आप यकीन मानिए, यह मेरी कहानी नहीं है। यह कहानी हर उस शख्स थी जो कभी भी कहीं न कहीं किसी न किसी से प्यार करता था, करता है और करता रहेगा। यह बस एकतरफा प्रेम कहानी है। चलिए अब अधिक नहीं पकाते हुए शुरु करता हूं। बात उस वक्त की है जब बारिश की पहली बूंदें जमीन पर पड़ती हैं। इसके बाद पूरा माहौल मिट्टी की सौंधी खूश्बू से महक उठता है। दोनों एक साथ कालेज से निकले थे। काम की तलाश में वो बंबई चला गया और वो इसी शहर में रह गई। वक्त बदला और साथ में कई बातें बदल गई। जो कल तक एक दूसरे के लिए जान देते थे, आज जान लेने पर तुले हैं। वजह साफ है। वो अब उसे नहीं चाहती है। उसकी जिंदगी में और कोई आ गया है। जी हां और कोई आ गया है। आपको सुनाई दिया या नहीं। खैर बात आगें बढ़ाता हूं। बंबई छोडक़र वो वापस अपने पुराने शहर में आ गया। उम्मीद थी कि वो उसे स्वीकार कर लेगी। लेकिन नहीं वो गलत था। वो भी सही थी। दोनों की मुलाकात ऐसे वक्त हुई जहां होनी नहीं चाहिए थी। आगे की बात आज नहीं कल।
मुंबई यानि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्चे कुपोषित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्चे उन्हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम
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