा कितना नसीब वाला होगा. यह वही समझ सकता है जिसने परी से प्यार किया हो. परी आज खुश है. इसलिए मैं भी खुश हूँ.
मुंबई यानि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्चे कुपोषित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्चे उन्हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम...
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घुघूती बासूती