वे खुश हैं। वजह क्या हो सकती है। क्योंकि वे जिससे नफरत करती हैं वह इनसे बहुत दूर कहीं बैठा हुआ है और वे अपनों के साथ खुष हैं और जिंदगी का भरपूर मजा उठा रही हैं। सुना है आजकल राजस्थान के किसी शहर में हैं। किस शहर में हैं यह नहीं पता। लेकिन फिर भी वह उसकी उस खुषबू को आज भी महसूस कर सकता है जब वे उसके साथ थी। उसके होंठो के तिल को वह आज चूमना चाहता है। दम तोड़ती हसरतों के बावजूद वह आज भी उसे पाना चाहता है। उनकी तलाश में वह पूरी दुनिया भटक रहा है पर वे नहीं मिल पा रही हैं। वे कोई भी हो सकती हैं। वे उप्र के कस्बानुमा शहर की कोई गोरी या फिर मुंबई की कोई हसीना भी हो सकती हैं। कोई भी। जब भी उनकी याद आती है वे उसे याद करके जिंदगी के एक दिन और काट लेता है। यही चल रहा है। कब तक चलेगा पता नहीं।
मुंबई यानि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्चे कुपोषित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्चे उन्हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम
Comments
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया
अनुमान लगाना मुश्किल है !!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- हिन्दी चिट्ठाकारी के विकास के लिये जरूरी है कि हम सब अपनी टिप्पणियों से एक दूसरे को प्रोत्साहित करें
सच्चे जज्बात भी ठुकरा देते हैं लोग,
क्या देखेंगे दो इंसानों का मिलना,
बैठे हुए दो परिंदों को तो उदा देते हैं लोग...