वे खुश हैं। वजह क्या हो सकती है। क्योंकि वे जिससे नफरत करती हैं वह इनसे बहुत दूर कहीं बैठा हुआ है और वे अपनों के साथ खुष हैं और जिंदगी का भरपूर मजा उठा रही हैं। सुना है आजकल राजस्थान के किसी शहर में हैं। किस शहर में हैं यह नहीं पता। लेकिन फिर भी वह उसकी उस खुषबू को आज भी महसूस कर सकता है जब वे उसके साथ थी। उसके होंठो के तिल को वह आज चूमना चाहता है। दम तोड़ती हसरतों के बावजूद वह आज भी उसे पाना चाहता है। उनकी तलाश में वह पूरी दुनिया भटक रहा है पर वे नहीं मिल पा रही हैं। वे कोई भी हो सकती हैं। वे उप्र के कस्बानुमा शहर की कोई गोरी या फिर मुंबई की कोई हसीना भी हो सकती हैं। कोई भी। जब भी उनकी याद आती है वे उसे याद करके जिंदगी के एक दिन और काट लेता है। यही चल रहा है। कब तक चलेगा पता नहीं।
समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस शहर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्यार है। और किसी भी प्यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा
Comments
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया
अनुमान लगाना मुश्किल है !!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- हिन्दी चिट्ठाकारी के विकास के लिये जरूरी है कि हम सब अपनी टिप्पणियों से एक दूसरे को प्रोत्साहित करें
सच्चे जज्बात भी ठुकरा देते हैं लोग,
क्या देखेंगे दो इंसानों का मिलना,
बैठे हुए दो परिंदों को तो उदा देते हैं लोग...