Skip to main content

हम मिलेंगे

कई दिनों बाद आज लिखने बैठा हूँ. सोच रहा हूँ उसके बारे में लिखूं जिसकी जिंदगी में अब मैं नहीं हूँ, आज भी उसकी एक झलक पाने के लिए दिल बेकरार रहता है. लेकिन मुझे पता है अब मैं उसे कभी नहीं देख पाउँगा. फिर भी वो मेरे दिल के सबसे करीब है. उसकी सांसों को आज भी मैं महसूस कर सकता हूँ. वो अब मेरी जिंदगी में नहीं है. वो अब मेरे शहर में है और मैं उस शहर में जहाँ हम मिले थे. उसके जाने के बाद मेरी जिंदगी अब थम सी गई है लेकिन फिर भी मैं चल रहा हूँ और उमीद है की हम एक दिन मिलेंगे और एक अच्छे दोस्त की तरह.

Comments

manglam said…
बहुत खूब भाई, अब पता चला माया नगरी से भोपाल आने का मकसद। ईश्वर से यही प्राथॅना है कि आपका खोया हुआ प्यार उसी तरह आपको मिल जाए जैसे हमें आप ब्लॉग पर इतने दिनों बाद मिले हैं।
BHAI KAHA GAYAB HO GAYE HO

KABHI KABHI TO AAYA KARO BLOG PER
pallavi trivedi said…
khuda kare aapki ichcha poori ho...aap achche dost ki tarah zaroor mile...
Udan Tashtari said…
मेरी शुभकामनाऐं. आपकी कामना पूरी हो. थोड़ा नियमित लिखें अगर संभव हो पाये.
उम्मीद पर दुनिया कायम है आप जरुर मिलेंगे। मिलना तो बताना मुलाकात कैसी रही। पर दोस्त हम से तो मिलते रहा करो एक आध पोस्ट डाल दिया करो।
Puja Upadhyay said…
kaash aapki tarah hi sab log sochte.dua karungi aap milein aur acche doston ki tarah milein aur dosti ke is khoobsoorat se rishtey ko bhi utne hi pyaar se jiyein.
shubhkamnaein.

Popular posts from this blog

मै जरुर वापस आऊंगा

समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्‍हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस श‍हर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्‍थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्‍तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्‍छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है। और किसी भी प्‍यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्‍टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्‍त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्‍त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम

बस में तुम्‍हारा इंतजार

हर रोज की तरह मुझे आज भी पकड़नी थी बेस्‍ट की बस। हर रोज की तरह मैंने किया आज भी तुम्‍हारा इंतजार अंधेरी के उसी बस स्‍टॉप पर जहां कभी हम साथ मिला करते थे अक्‍सर बसों को मैं बस इसलिए छोड़ देता था ताकि तुम्‍हारा साथ पा सकूं ऑफिस के रास्‍ते में कई बार हम साथ साथ गए थे ऑफिस लेकिन अब वो बाते हो गई हैं यादें आज भी मैं बेस्‍ट की बस में तुम्‍हारा इंतजार करता हूं और मुंबई की खाक छानता हूं अंतर बस इतना है अब बस में तन्‍हा हूं फिर भी तुम्‍हारा इंतजार करता हूं