कल मैने थोड़ी बात पत्रकार बनाम दलाल के बीच उठाई थी। इसे लेकर मेरे पास दो सकारात्मक राय आई है। एक इंदौर के पंकज जी की और दूसरी मुंबई के कमल शर्मा जी की। पंकज जी जहां मेरी तरह पत्रकारिता के नए खिलाड़ी हैं। जबकि, कमल जी पिछले सोलह सालों से पत्रकारिता में लगे हुए हैं।
बस मैं यहां इन दोनों की राय दे रहा हूं। पंकज जी कहते है कि सच है आशीष हर पत्रकार की दुखती रग है यह। मैं अभी खाटी पत्रकार बना तो नहीं हूँ, पर बनने की राह पर हूँ। जब भी ऐसा कुछ पढ़ने या सुनने को मिलता है, ज़रा निराश होता हूँ, लेकिन फिर भी हाथ लिखने और मुँह बोलने के लिए उकसाता है। बस अपना काम करते चलें।बढ़िया अनुभव बताया आपने। जबकि, कमल शर्मा जी का कहना है कि भाई आशीष यह अपने हाथ है कि दलाल बनना है या पत्रकार। जीवन में कुछ सिद्धांत अपनाकर आप दलालों के बीच भी पत्रकार रह सकते हैं। जरुरी नहीं है कि हर आदमी बिकाऊ कहा जाए। हालांकि पत्रकारों को चाहिए कि वे अपनी आय का दूसरा कानूनी स्त्रोत जरुर रखें। केवल पत्रकारिता पर निर्भर रहकर जीवन के अनेक उद्देश्य हासिल नहीं किए जा सकते। मीडिया मालिक कई बार अपने स्टॉफ से ही मुंह मोड लेते हैं जब उन्हें लगता है कि रिपोर्टर ने उन्हें किसी खबर में फंसा दिया मतलब उनके हितों पर चोट लगने जा रही है। ऐसे में दूसरा वैद्य आय का स्त्रोत आपको घरेलू जरुरत को पूरा करने में मददगार होगा। दलाल बनना कभी सहायक नहीं हो सकता। कठिनाई का रास्ता है लेकिन जीत सच की होती है, मीडिया दलालों की नहीं। दलाल कुछ समय खुश रहता है कि चलो खूब मौज हो रही है लेकिन मीडिया से जल्दी ही उसकी अर्थी भी निकलती है। मैं खुद ऐसे कई पत्रकारों को जानता हूं जो दलाल बने और बगैर कुछ काम धाम के सड़कों पर घूम रहे हैं। लोग उनके बारे में कहते हैं कि कुत्ता है पूंछ हिलाते हुए आ गया...यार दो चार सौ या कुछ और कीमत डाल दो अपने आप तलवे चाटेगा। यह इज्जत होती है दलालों की। मीडिया दलालों और वेश्याओं के दलालों मे कोई अंतर नहीं है। दोनों किसी न किसी चीज को बेचते हैं।
बस मैं यहां इन दोनों की राय दे रहा हूं। पंकज जी कहते है कि सच है आशीष हर पत्रकार की दुखती रग है यह। मैं अभी खाटी पत्रकार बना तो नहीं हूँ, पर बनने की राह पर हूँ। जब भी ऐसा कुछ पढ़ने या सुनने को मिलता है, ज़रा निराश होता हूँ, लेकिन फिर भी हाथ लिखने और मुँह बोलने के लिए उकसाता है। बस अपना काम करते चलें।बढ़िया अनुभव बताया आपने। जबकि, कमल शर्मा जी का कहना है कि भाई आशीष यह अपने हाथ है कि दलाल बनना है या पत्रकार। जीवन में कुछ सिद्धांत अपनाकर आप दलालों के बीच भी पत्रकार रह सकते हैं। जरुरी नहीं है कि हर आदमी बिकाऊ कहा जाए। हालांकि पत्रकारों को चाहिए कि वे अपनी आय का दूसरा कानूनी स्त्रोत जरुर रखें। केवल पत्रकारिता पर निर्भर रहकर जीवन के अनेक उद्देश्य हासिल नहीं किए जा सकते। मीडिया मालिक कई बार अपने स्टॉफ से ही मुंह मोड लेते हैं जब उन्हें लगता है कि रिपोर्टर ने उन्हें किसी खबर में फंसा दिया मतलब उनके हितों पर चोट लगने जा रही है। ऐसे में दूसरा वैद्य आय का स्त्रोत आपको घरेलू जरुरत को पूरा करने में मददगार होगा। दलाल बनना कभी सहायक नहीं हो सकता। कठिनाई का रास्ता है लेकिन जीत सच की होती है, मीडिया दलालों की नहीं। दलाल कुछ समय खुश रहता है कि चलो खूब मौज हो रही है लेकिन मीडिया से जल्दी ही उसकी अर्थी भी निकलती है। मैं खुद ऐसे कई पत्रकारों को जानता हूं जो दलाल बने और बगैर कुछ काम धाम के सड़कों पर घूम रहे हैं। लोग उनके बारे में कहते हैं कि कुत्ता है पूंछ हिलाते हुए आ गया...यार दो चार सौ या कुछ और कीमत डाल दो अपने आप तलवे चाटेगा। यह इज्जत होती है दलालों की। मीडिया दलालों और वेश्याओं के दलालों मे कोई अंतर नहीं है। दोनों किसी न किसी चीज को बेचते हैं।
Comments
इसलिए जरुरी है समय समय पर इन भवनाओं को व्यक्त करना...
धन्यवाद..
Theres space for every one !
Shree