आप यकीन मानिये या मत मानिये लेकिन यह सोलह आने सच बात है. बात क्या जनाब किस्सा ही है. आप परी को नहीं जानते हैं. चलिए मैं बता देता हूँ. यह न तो आसमान से आई कोई परी है और ना ही किस्से कहानी वाली परी. यह परी है उत्तर प्रदेश के एक कस्बे की. नाम कुछ भी हो सकता है. जैसे सपना, मीना या फिर टीना लेकिन मेरे लिए बस वो परी है. इस परी से हमारी पहली मुलाकात झीलों की नगरी में ही हुई थी. इसे आप पहली नज़र का प्यार कहें या और कुछ. कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन उसमे कुछ ऐसा था या कहूँ है, जो मुझे आज भी उसकी ओर खींचता है. उसकी आंखों में जब भी मैंने आंसू देखा तो मेरी आँखें गीली हो गई. कई महीनो के साथ में उसने मुझे जीना सिखा दिया था. मैं आज जो भी हूँ, उसी के कारण हूँ. लेकिन उसे प्यार हो गया. ओर परी को यदि किसी से प्यार हो जाए तो वो बन्दा कितना नसीब वाला होगा. यह वही समझ सकता है जिसने परी से प्यार किया हो. परी आज खुश है. इसलिए मैं भी खुश हूँ.
आशीष महर्षि सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे। जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...
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घुघूती बासूती